अपडेटेड 30 November 2024 at 09:37 IST
कहानी लिखना फिल्म निर्माण का सबसे मुश्किल हिस्सा : प्रकाश झा
प्रख्यात फिल्मकार प्रकाश झा ने शुक्रवार को कहा कि किसी फिल्म के लिए कहानी लिखना फिल्म निर्माण का सबसे कठिन हिस्सा है। झा ने कहा कि वह अपनी फिल्मों को कई बार ड्राफ्ट करते हैं और अंतिम रूप देने से पहले उन्हें उद्योग के सर्वश्रेष्ठ पटकथा लेखकों की कड़ी जांच से गुजरने देते हैं।
- मनोरंजन समाचार
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प्रख्यात फिल्मकार प्रकाश झा ने शुक्रवार को कहा कि किसी फिल्म के लिए कहानी लिखना फिल्म निर्माण का सबसे कठिन हिस्सा है। झा ने कहा कि वह अपनी फिल्मों को कई बार ड्राफ्ट करते हैं और अंतिम रूप देने से पहले उन्हें उद्योग के सर्वश्रेष्ठ पटकथा लेखकों की कड़ी जांच से गुजरने देते हैं।
यहां भारत के क्राइम लिटरेचर फेस्टिवल के दूसरे संस्करण के उदघाटन समारोह में झा ने कहा कि एक बार जब फिल्म की कहानी तैयार हो जाती है तो उसे बनाना आसान हो जाता है । उन्होंने बताया कि 'गंगाजल' की कहानी लिखने में उन्हें आठ साल और 'राजनीति' की कहानी लिखने में छह साल लगे और इस दौरान उनके ड्राफ्ट कई बार लिखे गए ।
गंगाजल, राजनीति, अपहरण और आरक्षण जैसी सामाजिक और राजनीतिक रूप से प्रासंगिक फिल्में बनाने के लिए विख्यात झा ने कहा, 'किसी फिल्म की कहानी लिखना एक समय लेने वाली प्रक्रिया है, लेकिन मैं इसका पूरा आनंद लेता हूं। गंगाजल की कहानी लिखने में मुझे आठ साल लगे। मैंने इसे 13 बार लिखा। राजनीति (की कहानी) लिखने में मुझे छह साल लगे। '
क्राइम लिटरेचर फेस्टिवल को केवल अपराध साहित्य के लिए समर्पित होने के कारण अद्वितीय बताते हुए झा ने कहा कि अपराध इंसानों में प्राकृतिक रूप से आता है और अपराध के बिना रामायण और महाभारत जैसे हमारे सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य नहीं लिखे जा सकते थे ।
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उन्होंने कहा, इन महाकाव्यों के पात्रों द्वारा की गई गलतियां ही उनकी कहानियों को आगे ले जाती हैं और उन्हें महाकाव्य का स्तर प्राप्त कराती हैं । झा ने कहा, ‘ मैं मूल रूप से कहानी सुनाने वाला हूं और मेरा मानना है कि कहानी घटनाओं से नहीं, दुर्घटनाओं से बनती है ।’ कार्यक्रम की मुख्य अतिथि माता श्री मंगला के भाषण, जिसमें उन्होंने अपराध-मुक्त समाज के बारे में बात की थी, का हल्के-फुल्के अंदाज में जिक्र करते हुए झा ने कहा, 'मुझे आश्चर्य है कि अगर समाज में कोई अपराध नहीं होता तो मैं अपनी कहानियां कहां से लाता।
उन्होंने कहा, ‘ अपराध हमारे अंदर से आता है । अगर अपराध नहीं होता तो पुलिस भी नहीं होती । हम सबमें आपराधिक प्रवृत्ति है । बच्चे वही काम क्यों करते हैं जो उन्हें करने से मना किया जाता है ।’ अपराध को एक जटिल विषय बताते हुए उन्होंने कहा कि यह जरूरी नहीं है कि अपराध करने वाले लोग बुरे व्यक्ति हों । कोविड महामारी के दौरान ओटीटी प्लेटफार्म पर रिलीज अपनी फिल्म 'परीक्षा' का उदाहरण देते हुए झा ने कहा कि यह एक रिक्शा चलाने वाले की कहानी है जो पढ़ाई में मेधावी अपने पुत्र की शिक्षा का खर्च उठाने के लिए चीजें चुराना शुरू कर देता है । उन्होंने पूछा, 'क्या आप उसे अपराधी कहेंगे ।'
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फेस्टिवल के अध्यक्ष और उत्तराखंड के पूर्व पुलिस महानिदेशक अशोक कुमार ने कहा कि इस प्रकार के आयोजन का विचार उनके दिमाग में आया क्योंकि वह पुलिस बल के बारे में मिथकों को तोड़ना चाहते थे । उन्होंने कहा कि बॉलीवुड फिल्मों के सीन की तरह पुलिस के बारे में प्रचलित धारणा थी कि पुलिस अपराध होने और अपराधियों के भागने के बाद अंत में पहुंचती है । मैं लोगों को नौकरी की कठिनाइयों और दबावों तथा पुलिसकर्मियों की पेशेवर जीत के बारे में बताना चाहता था जिन पर अक्सर ध्यान ही नहीं दिया जाता।'
Published By : Shubhamvada Pandey
पब्लिश्ड 30 November 2024 at 09:37 IST