Updated April 17th, 2024 at 09:43 IST
वो यादगार चुनाव, जब राजनारायण ने कांग्रेस के गढ़ रायबरेली में घुसकर तत्कालीन PM इंदिरा को दी थी मात
इंदिरा गांधी को चुनौती देने की कोई सोच भी नहीं सकता था, लेकिन फिर वो तो राजनारायण थे। धारा के विपरीत बहने का हुनर उन्हें बखूबी आता था!
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Rajnarayan Vs Indira Gandhi: सितंबर 2023 का दिन। अपने संसदीय क्षेत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विशाल जन समूह। गंजारी की जनसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकबंधु राजनारायण को याद करते हुए कहा- यहां से कुछ दूर पर राजनारायण जी का गांव मोतीकोट है। मैं उनकी जन्मभूमि को प्रणाम करता हूं। राजनारायण का जिक्र छेड़ पीएम मोदी ने भारतीय लोकतांत्रिक इतिहास के काले अध्याय की याद दिला दी। इमरजेंसी की। वो दौर जब राजनेताओं, मानिंद लोगों, सरकार के खिलाफ लिखने बोलने वालों को जेल में अकारण ही डाल दिया जाता था। लोगों के हकों पर डाका डाला गया और ऐसे दौर में ही राजनारायण ने केंद्र को ललकारा।
अपनी शर्तों और जिद्द के चलते देश की पीएम से लोहा लिया। राजनीति में टिके भी और लोगों के दिलों में राज भी किया। राजनीति के अखाड़े में इंदिरा गांधी की आंखों में आंखे डालकर चैलेंज करने का हौसला किसी ने दिखाया तो वो थे लोकबंधु राजनारायण। कानूनी जंग भी जीती और लोकतांत्रिक तरीके से भी धूल चटाई। समाजवादी योद्धा के तौर पर जाने जाते हैं राजनारायण। पूर्वी उत्तर प्रदेश में आज भी लोगों के प्रिय नेताओं में शुमार हैं। इनके नाम कई रिकॉर्ड हैं कुछ पॉजिटिव तो कुछ उनके राजनीतिक करियर को डिफाइन करते हुए।
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समाजवादी योद्धा सियासत में नंबर 1
समाजवादी योद्धा के तौर पर ख्याति प्राप्त राजनेता थे राजनारायण सिंह। सियासत की पिच पर बैटिंग फ्रंट फुट पर की। तभी तो राजनीति के जायंट किलर के तौर पर भी पहचान बनाई। ऐसे किलर जो स्वभाव से फक्कड़ थे और मात भी दी तो राजनीति के आसमान की चमकती शख्सियत इंदिरा गांधी को। मात भी ऐसी वैसी नहीं बल्कि उनके राजनीतिक करियर पर ही अर्धविराम लगा दिया। एक नहीं 6 साल तक इंदिरा चुनाव नहीं लड़ पाईं। 1971 में सभी संभावनाओं आशंकाओं को दरकिनार कर रायबरेली से ताल ठोकी, इंदिरा से एक लाख वोटों से हारे लेकिन हार मानी नहीं। हाईकोर्ट का दर खटखटाया। न्यायालय ने आपत्ति को सही ठहराया और इंदिरा गांधी की जीत को अवैध ठहराया, लेलोकबंधु राजनारायण के हक में फैसला गया। बहुत बड़ी जीत थी। नतीजतन इंदिरा को छह वर्ष तक चुनाव लड़ने से रोक दिया गया।
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चरण सिंह के हनुमान ने इंदिरा को दी मात
राजनारायण इस जीत के बाद भी डटे रहे, डिगे नहीं। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को पहले कोर्ट में हराया और इसके बाद राजनीति के अखाड़े में भी इंदिरा गांधी को रायबरेली में करारी शिकस्त दी। 1977 में 19 महीने बाद जेल से बाहर आए तो एक संकल्प लेकर। इंदिरा को चुनावी जमीन पर फिर से हराने की मंशा के साथ आगे बढ़े। समर्थकों को भी जीत का यकीन नहीं था। संशय में सब थे। लेकिन चौधरी चरण सिंह के गहरे दोस्त और खुद को उनका हनुमान बताने वाले राजनारायण ने यलगार कर ही दिया। जीते और केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री के तौर पर सेवाएं दी।
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आजादी के बाद सबसे ज्यादा बार गए जेल
राजनारायण सिंह पक्के समाजवादी थे। समाज को बहुत कुछ दिया। 69 साल की जिंदगी में वो 80 बार जेल गए। एकमात्र ऐसे स्वतंत्रता सेनानी जो आजादी के आंदोलन से ज्यादा आजादी के बाद जेल गए। अपने जीवन काल में ही बालिका शिक्षा को लेकर गंभीर रहे। बालिका शिक्षा के लिए राजदुलारी बालिका विद्यालय की स्थापना की।
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1980 में वाराणसी से कमलापति त्रिपाठी के खिलाफ चुनाव लड़े। इससे पहले उनको प्रणाम कर ये भी कहा कि आशीर्वाद बनाए रखिएगा। किस्सा कुछ यूं है कि राज नारायणजी जब अपना पर्चा भरने जा रहे थे तो वो कमलापतिजी के यहाँ गए और बोले, पंडितजी प्रणाम करने आया हूँ। आपका आशीर्वाद लेने...पर्चा भरने का पैसा मुझे आपसे ही लेना है। मैं आपके गुरु आचार्य नरेंद्र देव का शिष्य रहा हूँ। अब हम दोनों आमने सामने हैं। कोशिश यही करूंगा कि मेरी तरफ़ से आपकी मर्यादा का कोई हनन न हो।
ये उन दिनों की बात है…
किताब 'ऑल द जनता मेन' में एक दिलचस्प किस्सा है जो इस शख्सियत को डिफाइन करता है। बात 1958 की है। राजनारायण के राजनीतिक जीवन का सबसे बड़ा दिन था सितंबर, 1958। उन्होंने अपने समाजवादी साथियों के साथ उत्तर प्रदेश विधानसभा में ऐसा हंगामा बरपाया कि उनको सदन से निकलवाने के लिए पहली बार हेलमेट लगाए पुलिसकर्मियों को सदन के अंदर बुलाना पड़ा। हृष्ट पुष्ट साढ़े तीन मन वज़न के राजनारायण ज़मीन पर लेट गए। पुलिस वालों को उन्हें खींच कर ज़मीन पर घसीटते हुए सदन से बाहर ले जाना पड़ा था। इस दौरान उनके पूरे कमड़े फट गए। उनके जिस्म पर सिर्फ़ एक लंगोट बच गई थी।
एक और काम जो उन्होंने किया उसकी चौतरफा चर्चा होती है। ये बेयर फुट डॉक्टर्स को लेकर है। स्वास्थ्य मंत्री के तौर पर उन्होंने एक बड़ा ऐतिहासिक फ़ैसला लिया। तब झोला छाप डॉक्टर को 'बेयर फ़ुट' डॉक्टर कहा जाता था। उनके लिए उन्होंने बहुत काम किया। उन्होंने स्वास्थ्य सेवाओं को आम लोगों तक पहुंचाने की कोशिश का तब ग्रास रूट पर असर भी दिखा था।
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सब कुछ दान कर गए राजनारायण
31 दिसंबर, 1986 को राजनारायण ने दिल्ली के लोहिया अस्पताल में अंतिम सांस ली। बाद में बैंक खाता देखा गया तो उसमें महज साढ़े चार हजार रुपए थे। घर से संपन्न शख्सियत ने आठ सौ एकड़ पुश्तैनी कृषिभूमि का बड़ा हिस्सा दलितों-पिछड़ों को बांट दी। इसलिए क्योंकि वो अपनी विचारधारा से विवश थे। उस सोच के अनुसार जोतने-बोने वालों को ही कृषिभूमि का मालिक बनाने के पक्ष में थे और ऐसा कर भी दिखाया। ऐसे शख्स जो जिए भी ठसक से और दुनिया से विदा हुए भी तो शान से!
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Published April 16th, 2024 at 13:36 IST