Updated April 26th, 2024 at 14:33 IST

NOTA को मान लें उम्मीदवार... SC में शिव खेड़ा ने लगाई याचिका, सूरत सीट पर BJP की जीत का दिया हवाला

NOTA मतलब नन ऑफ द अबव वोटिंग का ऐसा विकल्प है, जो चुनावी मैदान में खड़े किसी भी उम्मीदवार को प्राथमिकता नहीं देने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

Reported by: Digital Desk
Edited by: Dalchand Kumar
नोटा को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई। | Image:ANI/PTI
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NOTA: जब देश में 18वीं लोकसभा के लिए चुनाव प्रक्रिया जारी है, उसी बीच सुप्रीम कोर्ट में NOTA को लेकर एक याचिका दायर की गई है। दिल्ली के रहने वाले शिव खेड़ा नाम के याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगाई है, जिसमें NOTA को प्रत्याशी मानने और निर्विरोध चुनाव पर रोक लगाने की मांग की गई है। याचिका पर सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट भी तैयार हो चुका है, क्योंकि उसने चुनाव आयोग को नोटिस जारी कर दिया है।

याचिका में कहा गया है कि नोटा (NOTA) को भी एक प्रत्याशी माना जाए और अगर नोटा को सर्वाधिक वोट मिले तो उस सीट पर दोबारा चुनाव कराया जाए। याचिकाकर्ता की तरफ से इसको लेकर सूरत का भी उदाहरण दिया गया। पिछले दिनों ही गुजरात की सूरत लोकसभा सीट पर एक ऐसा वाकया देखा गया, जिसमें बीजेपी के प्रत्याशी मुकेश दलाल वोटिंग होने से पहले ही जीत गए थे। वो इसलिए कि सूरत में कांग्रेस उम्मीदवार का पर्चा रद्द हो गया था। इधर, बाकी निर्दलीय उम्मीदवारों ने भी नाम वापस ले लिए थे। इस स्थिति में बीजेपी कैंडिडेट को निर्विरोध निर्वाचित घोषित कर दिया गया था। फिलहाल इसी के आधार पर NOTA का मसला उठा है।

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नोटा से कम वोट मिलने पर बैन की मांग

याचिका में आगे कहा गया, 'किसी भी प्रत्याशी के खिलाफ अगर दूसरा कोई प्रत्याशी पर्चा नहीं दाखिल करता या पर्चा वापस ले लेता है तो भी निर्विरोध नहीं घोषित किया जाना चाहिए, क्योंकि चुनाव के समय ईवीएम में नोटा (NOTA) का भी विकल्प है।' याचिका में मांग की गई है कि अगर किसी उम्मीदवार को नोटा से भी कम वोट मिलते हैं तो उसे किसी भी चुनाव लडने से 5 साल तक की रोक लगाई जाए। नोटा को भी एक काल्पनिक उम्मीदवार के तौर पर प्रचारित किया जाए।

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क्या है NOTA?

NOTA मतलब नन ऑफ द अबव (इनमें से कोई नहीं) वोटिंग का ऐसा विकल्प है, जो चुनावी मैदान में खड़े किसी भी उम्मीदवार को प्राथमिकता नहीं देने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। आसान भाषा में कहा जाए तो कोई मतदाता चुनाव में किसी भी उम्मीदवार को अपना समर्थन नहीं देना चाहता है तो उसके पास NOTA का चयन करने का विकल्प होता है। चुनाव नतीजों के दौरान इन वोटों को गिना भी जाता है।

नोटा को 2013 में सभी स्तर के चुनावों में शामिल किया गया था, जिसमें संसद, विधानसभा और स्थानीय निकाय चुनाव भी है।  2013 के सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद NOTA को EVM में जोड़ा गया था। 'पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज बनाम यूनियन ऑफ इंडिया' मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि जनता को मतदान के लिए NOTA का भी विकल्प उपलब्ध कराया जाए। हालांकि नोटा राइट टू रिजेक्ट के लिए नहीं है। इसको लेकर कानून ये कहता है कि नोटा को ज्यादा वोट मिलने पर भी इसका कोई कानूनी नतीजा नहीं होता है। मतलब पहले नंबर वाले उम्मीदवार को विजेता घोषित किया जाएगा।

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Published April 26th, 2024 at 14:33 IST

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