अपडेटेड 2 August 2025 at 20:52 IST
ट्रंप के खिलाफ पश्चिमी देशों ने भी फूंक दिया बिगुल? फिलिस्तीन को कनाडा समेत इन देशों ने दी मान्यता; नए जंग की ओर जा रही दुनिया!
Palestinian state backed by Western allies: फ्रांस, ब्रिटेन और कनाडा का रुख एक मजबूत संकेत है कि अब पश्चिमी देशों के भीतर भी बदलाव की आहट है।
Palestinian state backed by Western allies: दुनिया के तीन बड़े पश्चिमी देश फ्रांस, ब्रिटेन और कनाडा ने हाल ही में फिलिस्तीन को मान्यता देने का ऐलान किया है। ये सिर्फ कूटनीतिक फैसले नहीं हैं, बल्कि इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष के लंबे इतिहास में एक नया मोड़ हैं। इन देशों का झुकाव उस वक्त सामने आया है जब गाजा में भूख, बम और बेघरी का त्रासदीपूर्ण मेल देखने को मिल रहा है।
गाजा में भूख से मरते बच्चों की तस्वीरें अब सिर्फ सोशल मीडिया तक सीमित नहीं हैं। वे अब दुनियाभर की सरकारों को भी बेचैन कर रही हैं। सीजफायर की वैश्विक अपीलों को इजरायली सरकार लगातार नजरअंदाज कर रही है। ऐसे माहौल में फ्रांस, ब्रिटेन और कनाडा का रुख एक मजबूत संकेत है कि अब पश्चिमी देशों के भीतर भी बदलाव की आहट है।
अमेरिका से अलग खड़ा होता पश्चिम
अमेरिकी मीडिया की रिपोर्ट बताती है कि यह कदम प्रतीकात्मक भले हो, लेकिन इसका असर गहरा है। अमेरिका अब पहले की तरह अकेला इजरायल का समर्थक नजर आता है। यूरोप और उत्तरी अमेरिका के कई हिस्सों में अब फिलिस्तीन के लिए समर्थन खुलकर सामने आ रहा है।
सवाल है कि क्या इससे गाजा में चल रही हिंसा रुक सकेगी? शायद तुरंत नहीं, लेकिन अगर इन देशों की मान्यता के बाद वैश्विक स्तर पर दबाव बढ़ा, तो युद्धविराम और बंधकों की रिहाई के लिए रास्ते खुल सकते हैं। हालांकि, यह रास्ता बेहद पेचीदा है और इसमें कई परतें हैं।
सबसे बड़ी चुनौती यह है कि आजाद फिलिस्तीन दिखेगा कैसा? क्योंकि आज तक ऐसा कोई फिलिस्तीनी देश अस्तित्व में आया ही नहीं। जब द्वितीय विश्व युद्ध के बाद इजरायल बना, तो उसे फौरन मान्यता मिल गई। वहीं फिलिस्तीनियों के लिए यह दौर "अल-नकबा" बना, यानी त्रासदी और बेदखली का दौर।
जमीन सिकुड़ती रही और सपने भी
1967 के छह दिवसीय युद्ध के बाद इजरायल ने पूर्वी यरुशलम, पश्चिमी तट और गाजा के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया। फिलिस्तीनी क्षेत्र लगातार छोटा होता गया। जो राज्य कभी संभव था, वो अब बिखर चुका है। आज वहां कहीं इजरायली बस्तियां हैं, कहीं फिलिस्तीनी प्रशासन, और कहीं सिर्फ मलबा।
90 के दशक में ओस्लो समझौते ने उम्मीद जगाई थी। इजरायली पीएम यित्जाक राबिन और फिलिस्तीनी नेता यासर अराफात ने अमेरिका की मेजबानी में हाथ मिलाया था। उस समझौते में 1967 की सीमाओं के आधार पर दो-राष्ट्र समाधान की बात थी, लेकिन ये समझौता कभी जमीन पर नहीं उतर सका।
अब तो हालात इतने बदल चुके हैं कि उस प्रस्ताव को लागू कर पाना लगभग असंभव लगने लगा है। पश्चिमी तट में इजरायली बस्तियों का जिस तरह विस्तार हुआ है, उसने संयुक्त फिलिस्तीनी राज्य की संभावनाओं को और भी कमजोर कर दिया है।
शासन कौन करेगा?
अगर कल फिलिस्तीन को मान्यता मिल भी जाए, तो शासन कौन करेगा? फिलहाल, पश्चिमी तट पर फिलिस्तीनी प्राधिकरण (Palestinian Authority) का नियंत्रण है, लेकिन खुद फिलिस्तीनी ही इस संस्था पर पूरी तरह भरोसा नहीं करते। वहीं गाजा में हमास का प्रभाव है, जिसे कई देश आतंकवादी संगठन मानते हैं। एक ऐसी जमीन, जो खुद बंट चुकी है, उस पर एकजुट शासन व्यवस्था बनाना आसान नहीं होगा।
सबसे बड़ी अड़चन है- इजरायल की मौजूदा सरकार। प्रधानमंत्री नेतन्याहू साफ कह चुके हैं कि वह किसी भी हालत में आजाद फिलिस्तीन को स्वीकार नहीं करेंगे। फ्रांस, ब्रिटेन और कनाडा की अपीलों को उन्होंने ठुकरा दिया है। दक्षिणपंथी गठबंधन के साथ नेतन्याहू फिलहाल अपनी जिद पर अड़े हैं।
नतीजा क्या निकलेगा?
फिलिस्तीन को मान्यता देने की ये घोषणाएं जरूरी और ऐतिहासिक हैं, लेकिन रास्ता बेहद जटिल है। इसका असर एक दिन में नहीं दिखेगा, लेकिन अगर ये दबाव लगातार बना रहा, तो शायद कोई नई राजनीतिक सोच आकार ले सके।
फिलहाल इतना तय है- फिलिस्तीन अब सिर्फ अरब या मुस्लिम दुनिया का मुद्दा नहीं रहा। यह पूरी दुनिया के राजनीतिक और मानवीय विवेक का सवाल बन चुका है।
Published By : Kunal Verma
पब्लिश्ड 2 August 2025 at 20:52 IST