अपडेटेड 4 May 2025 at 15:27 IST

दोगुनी हुई सेना की ताकत, पहलगाम आतंकी हमले के बाद पहला स्ट्रेटोस्फेरिक एयरशिप प्लेटफॉर्म का सफल परीक्षण

रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) ने मध्य प्रदेश के श्योपुर परीक्षण स्थल से स्ट्रेटोस्फेरिक एयरशिप प्लेटफॉर्म की पहली उड़ान का सफलतापूर्वक परीक्षण किया।

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DRDO conducts maiden flight-trials of Stratospheric Airship Platform
दोगुनी हुई सेना की ताकत, पहलगाम आतंकी हमले के बाद पहला स्ट्रेटोस्फेरिक एयरशिप प्लेटफॉर्म का सफल परीक्षण | Image: PIB

रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) ने मध्य प्रदेश के श्योपुर परीक्षण स्थल से स्ट्रेटोस्फेरिक एयरशिप प्लेटफॉर्म की पहली उड़ान का सफलतापूर्वक परीक्षण किया। एरियल डिलीवरी रिसर्च एंड डेवलपमेंट एस्टेब्लिशमेंट, आगरा द्वारा विकसित इस एयरशिप को करीब 17 किलोमीटर की ऊंचाई पर एक इंस्‍ट्रूमेंटल पेलोड के साथ लॉन्च किया गया। ऑनबोर्ड सेंसर से डेटा मिल गया है, जिसका इस्तेमाल भविष्य की उच्च-ऊंचाई वाली एयरशिप उड़ानों हेतु उच्च-गुणवत्ता वाले फ़िडेलिटी सिमुलेशन मॉडल के विकास के लिए किया जाएगा।

प्रदर्शन मूल्यांकन के लिए उड़ान में एनवलेप प्रेशर कंट्रोल इमरजेंसी डिफ्लेशन को तैनात किया गया था। परीक्षण दल ने आगे की जांच के लिए सिस्टम को रिकवर कर लिया है। उड़ान की कुल अवधि करीब 62 मिनट थी। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इस प्रणाली के पहले सफल उड़ान-परीक्षण के लिए डीआरडीओ को बधाई दी है। उन्होंने कहा कि यह प्रणाली भारत की पृथ्वी अवलोकन और खुफिया, निगरानी और टोही क्षमताओं को अप्रत्याशित रूप से बढ़ाएगी, जिससे देश दुनिया के उन चुनिंदा देशों में शामिल हो जाएगा, जिनके पास ऐसी स्वदेशी क्षमताएं हैं।

मजबूत होगी भारतीय सेना

रक्षा अनुसंधान एवं विकास विभाग के सचिव और डीआरडीओ के अध्यक्ष डॉ. समीर वी कामत ने इस प्रणाली के डिजाइन, विकास और परीक्षण में शामिल डीआरडीओ टीम को बधाई दी। उन्होंने कहा कि यह प्रोटोटाइप उड़ान, हवा से हल्के उच्च ऊंचाई वाले प्लेटफॉर्म सिस्टम को साकार करने की राह में एक मील का पत्थर है, जो स्ट्रेटोस्फेरिक ऊंचाइयों पर काफी लंबे वक्त तक हवा में रह सकता है। DRDO ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'X' पर लिखा कि यह हवा से हल्का (लाइटर देन एयर) सिस्टम भारत की पृथ्वी का अवलोकन करने, खुफिया जानकारी जुटाने, निगरानी करने और टोही (ISR) क्षमताओं को बहुत बढ़ा देगा। इस सफलता के साथ भारत उन गिने-चुने देशों में शामिल हो गया है जिनके पास यह स्वदेशी तकनीक मौजूद है।

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Published By : Ankur Shrivastava

पब्लिश्ड 4 May 2025 at 15:27 IST