अपडेटेड 17 May 2025 at 18:33 IST

जिस मिसाइल से कांप रहा पाकिस्तान और उसका आका... उसके प्रणेता कौन? जानिए ब्रह्मोस बनने की रोचक कहानी और पूरा सफर

DRDO के पूर्व महानिदेशक एसके मिश्रा ने मीडिया को बताया कि कलाम की रूस यात्रा का मकसद था। सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल टेक्नोलॉजी पर सहयोग के रास्ते तलाशना। मास्को में, उन्हें एक सुपरसोनिक दहन इंजन दिखाया गया, जो उस समय ‘आधा-पूरा’ था।

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brahmos missile attack on Pakistan
जिस मिसाइल से कांप रहा पाकिस्तान और उसका आका... उसके प्रणेता कौन? जानिए ब्रह्मोस बनने की रोचक कहानी और पूरा सफर | Image: Indian Army

Brahmos Missile: 7 से 10 मई के बीच हुए 'ऑपरेशन सिंदूर' में भारत ने जब पाकिस्तान के भीतर रणनीतिक सैन्य ठिकानों पर सटीक हमले किए, तो इस सफलता का सबसे बड़ा श्रेय गया स्वदेशी सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल ‘ब्रह्मोस’ को। यह मिसाइल न केवल तकनीकी रूप से उन्नत है, बल्कि इसकी कहानी भी भारत के वैज्ञानिक आत्मनिर्भरता के सफर की प्रतीक है, जिसकी नींव रखी थी देश के पूर्व राष्ट्रपति और मिसाइल मैन डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने। ब्रह्मोस मिसाइल प्रणाली को भारत के DRDO (रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन) और रूस के NPOM के बीच 1998 में बने एक संयुक्त उपक्रम के तहत विकसित किया गया था। लेकिन इसकी शुरुआत एपीजे अब्दुल कलाम ने साल 1993 में ही कर दी थी। जब तत्कालीन DRDO प्रमुख एपीजे अब्दुल कलाम रूस की यात्रा पर गए थे।

DRDO के पूर्व महानिदेशक एसके मिश्रा ने मीडिया को बताया कि कलाम की रूस यात्रा का मकसद था। सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल टेक्नोलॉजी पर सहयोग के रास्ते तलाशना। मास्को में, उन्हें एक सुपरसोनिक दहन इंजन दिखाया गया, जो उस समय ‘आधा-पूरा’ था। यह अधूरापन सोवियत संघ के विघटन और आर्थिक संकट का परिणाम था। कलाम ने उसी अधूरे इंजन में भविष्य की ताकत देखी और यह सपना बन गया 'ब्रह्मोस', जो आज भारत की सबसे तेज, सबसे भरोसेमंद और दुश्मनों के लिए सबसे खतरनाक क्रूज मिसाइल प्रणाली है। ब्रह्मोस सिर्फ एक मिसाइल नहीं है यह भारत की वैज्ञानिक दृष्टि, रणनीतिक सूझबूझ और वैश्विक साझेदारी का प्रतीक है। और जब 'ऑपरेशन सिंदूर' में भारत को सटीक और निर्णायक वार की जरूरत थी, तो ब्रह्मोस ने दुश्मन के दिल तक मार की। आज यह मिसाइल सिर्फ भारत के लिए नहीं, बल्कि विश्व रक्षा बाजार में एक शक्तिशाली ब्रांड बन चुकी है, जिसकी जड़ें एक वैज्ञानिक के विजन में और देश के आत्मबल में हैं।


'ऑपरेशन सिंदूर' में ब्रह्मोस की भूमिका

  • 'ऑपरेशन सिंदूर' के दौरान ब्रह्मोस ने लॉन्ग रेंज प्रिसिशन स्ट्राइक वेपन की भूमिका निभाई।
  • पाकिस्तान के अंदरूनी इलाकों में स्थित सैन्य बंकर, लॉजिस्टिक बेस और संचार केंद्र इसके लक्ष्‍य बने।
  • सटीक निशाना, तेज़ रफ्तार और दुश्मन के रडार को चकमा देने की क्षमता ने इसे भारत का 'गोल्डन वेपन' बना दिया।
  • ब्रह्मोस की स्पीड Mach 2.8 से 3.0 तक होती है (यानी ध्वनि की गति से तीन गुना अधिक) और यह जमीन, समुद्र व हवा से लॉन्च की जा सकती है।

1998 में रखी गई थी ‘ब्रह्मोस’ की नींव, भारत-रूस साझेदारी से बना दुनिया का सबसे तेज़ क्रूज मिसाइल सिस्टम

भारत की सबसे घातक सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल ब्रह्मोस की कहानी केवल एक मिसाइल की नहीं, बल्कि विज़न, विज्ञान और वैश्विक सहयोग की कहानी है और इसकी ठोस शुरुआत 12 फरवरी 1998 को हुई थी। जब भारत और रूस के बीच एक ऐतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए।

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भारत-रूस का रणनीतिक समझौता

डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम और रूस के प्रथम उप रक्षा मंत्री एन.वी. मिखाइलोव ने मिलकर एक अंतर-सरकारी समझौते पर दस्तखत किए, जिससे बना ब्रह्मोस एयरोस्पेस (BrahMos Aerospace) एक संयुक्त उद्यम (Joint Venture), जिसमें भारत की हिस्सेदारी थी 50.5% थी और रूस की हिस्सेदारी थी 49.5% थी। इसका उद्देश्य एक ऐसी सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल प्रणाली को डिज़ाइन करना था और 
उसे विकसित करना, बनाना और दुनिया को बेचना, जो उस समय तक किसी भी देश के पास नहीं थी।


पहला फंडिंग कॉन्ट्रैक्ट: 9 जुलाई 1999

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  • इस ऐतिहासिक प्रोजेक्ट को मूर्त रूप देने के लिए 9 जुलाई 1999 को भारत और रूस के बीच पहला वित्तीय अनुबंध हुआ
  • रूस से: $123.75 मिलियन
  • भारत से: $126.25 मिलियन
  • इसके साथ ही भारत के DRDO और रूस के NPO Mashinostroyenia (NPOM) की प्रयोगशालाओं में विकास कार्य शुरू हो गया। उसी साल डिजाइन और प्रोटोटाइप तैयार करने पर काम शुरू हुआ।


ब्रह्मोस न केवल दुनिया की एकमात्र सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल बनी, बल्कि भारत के लिए

  • रणनीतिक आत्मनिर्भरता का प्रतीक,
  • टेक्नोलॉजिकल श्रेष्ठता का उदाहरण,
  • वैश्विक हथियार बाजार में अपनी छवि को सशक्त करने वाला हथियार बन गई।

12 जून 2001 ब्रह्मोस का पहला सफल टेस्ट

12 फरवरी 1998 का वह दिन इतिहास में दर्ज है जब भारत ने महाशक्ति रूस के साथ मिलकर एक साझा सपना देखा, जिसे वैज्ञानिकों ने मिसाइल का रूप दिया ब्रह्मोस। यह मिसाइल आज न केवल देश की सीमाओं की रक्षा कर रही है, बल्कि यह साबित करती है कि जब राजनीतिक इच्छाशक्ति और वैज्ञानिक क्षमता साथ आ जाएं, तो असंभव कुछ भी नहीं। ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल, जो आज भारत की रक्षा शक्ति का एक अत्यंत अहम हिस्सा बन चुकी है, उसका पहला सफल परीक्षण 12 जून, 2001 को ओडिशा के चांदीपुर तट स्थित इंटरिम टेस्ट रेंज से किया गया था। एक भूमि-आधारित लांचर से लॉन्च की गई इस मिसाइल ने न केवल भारत की मिसाइल क्षमताओं को नई ऊंचाई दी, बल्कि एक सामरिक युग की शुरुआत भी की। ब्रह्मोस की पहली उड़ान ने दुनिया को स्पष्ट कर दिया कि भारत अब न केवल एक उपभोक्ता है, बल्कि मिसाइल निर्माण में अग्रणी शक्ति बनने की राह पर भी है। इस सफलता ने ब्रह्मोस एयरोस्पेस को घरेलू और वैश्विक रक्षा मंचों पर पहचान दिलाई। पहले परीक्षण के बाद, ब्रह्मोस एयरोस्पेस ने 2001 में मास्को में आयोजित MAKS-1 प्रदर्शनी में हिस्सा लिया। यह ब्रह्मोस की पहली अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनी थी, जिसने इसे वैश्विक रक्षा जगत में एक संभावित गेम-चेंजर के रूप में स्थापित किया।


तीनों सेनाओं की पहली पसंद बनी ब्रह्मोस

कई दौर के परीक्षणों और उपयोगकर्ता विशिष्ट संस्करणों के सफल प्रदर्शन के बाद भारतीय सेना ने इसे ज़मीन से मार करने वाली लंबी दूरी की मिसाइल के तौर पर अपनाया, भारतीय नौसेना ने ब्रह्मोस को अपने युद्धपोतों पर तैनात किया, और भारतीय वायु सेना ने सुखोई-30 MKI जैसे लड़ाकू विमानों से लॉन्च किए जाने वाले संस्करण को अपनी ताकत में शामिल किया। ब्रह्मोस की स्पीड 2.8 मैक (यानी ध्वनि की गति से लगभग 3 गुना तेज़) है, जो इसे दुश्मन की रडार प्रणाली से बचकर सर्जिकल स्ट्राइक करने में सक्षम बनाती है। ब्रह्मोस के निर्माण में भारत के स्वदेशी मिसाइल कार्यक्रम IGMDP (इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवेलपमेंट प्रोग्राम) की भूमिका केंद्रीय रही। 1983 में शुरू किया गया यह कार्यक्रम भारत को मिसाइल तकनीक में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम था। इसी के तहत विकसित तकनीक का उपयोग ब्रह्मोस के कोर सिस्टम में किया गया। ब्रह्मोस सिर्फ एक मिसाइल नहीं, बल्कि भारत की वैज्ञानिक दूरदृष्टि, रणनीतिक निर्भरता से स्वतंत्रता, और ग्लोबल डिफेंस लीडरशिप की कहानी है। 2001 से लेकर ऑपरेशन सिंदूर (2025) तक ब्रह्मोस ने यह साबित कर दिया है कि जब विज्ञान, नेतृत्व और संकल्प साथ हों, तो भारत किसी भी चुनौती से कम नहीं।

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Published By : Ravindra Singh

पब्लिश्ड 17 May 2025 at 18:33 IST