Updated March 19th, 2024 at 14:40 IST
पशुपति पारस के इस्तीफे पर तेज प्रताप की पहली प्रतिक्रिया- महागठबंधन में स्वागत है, उन्हें पहले ही...
एनडीए से आरएलजेपी ने नाता तोड़ लिया है। पशुपति पारस ने बिहार लोकसभा चुनाव में एक भी सीट न देने पर नाराजगी जाहिर की तो राजद नेता ने झट से इन्विटेशन भेज दिया।
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Bihar Politics: राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे और नेता तेज प्रताप यादव ने पशुपति पारस को एक ऑफर दिया है। अचानक ही उनकी तारीफ की है और निमंत्रण भेज दिया है। खुले निमंत्रण में उनके साथ हुए अन्याय का भी जिक्र है।
तेज प्रताप ने कहा उन्होंने अब सही काम किया है। दरअसल, पारस ने अपने साथ हुई नाइंसाफी का आरोप लगाते हुए केन्द्रीय कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया था। उनके मुकाबले एनडीए में उनके भतीजे चिराग पासवान को तवज्जो दी गई इससे नाराज होकर उन्होंने मीडिया से मुखातिब हो अपनी बात रखी।
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क्या बोले तेज प्रताप?
RLJP प्रमुख पशुपति पारस द्वारा केंद्रीय मंत्री पद से इस्तीफा देने पर राजद नेता तेज प्रताप यादव ने कहा, "NDA में तो नाइंसाफी होती ही है। अच्छा किया कि उन्होंने(पशुपति पारस) छोड़ दिया। उनको तो बहुत पहले ही छोड़ देना चाहिए था...यह अच्छा निर्णय है..."
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चाचा के मुकाबले भतीजे को तरजीह खल गई!
2019 में एलजेपी एक थी। बंटवारा नहीं हुआ था। लेकिन रामविलास पासवान के निधन बाद टूट पड़ गई। एक गुट चिराग ने बनाया तो दूसरा चाचा पशुपति पारस ने। दोनों दलित वोट बैंक का खुद को दावेदार साबित करते रहे। चाचा भाई के खून पसीने से सींची सीट चाह रहे थे तो बेटा बतौर उत्तराधिकारी खुद को ज्यादा बेहतर। अंततः युवा चिराग पारस के मुकाबले बीस साबित हुए। चाचा की चाहत को ठेस लगी और उन्हें हाजीपुर से टिकट नहीं दिया गया। चिराग के पिता रामविलास पासवान 9 बार लोकसभा सांसद रहे थे। 2019 में पशुपति पारस यहां से पहली बार चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे थे।
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बिहार के जातीय समीकरण को देखें तो राज्य में दलितों की आबादी 20 परसेंट के आसपास है। इसमें भी पासवान साढ़े 5 फीसदी हैं, जो कोर वोटर है एलजेपी का। इससे क्या फर्क पड़ेगा, सवाल यही है। तो जवाब है एनडीए में रहकर लड़ाई लड़ने का दम। फायदा दोनों को है। एनडीए का बढ़ता कद और 5-6 फीसदी पासवान वोट बैंक दोनों के लिए पॉजिटिविटी का संचार करेंगे ऐसा राजनीति के पारखी मानते हैं।
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रामविलास पासवान की सीट पर दावेदारी की जंग!
1977 चुनाव में रामविलास पासवान ने जनता पार्टी के टिकट पर दम दिखाया। कांग्रेस उम्मीदवार को सवा चार लाख वोटों के अंतर से हरा गिनीज बुक में रिकॉर्ड दर्ज करा लिया। ये पहली बार था जब किसी नेता ने इतनी बड़ी जीत हासिल की थी। 1984 और 2009 का चुनाव छोड़कर वो कभी नहीं हारे। 2019 में भाई पशुपति के लिए सीट छोड़ राज्यसभा चले गए।
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Published March 19th, 2024 at 13:51 IST
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