अपडेटेड 29 October 2024 at 08:27 IST

आज के दिन देवताओं को मिली थी ये चीज... इसलिए मनाया जाता है धनतेरस, कम शब्दों में पढ़ें पूरी कहानी

What do we do in Dhanteras? धनतेरस पर्व क्यों मनाया जाता है? धनतेरस की असली कहानी क्या है? जानते हैं इस लेख के माध्यम से...

why celebrate dhanteras in hindi | Image: instagram

What is the real story of Dhanteras? बता दें कि धनतेरस का त्योहार कार्तिक महीने की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को मनाया जाता है। इस साल यह पर्व 29 अक्टूबर को मनाया जा रहा है। ऐसे में इस दिन धन्वंतरि जी की पूजा की जाती है। साथ ही मृत्यु के देवता यमराज का भी पूजन होता है। लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि धनतेरस का त्यौहार क्यों मनाते हैं? 

अगर नहीं तो आज का हमारा लेख इसी विषय पर है। आज हम आपको अपने इस लेख के माध्यम से बताएंगे कि धनतेरस का त्यौहार क्यों मनाया जाता है। पढ़ते हैं आगे…

धनतेरस क्यों मनाते हैं? (Why celebrate dhanteras in hindi?)

  • मान्यता है कि आज ही के दिन धन्वंतरि अपने हाथों में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। बता दें कि धन्वंतरि जी को विष्णु का अंशावतार माना जाता है। ऐसे में इसी खुशी में धनतेरस का पर्व मनाया जाता है। 
  • धनतेरस से जुड़ी एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार कार्तिक महीने की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी पर देवताओं के काम में बाधा डालने पर भगवान विष्णु ने गुरु शुक्राचार्य की आंख फोड़ दी थी। जी हां, देवताओं को राजा बलि के भय से मुक्त करने के लिए भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया। वे उस अवतार में वहां पहुंचे जहां पर राजा बलि का युद्ध चल रहा था। पर शुक्र ने उन्हें पहचान लिया और राजा बलि से कहा कि यदि कुछ मांगे तो उन्हें मना कर देगा। क्योंकि यह कोई और नहीं बल्कि साक्षात विष्णु हैं। वह आपसे कुछ लेने आए हैं। परंतु बलि ने शुक्राचार्य की बात नहीं मानी और वामन भगवान द्वारा मांगी गई तीन पग जमीन देने के लिए हाथ में जल उठाकर संकल्प करने लगे। ऐसे में शुक्राचार्य ने कमंडल में लघु रूप धारण कर प्रवेश किया और जल लेने का मार्ग बंद कर दिया। 
  • तब वामन भगवान शुक्राचार्य की इस चाल को समझ गए और उन्होंने अपने हाथ में रखी कुशा को कमंडल में ऐसे रखा कि शुक्राचार्य की एक आंख फूट गई। शुक्राचार्य झटपटाकर बाहर आ गए। तब बलि ने तीन पग भूमि दान में भगवान वामन को दी। उन्होंने अपने एक पग से पूरी पृथ्वी को नापा और दूसरे पग से अंतरिक्ष को लेकिन तीसरे पग के लिए कोई स्थान नहीं मिला। ऐसे में बलि ने अपना सर दे दिया। भगवान ने बलि के सर पर चरणों को रख दिया और बलि ने अपना सब कुछ गबा दिया। ऐसे में देवताओं को बलि के भय से मुक्ति मिली और बलि ने जो भी धन संपत्ति देवताओं से ली थी वह कई गुना बढ़कर देवता को मिल गई, इस उपलक्ष में धनतेरस मानते हैं।

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Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सिर्फ अलग-अलग सूचना और मान्यताओं पर आधारित है। REPUBLIC BHARAT इस आर्टिकल में दी गई किसी भी जानकारी की सत्‍यता और प्रमाणिकता का दावा नहीं करता है।

Published By : Garima Garg

पब्लिश्ड 29 October 2024 at 08:27 IST