अपडेटेड 9 April 2024 at 20:59 IST

दिल्ली के CM केजरीवाल को हाई कोर्ट ने लगाई फटकार? कहा- 'यह न्यायिक प्रक्रिया पर आक्षेप लगाने जैसा'

Delhi News Arvind Kejriwal: दिल्ली HC ने धनशोधन के मामले में एक सरकारी गवाह के बारे में किए गए दावे को लेकर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से अप्रसन्नता जताई।

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CM Arvind Kejriwal
सीएम अरविंद केजरीवाल | Image: Republic

Delhi News Arvind Kejriwal: दिल्ली उच्च न्यायालय ने धनशोधन के मामले में एक सरकारी गवाह के बारे में किए गए दावे को लेकर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से मंगलवार को अप्रसन्नता जताई और कहा कि यह न्यायिक प्रक्रिया पर "आक्षेप लगाने" जैसा है। अदालत ने कहा कि सरकारी गवाहों से संबंधित कानून 100 साल से अधिक पुराना है और इसे आम आदमी पार्टी (आप) के नेता को फंसाने के लिए नहीं बनाया गया है।

केजरीवाल ने दावा किया था कि धनशोधन मामले में उनके खिलाफ सरकारी गवाह बने एक व्यक्ति ने चुनावी बॉन्ड के माध्यम से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को चंदा दिया था। उच्च न्यायालय ने दिल्ली आबकारी नीति मामले से जुड़े धनशोधन मामले में गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली केजरीवाल की याचिका खारिज कर दी।

'किसने किसके लिए चुनावी बॉन्ड खरीदे, कोर्ट का सरोकार नहीं'

अदालत ने कहा कि उसका इस बात से कोई सरोकार नहीं है कि किसने किसके लिए चुनावी बॉन्ड खरीदे और वह अपने समक्ष मामले में केवल कानून के प्रावधानों को लागू करने को लेकर जिम्मेदार है।

न्यायमूर्ति स्वर्णकांता शर्मा ने केजरीवाल की गिरफ्तारी और उसके बाद उन्हें प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की हिरासत में भेजे जाने के खिलाफ दायर आप के राष्ट्रीय संयोजक की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि माफी देने के तरीके या सरकारी गवाहों के बयान दर्ज करने के तरीके पर आक्षेप लगाना न्यायिक प्रक्रिया पर आक्षेप लगाने के समान है।

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केजरीवाल ने याचिका में कई आधारों पर अपनी रिहाई का आग्रह किया। इनमें यह भी शामिल है कि सरकारी गवाहों- राघव मगुंटा और सरत रेड्डी के विलंबित बयानों पर भरोसा नहीं किया जा सकता क्योंकि इनमें से एक ने चुनावी बॉन्ड के जरिए सत्तारूढ़ पार्टी को चंदा भी दिया था।

सरकारी गवाहों से संबंधित कानून "100 वर्ष से अधिक पुराना"

अदालत ने अपने फैसले में कहा, "इस अदालत की राय में, चुनाव लड़ने के लिए टिकट कौन देता है या चुनावी बॉन्ड कौन खरीदता है और किस उद्देश्य से देता है, इस अदालत का इससे कोई सरोकार नहीं है क्योंकि इस अदालत के लिए कानून और दर्ज किए गए सबूतों को उसी रूप में लागू करना आवश्यक है।"

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यह उल्लेख करते हुए कि सरकारी गवाहों से संबंधित कानून "100 वर्ष से अधिक पुराना" है और "वर्तमान याचिकाकर्ता को गलत तरह से फंसाने" के लिए नहीं बनाया गया है, अदालत ने कहा कि आप नेता के खिलाफ सरकारी गवाहों के बयानों का परीक्षण मुकदमे के दौरान किया जाएगा और इस स्तर पर वह लघु मुकदमा नहीं चला सकती है।

अदालत ने कहा कि वर्तमान मामला न तो पहला और न ही आखिरी है जिसमें सरकारी गवाहों के बयान दर्ज किए गए हैं। उसने कहा कि केजरीवाल मुकदमे के चरण में सरकारी गवाहों से जिरह करने के लिए स्वतंत्र होंगे।

यह मामला 2021-22 के लिए दिल्ली सरकार की आबकारी नीति तैयार करने और क्रियान्वित करने में कथित भ्रष्टाचार तथा धनशोधन से संबंधित है। संबंधित नीति को बाद में रद्द कर दिया गया था। धन शोधन रोधी एजेंसी की दंडात्मक कार्रवाई से सुरक्षा देने से उच्च न्यायालय के इनकार के कुछ ही घंटे बाद ईडी ने केजरीवाल को 21 मार्च को गिरफ्तार कर लिया था। ईडी हिरासत की अवधि समाप्त होने पर निचली अदालत में पेश किए जाने के बाद उन्हें एक अप्रैल को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया था।

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Published By : Kunal Verma

पब्लिश्ड 9 April 2024 at 20:59 IST