अपडेटेड 7 July 2024 at 17:26 IST

Jagannath Rath Yatra: भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा में जाते हैं मौसी के घर, जानिए इसके पीछे की रोचक कहानी

रथ यात्रा में भगवान जगन्नाथ साल में एक बार मंदिर से निकलकर आम लोगों के बीच आते हैं। पुराण कथाओं में बताया जाता है कि भगवान जगन्नाथ की बहन ने एक बार इच्छा जताई..

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Jagannath's Rath Yatra
भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा की कहानी | Image: Shutterstock

Jagannath Rath Yatra: जगन्नाथ रथ यात्रा बेहद खास महत्व रखती है, सनातन धर्म में मान्यताओं के अनुसार रथ यात्रा निकालकर भगवान जगन्नाथ को प्रसिद्ध गुंडिचा माता मंदिर पहुंचाया जाता है, जहां भगवान सात दिनों तक आराम करते हैं। इस दौरान गुंडिचा माता मंदिर में खास तैयारियां होती हैं और मंदिर की सफाई के लिए सरोवर से जल लाया जाता है। इसके बाद भगवान जगन्नाथ की वापसी की यात्रा शुरू होती है। इस यात्रा का सबसे बड़ा महत्व यही है कि यह पूरे भारत में एक पर्व की तरह मनाई जाती है।

विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा देखने के लिए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू भी पुरी पहुंची हैं, भुवनेश्वर एयरपोर्ट से हेलीकॉप्टर से पुरी के तालाबाणिया स्थित हेलीपैड पर उतरने के बाद वह वहां से कड़ी सुरक्षा के बीच राजभवन पहुंची और उसके बाद उन्होंने पुरी में आयोजित भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा में भगवान जगन्नाथ के दर्शन किए।

भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा 

भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया को शुरू होती है। 7 जुलाई यानी आज से भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा शुरू हो चुकी है। रथ यात्रा में भगवान जगन्नाथ साल में एक बार मंदिर से निकलकर आम लोगों के बीच आते हैं। रथ यात्रा में सबसे आगे ताल ध्वज होता है जिस पर श्री बलराम होते हैं, उसके पीछे पद्म ध्वज होता है जिस पर सुभद्रा और सुदर्शन चक्र होते हैं और सबसे अंत में गरुड़ ध्वज पर श्री जगन्नाथ जी होते हैं जो सबसे पीछे चलते हैं।

भगवान जगन्नाथ की बहन ने बताई अपनी ये इच्छा

पुराण कथाओं में बताया जाता है कि भगवान जगन्नाथ की बहन ने एक बार नगर देखने की इच्छा जताई। तब जगन्नाथ और बलभद्र अपनी प्यारी बहन सुभद्रा को रथ पर बैठा के नगर दिखाने निकल पड़े। इस दौरान वे मौसी के घर गुंडिचा भी गए और यहां सात दिन रुके। तभी से जगन्नाथ यात्रा निकालने की परंपरा चलती आ रही है। नारद पुराण और ब्रह्म पुराण में भी इसका जिक्र है।

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मौसी के घर भगवान ने खाए खूब पकवान

मान्यताओं के मुताबिक, मौसी के घर पर भाई-बहन के साथ भगवान खूब पकवान खाते हैं और फिर बीमार पड़ जाते हैं। इसके बाद उनका इलाज किया जाता है और फिर स्वस्थ होने के बाद ही लोगों को दर्शन देते हैं, भगवान जगन्नाथ की मुख्य लीला भूमि ओडिशा की पुरी है। पुरी को पुरुषोत्तम पुरी भी कहा जाता है। राधा और श्रीकृष्ण की युगल मूर्ति के प्रतीक स्वयं श्री जगन्नाथ जी हैं। यानी राधा-कृष्ण को मिलाकर उनका स्वरूप बना है और कृष्ण भी उनके एक अंश हैं। ओडिशा में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की काष्ठ यानी लकड़ियों की अर्धनिर्मित मूर्तियां स्थापित हैं। इन मूर्तियों का निर्माण महाराजा इंद्रद्युम्न ने करवाया था।

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राष्ट्रपति मुर्मू समेत ये लोग पहुंचे हैं पुरी

विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा देखने के लिए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू भी पुरी पहुंची हैं, उनके साथा राज्यपाल रघुवर दास और मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी समेत ओडिशा के पूर्व मुख्यमंत्री नवीन पटनायक और अन्य गणमान्य व्यक्ति भी कार्यक्रम में मौजूद दिखे। आज का दिन बेहद खास है, जो लोगों के लिए पुरी की रथयात्रा में शामिल नहीं हो पाते वह अपने घरों में भगवान जगन्नाथ की उपासना करते हैं, भगवान जगन्नाथ को भोग लगाते हैं और उनके मंत्रों का जाप करते हैं।

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Published By : Nidhi Mudgill

पब्लिश्ड 7 July 2024 at 17:26 IST