अपडेटेड 24 June 2025 at 21:09 IST
छत्तीसगढ़ के बलरामपुर जिले की शांत सी बस्ती में एक नई दुल्हन के आने से कुछ दिन पहले तक सब कुछ सामान्य था। गांव के लोग अभी तक शादी की रौनक में खोए हुए थे। धूमधाम से हुई इस शादी को देख कर कोई भी अंदाजा नहीं लगा सकता था कि कुछ ही दिनों में यह घर मातम में बदल जाएगा। रवि, एक सरल और ईमानदार युवक, पूरे गांव में अपने अच्छे स्वभाव के लिए जाना जाता था। जब उसकी शादी रिया से हुई, तो सबने कहा, 'अरे, कितनी सुंदर जोड़ी है!' रिया पढ़ी-लिखी, शहर से आई थी, और सबको यही लगा कि रवि की किस्मत खुल गई। लेकिन किस्मत... वह कभी-कभी धोखे का दूसरा नाम होती है। यह बात पूरी तरह से इस कहानी पर चरितार्थ होती है।
शादी के बाद सब कुछ ठीक चल रहा था, कम से कम बाहर से तो ऐसा ही लगता था। लेकिन रवि को कई बार खाने के बाद चक्कर आने लगे, उल्टी होने लगी, और एक बार तो अस्पताल तक जाना पड़ा। डॉक्टरों ने मामूली फूड प्वाइजनिंग बताया, पर रवि को शक हुआ। लेकिन शक का क्या? बिना सबूत के वह कुछ कह भी तो नहीं सकता था। इधर रिया अंदर ही अंदर जल रही थी शायद किसी और से प्यार करती थी, शायद शादी किसी दबाव में की थी। किसी को नहीं पता। पहली बार उसने खाने में हल्का सा जहर मिलाया... रवि बीमार हुआ, बच गया। दूसरी बार मात्रा बढ़ाई... फिर भी किस्मत ने साथ दिया। तीसरी बार तो खुद रिया डर गई जब रवि ने उल्टी करते हुए कहा, 'लगता है कोई हमें मारना चाहता है।'
सुनीता के इतने असफल प्रयासों के बाद भी वह रुकी नहीं और चौथी बार, उसने सब खत्म करने का फैसला किया। उस रात, रवि ने जैसे ही खाना खाया, थोड़ी ही देर में वह बेहोश हो गया। अस्पताल पहुंचने से पहले ही उसकी मौत हो चुकी थी। जांच में जब पुलिस को शक हुआ, तो पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सच्चाई सामने आई खाने में कीटनाशक मिला था। पूछताछ में रिया टूट गई और अपना गुनाह कबूल कर लिया। आज रिया जेल में है, और रवि की कहानी एक दर्दनाक याद बनकर लोगों के दिलों में रह गई है।
11 मई, एक गर्मी की शाम, जब गांव के लोग नई-नई शादी की खुशियों में डूबे हुए थे, तब 22 वर्षीय बुद्नाथ की बारात ढोल-नगाड़ों के साथ बिशनपुर गांव पहुंची। दूल्हा सजा-धजा था और दुल्हन सुनीता गांव की रस्मों-रिवाजों के बीच विदा हो गई। शादी पूरे रीति-रिवाजों से हुई, पर एक बात जो कोई नहीं जान पाया उस शादी में केवल रस्में थीं, रिश्ते नहीं। सुनीता कुछ दिन ससुराल में रही, चुपचाप, बिना किसी शिकायत के। फिर अचानक, वह अपने मायके चली गई कहकर कि कुछ दिन मां-बाप के साथ रहना चाहती है। बुद्नाथ और उसके परिवार ने पहले तो यह सामान्य समझा। लेकिन दिन, फिर हफ्ते गुजरते गए और सुनीता लौटकर नहीं आई। हर बार बुलावा भेजा गया। पहले आग्रह, फिर उम्मीद, फिर संदेह। अंततः 5 जून को गांव की पंचायत बुलाई गई। बुज़ुर्गों और रिश्तेदारों की मौजूदगी में सवाल उठे, जवाब मांगे गए, और सामाजिक दबाव का जाल बुना गया। आख़िरकार, पंचायत ने निर्णय सुनाया,'सुनीता को अब ससुराल लौटना ही होगा।'
वह लौटी... पर सिर्फ देह से। उसका मन अब भी उस घर की दीवारों में कैद नहीं होना चाहता था। बुद्नाथ खुश था कि अब सब ठीक हो जाएगा। उसे क्या पता था कि जो लौटी है, वह एक विवशता है, प्रेम नहीं।
सुनीता अब हर रोज भीतर ही भीतर टूट रही थी। उसका पति से कोई लगाव नहीं था, कोई अपनापन नहीं। उसकी आंखों में न प्यार था, न उम्मीद बस एक ही ख्याल, 'कैसे निकला जाए इस जाल से?' यह सिर्फ़ एक शादी की नहीं, दो जीवनों की त्रासदी थी। एक ऐसा रिश्ता, जो सामाजिक जिम्मेदारी की जंजीरों में बांध दिया गया था, पर भावनात्मक रूप से बिल्कुल ख़ाली था।
सुनीता की ज़िंदगी में बहुत कुछ उस दिन बदल गया, जब घरवालों ने उसे सामने बैठाकर सिर्फ़ इतना कहा, 'बात पक्की हो गई है। शादी बुद्नाथ से होगी।' सुनीता ने विरोध किया था। आंसुओं से, तर्कों से, मनुहारों से लेकिन किसी ने उसकी आवाज नहीं सुनी। बुद्नाथ एक सीधा-सादा, मेहनती लड़का अपने हिस्से की खुशी लेकर बारात लेकर आ गया। वह नहीं जानता था कि जिसके साथ सात फेरे ले रहा है, उसके दिल में वह नहीं, कोई और बसा है या शायद कोई भी नहीं है। शादी के तीन दिन भी पूरे नहीं हुए थे कि सुनीता के भीतर का विद्रोह उबलने लगा। वह मजबूरी में उस घर में तो आ गई थी, लेकिन बुद्नाथ के साथ जिंदगी बिताने का ख्याल भी उसके लिए एक सजा बन गया था।
पब्लिश्ड 24 June 2025 at 21:05 IST