अपडेटेड 25 June 2024 at 10:06 IST

राजनारायण, मीसा, मीडिया पर सेंसरशिप; 25 जून का काला दिन, इंदिरा के फैसले ने जब घोंटा लोकतंत्र का गला

Emergency in India: 49 साल पहले 25 जून 1975 को देश में आपातकाल लागू हुआ था। राजनारायण आपातकाल की कहानी के सबसे अहम किरदार थे।

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Indira Gandhi
Indira Gandhi | Image: File

25 June Emergency: आज 25 जून है, जिसे पूरा हिंदुस्तान कभी भूल नहीं सकता है। भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस की विचाराधारा से दूर रहने वाले लोग आज के इस दिन को काला दिन बताते हैं और काला दिवस के रूप में इसे मनाते भी हैं, क्योंकि तकरीबन 5 दशक पहले जब सत्ता में कांग्रेस थी और देश का नेतृत्व इंदिरा गांधी कर रही थीं, उस समय परिदृश्य ऐसा बदला कि पूरा हिंदुस्तान आपातकाल में चला गया। मतलब उस वक्त में पूरे हिंदुस्तान के भीतर सत्ता हावी हो गई और लोकतंत्र का गला घोंट दिया गया था। उस दौर की परिस्थितियां और हालातों को कोई भी भुलाए भूल नहीं पाता है। इसीलिए 25 जून का वो दिन फिर सभी के जहन में जिंदा हो चुका है। आज उस आपातकाल को 49 बरस पूरे हो गए हैं।

49 साल पहले 25 जून 1975 को देश में आपातकाल लागू हुआ था। इस पूरे घटनाक्रम में 3 अहम कड़ियां हैं, जिन्हें समझने की जरूरत है। इसमें पहले शुरुआत राजनारायण से कर लेते हैं, क्योंकि वो आपातकाल की कहानी के सबसे अहम किरदार हैं।

राजनारायण कौन थे?

पूर्वांचल के शहर वाराणसी के मोतीकोट गांव में एक संपन्न भूमिहार ब्राह्मण परिवार में राजनारायण का जन्म हुआ। वो शाही परिवार से जुड़े थे। बनारस राज्य के शासक नारायण महाराजा चेत सिंह और महाराजा बलवंत सिंह थे, जिनकी पीढ़ियों बढ़ती गई हैं और उन्हीं पीढ़ी में से अनंत प्रसाद सिंह के घर राजनारायण जन्म हुआ। राजनारायण एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और राजनीतिज्ञ थे। उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय पढ़ाई की और बाद में वो देश की सक्रिय राजनीति का हिस्सा बने। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान वो जेल जाने वाले लोगों में शामिल थे।

राजनारायण कैसे आपातकाल की कहानी के किरदार बने?

5वीं लोकसभा के लिए मार्च 1971 आम चुनाव हुए। 'गरीबी हटाओ देश बचाओ' जैसा नारा इंदिरा गांधी के लिए 'तुरुप का इक्का' साबित हुआ। देश में एक बड़े बहुमत के साथ कांग्रेस की सरकार बनी थी। कांग्रेस को 352 सीटें मिली थीं। कुछ वक्त तक इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार चलती रही। इंदिरा गांधी ने रायबरेली सीट से चुनाव लड़ा था और उनके खिलाफ राम मनोहर लोहिया की पार्टी के नेता राजनारायण थे। उस चुनाव में राजनारायण ने हार के बाद कोर्ट पहुंच गए थे। 24 अप्रैल 1971 को राजनारायण ने इंदिरा गांधी की जीत को चुनौती दी। आरोप लगाया कि इंदिरा गांधी की चुनाव में कई सरकारी अधिकारियों ने मदद की थी, जिसमें सशस्त्र बल और स्थानीय पुलिस शामिल थे।

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मामले में 12 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट का सबसे अहम फैसला आया। हाईकोर्ट के जज जगमोहन लाल सिन्हा ने इंदिरा गांधी के संसदीय चुनाव को अवैध घोषित कर दिया था। उसके अलावा लोकसभा सदस्यता रद्द करने और अगले 6 साल तक चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी गई थी। बाद में 24 जून को सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर मुहर लगाई। हालांकि इंदिरा गांधी को पीएम बने रहने की छूट थी।

अदालतों के फैसले के बाद जयप्रकाश नारायण (जेपी नारायण) जैसे कई नेता इंदिरा गांधी के खिलाफ सड़कों पर उतर आए। बार-बार इंदिरा को पीएम पद छोड़ने के लिए प्रेशर किया जाने लगा। देश में  हालात इंदिरा गांधी को अपने प्रतिकूल लगे। इससे इंदिरा गांधी पर प्रधानमंत्री पद छोड़ने का प्रेशर और बढ़ने लगा था। इधर, जेपी नारायण बड़े आंदोलन की तैयारी कर रहे थे। अदालत का फैसला इंदिरा गांधी के खिलाफ था। सुप्रीम कोर्ट से भी राहत नहीं मिली थी तो देश की सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के अगले दिन ही 25 जून को इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगाए जाने की घोषणा कर डाली। सभी मौलिक अधिकार निलंबित कर दिए गए थे। विपक्षी नेताओं को पकड़-पकड़कर जेल में डाला गया। मीडिया के ऊपर भी सेंसरशिप लगा दी गई थी।

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आपातकाल से पहले लगा दिया था मीसा कानून

हालांकि आपातकाल लगाने से पहले विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारी, मीडिया पर सेंसरशिप के लिए एक अहम कानून पर विचार विमर्श किया गया था, जिसके तहत सब कुछ कराया गया था। ये कानून था मीसा एक्ट (MISA Act)। मीसा कानून मतलब आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम, जिसमें आपातकाल के वक्त कई संशोधन किए गए और फिर इसी कानून के तहत राजनीतिक विरोधियों को कुचलने का काम कराया गया था। 1971 में मीसा कानून लगाने करके आपातकाल के दौरान कांग्रेस विरोधियों, पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी कराई गई। उस वक्त जेलों के भीतर मीसाबंदियों की भरमार हो चुकी थी। नागरिक अधिकार पहले ही खत्म करा दिए गए थे। आरोप यहां तक हैं कि मीसा कानून के जरिए लोगों की सुरक्षा के नाम पर प्रताड़ना हुई। उनकी संपत्ति तक छीन ली गईं।

लगाई गई थी मीडिया पर सेंसरशिप

उस दौर में देश के भीतर जो हालात थे, उनके बारे में बताने, दिखाने और सूचनाओं का एकमात्र जरिया मीडिया था, लेकिन उसके ऊपर भी सेंसरशिप लगा दी गई थी। 28 जून को सरकार ने मीडिया पर सेंसरशिप लागू की। बताया जाता है कि आपातकाल के दौरान कई बड़े अखबारों के दफ्तर की बिजली काट दी गई। खबरों को सेंसर किया जाने लगा था। बिना अनुमति के अखबार नहीं छपते थे। आपत्तिजनक खबर को छापने की मनाही थी। यही नहीं, कार्टूनों, तस्वीरों और विज्ञापनों को भी पहले सेंसरशिप के लिए भेजना पड़ता था, जो उसके दायरे में आते थे। एक तरीके से कहें तो मीडिया के हाथ बांध दिए गए थे।

आज तक आपातकाल का दंश झेल रही है कांग्रेस

आपातकाल कांग्रेस के लिए एक बड़ी भूल साबित हुई। 1977 के अगले ही आम चुनाव में रायबरेली से इंदिरा गांधी बतौर प्रधानमंत्री हार गई थीं। जनता पार्टी के उम्मीदवार के रूप में राजनारायण ने ही इंदिरा गांधी को हराया था। उस चुनाव में उत्तर प्रदेश और बिहार में कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया था। खैर, अभी 49 साल आपातकाल को बीत चुके हैं। हालांकि इसका दंश आज तक कांग्रेस झेल रही है।

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Published By : Amit Bajpayee

पब्लिश्ड 25 June 2024 at 10:06 IST