अपडेटेड 15 November 2025 at 09:57 IST

EXPLAINER/ Bihar Election Results: बिहार चुनाव के नतीजे में नीतीश और NDA के लिए क्या कारगर रहा, कैसे हुआ महागठबंधन का सूपड़ा साफ?

Bihar Election Results: यह जीत 2010 की याद दिलाती है, जब भाजपा-जदयू गठबंधन ने 206 सीटें जीती थीं और लालू प्रसाद यादव की राष्ट्रीय जनता दल (राजद) महज 22 सीटों पर सिमट गई थी। हालांकि, इस बार का जनादेश कहीं ज्यादा मायने रखता है।

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Bihar Elections 2025
Bihar Elections 2025 | Image: Republic

Bihar Election Results: चार बार सत्ता में वापसी करना अपने-आप में किसी चमत्कार से कम नहीं, लेकिन बिहार में शुक्रवार (14 नवंबर) को नीतीश कुमार ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के साथ मिलकर यही कर दिखाया। 243 सीटों वाली बिहार विधानसभा में NDA 202 सीटों के साथ दो-तिहाई बहुमत हासिल करने के करीब पहुंच गया।

यह जीत 2010 की याद दिलाती है, जब भाजपा-जदयू गठबंधन ने 206 सीटें जीती थीं और लालू प्रसाद यादव की राष्ट्रीय जनता दल (राजद) महज 22 सीटों पर सिमट गई थी। हालांकि, इस बार का जनादेश कहीं ज्यादा मायने रखता है।

2010 में जनता ने नीतीश को इसलिए चुना था क्योंकि उन्होंने लालू राज के 15 सालों की बदइंतजामी के बाद कानून-व्यवस्था, सड़कों और शासन सुधार की उम्मीद जगाई थी। लेकिन 2025 तक हालात पलटने लगे थे। नीतीश कुमार के स्वास्थ्य और उनकी सरकार की सीमित उपलब्धियों को लेकर सवाल उठने लगे थे। लोगों में बदलाव की चाह और सत्ता-विरोधी भावना दोनों मजबूत हो रही थीं। फिर भी, तेजस्वी यादव के नेतृत्व में राजद और कांग्रेस का गठबंधन का सामना करते हुए एनडीए ने शानदार जीत दर्ज की। यह चुनाव बताता है कि लंबे समय तक शासन के बावजूद नीतीश के प्रति नाराजगी नहीं, बल्कि उनके प्रति आभार का भाव अधिक था।

बिहार में फिर नीतीशे कुमार

बिहार की जनता ने माना कि सीमित संसाधनों के बावजूद नीतीश ने राज्य को स्थिरता और बुनियादी विकास दिया है। इसी भरोसे ने उन्हें दो दशकों से ज्यादा के कार्यकाल वाले मुख्यमंत्री के रूप में ज्योति बसु और नवीन पटनायक की श्रेणी में ला खड़ा किया।

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जातीय रूप से जटिल बिहार में मात्र 2.8% कुर्मी समुदाय से आने वाले नीतीश कुमार ने साबित किया कि सुशासन और लोक-कल्याणकारी योजनाओं के जरिए सभी जातियों में लोकप्रियता कायम की जा सकती है।

महिलाओं को लक्षित योजनाए नीतीश की सबसे बड़ी ताकत रहीं। उनके ऐलान के बाद राजद ने एक AI कार्टून बनाया, जिसमें नीतीश को तेजस्वी के विचारों की “नकल” करते हुए दिखाया गया। तेजस्वी ने तो यहां तक कहा कि नीतीश ने उनकी नीतियां चुरा ली हैं।

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दरअसल, महिलाओं को हर महीने 2,500 रुपये देने और वृद्धों की पेंशन बढ़ाने का विचार पहले तेजस्वी ने रखा था। उन्होंने बिजली बिलों में राहत का वादा भी किया था। लेकिन नीतीश सरकार ने कई ऐसी योजनाएं लागू कर दीं जिनसे महागठबंधन के वादों की चमक फीकी पड़ गई।

महागठबंधन पर भरोसा नहीं

महागठबंधन ने हर घर को सरकारी नौकरी देने जैसे ऊंचे वादे किए, लेकिन मतदाता, खासतौर पर यादव समुदाय के लोग, इस पर भरोसा नहीं कर पाए। कांग्रेस ने अपनी वोट अधिकार यात्रा निकालकर समर्थन बटोरने की कोशिश की, राहुल गांधी और तेजस्वी यादव ने साथ में दौरे किए, लेकिन मतदाता असर में नहीं आए।

नीतीश कुमार की सोच यह रही कि सामाजिक आधार केवल जाति से नहीं, बल्कि लैंगिक आधार पर भी विस्तार किया जा सकता है। 2006 में शुरू हुई मुख्यमंत्री साइकिल योजना  और महिलाओं के लिए स्थानीय निकायों में आरक्षण ने उन्हें एक मजबूत महिला मतदाता वर्ग मुहैया कराया। 2016 की शराबबंदी भी इसी राजनीतिक रणनीति का हिस्सा थी, जिसका सीधा लाभ उन्हें बार-बार चुनावों में मिला।

दूसरी ओर, 1990 और 2000 के दशक के “जंगल राज” की छाया आज भी मतदाताओं के मन में जिंदा है। ग्रामीण इलाकों में लोग अब भी उस दौर को याद करते हैं जब शाम ढलते ही लोग घर लौट आते थे, दुकानें जल्दी बंद हो जाती थीं, और अपहरण या लूट रोजमर्रा की बात थी।

इस बार भी राजद को वही अतीत परेशान कर गया। पार्टी के गढ़ों में यादव वोटों की एकतरफा लामबंदी ने अन्य वर्गों को राजद विरोध में एकजुट कर दिया। जहां राजद इसे जोश समझ रहा था, वहां अन्य समुदाय इसे दबंगई की निशानी मान रहे थे। यही वजह रही कि “डर की यादें” एक बार फिर नीतीश को चौथी बार सत्ता में ले आईं।

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Published By : Kunal Verma

पब्लिश्ड 15 November 2025 at 09:57 IST