अपडेटेड 12 August 2023 at 10:07 IST
Independence Day Special: काकोरी कांड के 'मास्टरमाइंड' थे राम प्रसाद बिस्मिल, जानिए कैसे हुई थी 'मेरा रंग दे बसंती चोला' की शुरुआत
Independence Day Special: भारत की आजादी के 77वें वर्षगांठ की इस सीरीज में आज हम राम प्रसाद बिस्मिल के बारे में जानेंगे।
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Independence Day Special: भारत की आजादी के लिए लाखों लोगों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी। इनमें कवियों से लेकर स्वतंत्रता सेनानियों तक कई वीरों के नाम शामिल हैं। उन्हीं में से एक थे- राम प्रसाद बिस्मिल। उन्हें ब्रिटिश काल के सबसे प्रसिद्ध कवियों में गिना जाता था। बताया जाता है कि बिस्मिल देश की आजादी के लिए ब्रिटिश सरकार से भिड़ गए थे।
काकोरी कांड मामले में राम प्रसाद बिस्मिल उन 4 क्रांतिकारियों में शामिल थे, जिन्हें फांसी की सजा सुनाई गई थी। इस दौरान लखनऊ सेंट्रल जेल के बैरक नंबर 11 में बैठकर उन्होंने 'मेरा रंग दे बसंती चोला' गीत को अपने पन्ने पर उतारा था और उसके बाद इस गीत ने हजारों क्रांतिकारियों के दिल में आजादी की मसाल जला दी।
स्टोरी की खास बातें
- कौन थे राम प्रसाद बिस्मिल?
- काकोरी कांड और बिस्मिल के बीच क्या संबंध थे?
- कवि से स्वतंत्रता सेनानी कैसे बने बिस्मिल?
कौन थे राम प्रसाद बिस्मिल?
राम प्रसाद बिस्मिल का जन्म 11 जून 1897 को यूपी के शाहजहांपुर जिले में हुआ था। परिवार में आर्थिक तंगी के कारण उनका परिवार बुंदेलखंड से आया था। उनके पिता ने उन्हें हिंदी सिखाई और ऊर्दू सीखने के लिए एक लोकल मौलवी के पास भेजा। उनके पिता नहीं चाहते थे कि उनका बेटा इंग्लिश मीडियम की शिक्षा ले। बिस्मिल ने अपनी जीवनी में बताया था कि उनकी मां ने उनके पिता को उन्हें अंग्रेजी मीडियम की शिक्षा दिलाने के लिए राजी किया था।
उनका आर्य समाज की तरफ आकर्षण काफी ज्यादा था। पिता के विरोध के कारण उन्होंने आर्य समाज की सदस्यता के लिए अपना घर तक छोड़ दिया था। इसके बाद उन्होंने स्वामी दयानंद के सीखों को देश के कई हिस्सों में फैलाना शुरू कर दिया। इसी दौरान उनकी मुलाकात स्वामी सोमवेद से हुई, जिन्होंने उनका परिचय राजनीतिक और राष्ट्रवादी साहित्य से कराया।
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'सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है'
राम प्रसाद बिस्मिल बेहतरीन कवि और लेखक थे। 'सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है' गीत से आज भी कई लोगों को बिस्मिल की याद आती है। हालांकि, इसके असली रचयिता बिस्मिल अजीमाबादी थे। 1922 में सबाह नाम के पत्रिका में इस कविता के छपने के बाद ब्रिटिश सरकार ने इसपर पाबंदी लगा दी थी। इसके बाद बिस्मिल ने इस गजल को इतना गाया कि कई लोग आज भी इसे उन्हीं के नाम से जानते हैं।
काकोरी कांड और बिस्मिल के बीच संबंध
भारत की आजादी के लिए काकोरी कांड को भी एक अहम घटना के तौर पर गिना जाता है। साल 1922 में गोरखपुर के चौरा-चौरी में हुई एक घटना के बाद कुछ लोग इतना भड़क गए कि उन्होंने एक थाने में आग लगा दी। इस भीषण घटना में 22 से ज्यादा पुलिसवालों की मौत हो गई। उस वक्त महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन छेड़ा हुआ था, लेकिन इस घटना के बाद उन्हें अपना आंदोलन वापस लेना पड़ा।
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इसके बाद 9 अगस्त 1925 को रात 2 बजकर 42 मिनट पर कुछ क्रांतिकारियों ने मिलकर काकोरी में एक ट्रेन में डकैती डाल दी, जिसे हम काकोरी कांड के नाम से जानते हैं। क्रांतिकारियों ने फैसला किया था कि वो इस ट्रेन से आने वाले अंग्रेजों के खजाने को लूट लेगें। इस कांड का मास्टरमाइंड राम प्रसाद बिस्मिल को ही बताया जाता है।
इस घटना के बाद ब्रिटिश सरकार आग-बबूला हो गई और बड़ी संख्या में गिरफ्तारियां की गई। इनमें राम प्रसाद बिस्मिल, राजेंद्रनाथ लाहिड़ी, रोशन सिंह और अशफाक उल्ला खां का भी नाम शामिल था। 17 दिसंबर को राजेंद्रनाथ लाहिड़ी को फांसी देने के बाद 19 दिसंबर 1927 को बिस्मिल को भी फांसी दे दी गई।
Published By : Kunal Verma
पब्लिश्ड 10 August 2023 at 08:58 IST