अपडेटेड 23 January 2024 at 17:38 IST

Explainer: 26 जनवरी को ही 'रिपब्लिक डे' क्यों? 'पूर्ण स्वराज' की वो कहानी, जिसे जानना बेहद जरूरी

26 January Republic Day News: कहा जाता है कि 26 जनवरी को भारत का संविधान लागू हुआ था, इसलिए 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस मनाया जाता है। हालांकि, कहानी कुछ और है।

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26 January Republic Day
रिपब्लिक डे रिहर्सल 2020 फोटो (प्रतीकात्मक उपयोग के लिए) | Image: PTI

26 January Republic Day News: हम सभी जानते हैं कि संविधान सभा ने 26 नवंबर 1949 को ही आधिकारिक तौर पर भारत के संविधान को मंजूरी दे दी थी और 26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान लागू हुआ था। कहा जाता है कि इसी वजह से 26 जनवरी को रिपब्लिक डे यानी गणतंत्र दिवस मनाया जाता है, लेकिन कहानी बस इतनी ही नहीं है।

इसकी पूरी कहानी हमें इतिहास के उन पन्नों में मिलती है जब आजादी की लड़ाई के लिए भारत के क्रांतिकारियों का जुनून चरम पर था। इसमें 'पूर्ण स्वराज' का जिक्र मिलता है, जिसका मतलब था- अंग्रेजों से पूरी तरह से छुटकारा। इसके लिए 26 जनवरी 1930 को 'पूर्ण स्वराज' की घोषणा की गई थी।

1920 के बाद डाली गई थी ‘स्वतंत्रता संग्राम के भविष्य’ की नींव

फरवरी 1922 में चौरी-चौरा कांड से महात्मा गांधी को ये तो एहसास हो गया था कि देश अभी अहिंसा के रास्ते पर चलकर इस लड़ाई को लड़ने के लिए तैयार नहीं है। हालांकि, भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद जैसे क्रांतिकारियों ने असहयोग आंदोलन के बाद ही ये तय कर लिया था कि अब किस पैमाने पर स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई को आगे बढ़ाना है।

असल में, साल 1927 में अंग्रेजों ने साइमन कमीशन की नियुक्ति की थी, जिसके नेतृत्व की जिम्मेदारी सर जॉन साइमन को सौंपी गई थी और उस टीम में कुल 7 सदस्य थे। इस कमीशन के आने से देशभर में आक्रोश की लहर फैल गई। उस वक्त 'साइमन कमीशन वापस जाओ' का नारा भी खूब प्रचलित हुआ।

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जब कांग्रेस में शुरू हो गया था आंतरिक विवाद

साइमन कमीशन के जवाब में एक अन्य कमीशन की नियुक्ति की गई, जिसका नेतृत्व मोतीलाल नेहरू कर रहे थे। नेहरू रिपोर्ट में मांग की गई कि भारत को ब्रिटिश साम्राज्य के भीतर प्रभुत्व का दर्जा दिया जाए। 1926 की बाल्फोर घोषणा में बताया गया कि इस प्रभुत्व का मतलब है कि ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन ही एक स्वायत्त समुदाय होगा, जो स्थिति में समान होगा, लेकिन किसी भी तरह से अपने घरेलू या बाहरी मामलों के किसी भी पहलू में एक दूसरे के अधीन नहीं होगा। हालांकि, अंग्रेजों के प्रति एक आम निष्ठा से ये दोनों एकजुट रहेंगे।

इस रिपोर्ट ने कांग्रेस के भीतर ही विवाद खड़ा कर दिया। सुभाष चंद्र बोस और जवाहर लाल नेहरू जैसे युवा नेताओं ने साफ-साफ कह दिया कि देश अंग्रेजों से हर नाता तोड़ना चाहता है। उनका कहना था कि डोमिनियन स्टेटस में भारत को स्वतंत्रता तो मिलेगी, लेकिन भारत के मामलों में हस्तक्षेप करने का अधिकार ब्रिटिश सरकार के पास भी होगा, जो बिल्कुल सही नहीं है।

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जब अपनी ही बात से पलट गए थे वायसराय इरविन

विवादों के बीच गांधी जी ने डोमिनियन स्टेटस के लिए हामी भर दी। उनका मानना था कि ये भारत के स्वतंत्रता के लिए पहली सीढ़ी हो सकती है। इसके बाद साल 1929 में वायसराय इरविन ने भी ऐलान कर दिया कि भारत को भविष्य में डोमिनियन स्टेटस मिलेगा। इसे इरविन घोषणापत्र के रूप में परिभाषित किया जाता है। हालांकि, इरविन के इस ऐलान ने उनके घर में ही विवाद खड़ा कर दिया। ब्रिटिश जनता को ये ऐलान पसंद नहीं आया। ऐसे में घर से बढ़ते दबाव को कम करने के लिए इरविन अपनी बातों से पलट गए। इससे भारत के नेताओं को बड़ा झटका लगा, जिसने 'पूर्ण स्वराज' के उद्घोष की आधारशिला रखी।

'पूर्ण स्वराज' का ऐलान

दिसंबर 1929 में कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में 'पूर्ण स्वराज' का प्रस्ताव पास हुआ। इसमें कहा गया था- 'भारत में ब्रिटिश सरकार ने न केवल भारतीय लोगों को उनकी स्वतंत्रता से वंचित किया है, बल्कि खुद को जनता के शोषण पर आधारित कर लिया है और भारत को आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक रूप से बर्बाद कर दिया है। इसलिए भारत को ब्रिटिश संबंध तोड़ देना चाहिए और पूर्ण स्वराज या पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त करनी चाहिए।'

आपको बता दें कि 'पूर्ण स्वराज' की यह घोषणा आधिकारिक तौर पर 26 जनवरी, 1930 को की गई थी। कांग्रेस ने देशभर के लोगों से आह्वान किया कि वो अपने घरों से बाहर निकलें और इस दिन को 'आजादी दिवस' के तौर पर मनाएं। पूरे देश में तिरंगा भी लहराया गया और भक्ति गीत से देशभर में आजादी की मसाल जलाई गई। इसी वजह से संविधान को मंजूरी मिलने के बाद 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के लिए चुना गया और उसी दिन संविधान को लागू किया गया।

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Published By : Kunal Verma

पब्लिश्ड 22 January 2024 at 21:10 IST