अपडेटेड 31 August 2025 at 08:37 IST
EXPLAINER/ टैरिफ की धमकी हो या परमाणु बम पर 'बड़बोलापन', चीन में ना होकर भी SCO समिट में मौजूद रहेंगे डोनाल्ड ट्रंप! क्या अमेरिका को पीछे छोड़ना मुमकिन है?
SCO summit: चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से पीएम मोदी की मुलाकात होगी, जिसपर दुनियाभर की निगाहें टिकी होगी।
SCO summit: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शनिवार को SCO समिट के लिए चीन के तियानजिन पहुंच गए हैं। आज चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से पीएम मोदी की मुलाकात होगी, जिसपर दुनियाभर की निगाहें टिकी होगी।
जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, पुतिन और शी जिनपिंग शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के 25वें शिखर सम्मेलन के लिए तियानजिन में अन्य राष्ट्राध्यक्षों के साथ शामिल होंगे, तो अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप वहां नहीं होंगे, लेकिन फिर भी ट्रंप तियानजिन में चर्चा का विषय बने रहेंगे।
आपको बता दें कि प्रधानमंत्री मोदी ट्रंप प्रशासन द्वारा भारतीय वस्तुओं पर 50% का भारी शुल्क लगाए जाने के कुछ दिनों बाद ही तियानजिन पहुंचे हैं। ऐसे में जानकारों का मानना है कि ट्रंप खुद भारत, चीन और रूस को एक टेबल पर आने के लिए मजबूर कर रहे हैं। उनके आक्रामक रवैये की वजह से ही दुनिया के ज्यादातर देश अब अपने व्यापार और बाकी चीजों के लिए दूसरे विकल्प तलाशने लगे हैं, और अगर ऐसा होता है तो अमेरिका को साइडलाइन किया जा सकता है। हालांकि, सवाल ये है कि क्या ये मुमकिन है? क्या अमेरिका को पीछे छोड़कर आगे बढ़ा जा सकता है?
एक-दूसरे के करीब आने लगे भारत और चीन
जानकारों का कहना है कि ट्रंप की टैरिफ संबंधी चेतावनी ने मोदी को चीन के प्रति कुछ रियायतें देने और शी को सावधानीपूर्वक अपनाने के लिए प्रेरित किया है, वह भी ऐसे समय में जब दोनों बड़े पड़ोसी पहले से ही अपने ठंडे संबंधों में सुधार की संभावनाएं तलाश रहे थे। 2020 में दोनों एशियाई दिग्गजों के बीच संबंध तब बिगड़ गए जब विवादित हिमालयी सीमा क्षेत्र में हिंसक झड़पें हुईं। लेकिन, वर्षों तक चले इस गतिरोध के बाद दोनों देशों ने हाल ही में एक-दूसरे के नागरिकों के लिए पर्यटक वीजा फिर से जारी करना शुरू कर दिया है और ये भी कहा है कि वे कोविड-19 महामारी के दौरान रद्द की गई सीधी उड़ानें फिर से शुरू करेंगे।
भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर सालों से कहते रहे हैं कि जब तक विवादित सीमा पर तनाव का समाधान नहीं हो जाता, दोनों देशों के बीच संबंध कभी सामान्य नहीं होंगे। ऐसे में तियानजिन में पीएम मोदी की मात्र उपस्थिति ही जियोपॉलिटिक्स के बदलते समीकरण की ओर एक इशारा है, क्योंकि प्रधानमंत्री सालों से जिनपिंग के साथ सीधी बातचीत के प्रस्ताव को ठुकराते रहे हैं, और अब 7 साल बाद चीन का दौरा इस नए समीकरण पर अपनी मुहर लगा रहा है।
चीन को अमेरिका का विकल्प बनाने पर जोर
अलास्का में अमेरिकी एयरबेस पर पुतिन के लिए ट्रंप द्वारा लाल कालीन बिछाने के तीन सप्ताह से भी कम समय बाद रूसी राष्ट्रपति ऐसे समय में चीन की यात्रा पर पहुंच रहे हैं, जब मॉस्को की मिसाइलें यूक्रेन पर लगातार हमला कर रही हैं। वह न केवल तियानजिन शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे, बल्कि 3 सितंबर को शी जिनपिंग और उत्तर कोरिया के किम जोंग उन के साथ बीजिंग में एक विशाल सैन्य परेड में भी शामिल होंगे, जिससे तीनों शक्तियों के बीच एकता के स्पष्ट प्रदर्शन का मंच तैयार होगा।
रूसी तानाशाह के प्रति ट्रंप के बार-बार बदलते रुख से रूस और चीन की साझेदारी पर कोई असर पड़ने की संभावना नहीं है। हाल के वर्षों में यह रिश्ता और गहरा हुआ है, क्योंकि सीमा पार व्यापार नई ऊंचाइयों पर पहुंच गया है। इस बीच, दोनों देश सुरक्षा सहयोग बढ़ाते जा रहे हैं, और हाल ही में उन्होंने प्रशांत क्षेत्र में अपनी पहली संयुक्त पनडुब्बी गश्त की घोषणा की है। जानकारों का कहना है कि कभी दुश्मन रहे इन पड़ोसियों को और भी करीब लाने वाली चीज अमेरिका को एक खतरे के रूप में देखने की उनकी साझा सोच का परिणाम है।
राष्ट्रपति ट्रंप की अजीबोगरीब विदेश नीति, जिसमें पुराने सहयोगियों पर हमले और वैश्विक मुक्त व्यापार को लगभग रातोंरात खत्म करना शामिल है, दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था चीन के लिए नए अवसर सामने ला रही है। जैसे-जैसे विश्व नेता तियानजिन में SCO शिखर सम्मेलन और उसके बाद बीजिंग में द्वितीय विश्व युद्ध विजय सैन्य परेड के लिए इकट्ठा हो रहे हैं, उम्मीद है कि शी चीन को वाशिंगटन के एक विकल्प के रूप में बढ़ावा देंगे।
अमेरिका के खिलाफ मंच तैयार
रविवार और सोमवार को तियानजिन में एकत्रित होने वाला 10-सदस्यीय समूह पिछले 24 सालों में आकार और प्रभाव में काफी बढ़ गया है, जबकि इसके लक्ष्य और कार्यक्रम अभी भी अस्पष्ट हैं और इसका नाम कम ही जाना जाता है। कुछ लोग इसे अब तक का सबसे भयावह समूह कहते हैं जिसके बारे में आपने कभी सुना भी नहीं होगा।
इसकी पूर्ण सदस्यता में रूस, बेलारूस, चीन, भारत, ईरान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, पाकिस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान शामिल हैं। मूल रूप से मध्य एशिया में अमेरिकी प्रभाव को कम करने के लिए एक अवरोधक के रूप में देखे जाने वाले इस मूल संगठन में 2017 में भारत और पाकिस्तान, 2023 में ईरान और 2024 में बेलारूस के साथ चार नए सदस्य शामिल हुए।
इनमें से कुछ देश अमेरिका के स्पष्ट दुश्मन हैं, खासकर ईरान और रूस का घनिष्ठ सहयोगी बेलारूस। भारत, चीन और रूस सहित अन्य देशों के साथ अमेरिका के संबंध ज्यादा साफ नहीं हैं। इसका कारण या तो यूक्रेन के साथ रूस के युद्ध पर वाशिंगटन का रुख है या फिर अमेरिका द्वारा टैरिफ की मनमानी, जिसने चीन और भारत जैसे देशों के साथ अमेरिका के प्रमुख व्यापारिक संबंधों को बिगाड़ दिया है। इस समिट में अमेरिका मौजूद ना होकर भी मौजूद रहेगा, और ट्रंप के टैरिफ और उनकी दादागिरी पर सीधी बातचीत संभव है।
आपको बता दें कि SCO में शुरुआत से ही चीन का प्रभुत्व रहा है, और रूस इस समूह का उपयोग पूर्व मध्य एशियाई सोवियत रिपब्लिक्स कजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान और किर्गिस्तान पर अपना प्रभाव बनाए रखने के लिए करना चाहता है। हालांकि, भारत की एंट्री इस संगठन पर रूस और चीन के प्रभुत्व को चुनौती दे सकती है। अपने व्यापारिक संबंधों के बावजूद भारत यूक्रेन में रूस के युद्ध या ताइवान और दक्षिण चीन सागर पर चीन के दावों को समर्थन नहीं देगा। भारत लंबे समय से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता की मांग कर रहा है, लेकिन चीन और रूस से उसे केवल ठंडी प्रतिक्रिया मिली है। हालांकि, अब अगर अमेरिका के खिलाफ ये गुट एक मत पर आता है, तो इससे तीनों देशों के संबंध इतने बेहतर हो सकते हैं, जो ट्रंप के लिए बिल्कुल फायदेमंद नहीं होगा।
Published By : Kunal Verma
पब्लिश्ड 31 August 2025 at 08:30 IST