अपडेटेड 12 November 2025 at 07:54 IST

Wednesday Ganesh Stuti: आज बुधवार के दिन जरूर करें गणेश स्तुति का पाठ, मिलेगा कर्जों से छुटकारा और बाधाएं होंगी दूर

Wednesday Ganesh Stuti: हिंदू धर्म में बुधवार का दिन भगवान गणेश की पूजा विधिवत रूप से करने का विधान है। अब ऐसे में अगर कर्ज से परेशान हैं तो आपको हम इस लेख में ऋण मोचन गणेश स्तुति का पाठ करने के बारे में बताएंगे। जिससे आपको शुभ फलों की प्राप्ति हो सकती है।

Wednesday Ganesh Stuti | Image: Freepik

Wednesday Ganesh Stuti: सनातन धर्म में प्रथम पूज्य श्री गणेश जी को विघ्नहर्ता के रूप में पूजा जाता है। वह हर शुभ कार्य से पहले पूजे जाते हैं, ताकि उसमें कोई बाधा न आए। जैसे हिंदू धर्म में हर देवी-देवता के लिए एक विशेष दिन समर्पित है, उसी प्रकार बुधवार का दिन भगवान गणेश की आराधना के लिए सबसे शुभ माना जाता है। इस पावन दिन पर, भक्त विशेष विधि-विधान से बप्पा की पूजा-अर्चना करते हैं ताकि उनकी कृपा प्राप्त हो सके। 

यदि आप जीवन में किसी भी प्रकार के कर्ज या आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं, तो बुधवार की पूजा में ऋणहर्ता गणेश स्तोत्र का पाठ अवश्य करें। आइए इस लेख में ज्योतिषाचार्य पंडित दयांद त्रिपाठी से विस्तार से गणश स्तुति का पाठ करने के बारे में जानते हैं।

आज बुधवार के दिन करें गणेश स्तुति का पाठ 

नारद पुराण में संकटनाशन गणेश स्तोत्र लिखा गया है, ऐसा कहा जाता है इस स्त्रोत का पाठ करने से आप अपने जीवन की हर परेशानी दूर कर सकते हैं। 
प्रणम्य  शिरसा  देवं  गौरी पुत्र विनायकम् ।
भक्तावासं स्मेर नित्यमाय्ः कामार्थसिद्धये।।
प्रथमं  वक्रतुडं   च   एकदंत  द्वितीयकम् ।
तृतियं कृष्णपिंगात्क्षं गजववत्रं चतुर्थकम्।।
लंबोदरं  पंचम  च  पष्ठं विकटमेव  च ।
सप्तमं विघ्नराजेंद्रं धूम्रवर्ण तथाष्टमम्।।
नवमं भाल चंद्रं च दशमं तु विनायकम् ।
एकादशं  गणपतिं  द्वादशं  तु गजानन्।।
द्वादशैतानि नामानि  त्रिसंघ्यंयः पठेन्नरः।
न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं प्रभो।।
विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम्।
पुत्रार्थी लभते पुत्रान्मो क्षार्थी लभते गतिम्।।
जपेद्णपतिस्तोत्रं षडिभर्मासैः फलं लभते।
संवत्सरेण  सिद्धिंच   लभते   नात्र  संशयः।।
अष्टभ्यो ब्राह्मणे भ्यश्र्च लिखित्वा फलं लभते।
तस्य   विद्या   भवेत्सर्वा   गणेशस्य   प्रसादतः।।
।। इति श्री नारद पुराणे संकष्टनाशनं नाम श्री गणपति स्तोत्रं संपूर्णम् ।।
भगवान श्री गणेश स्तुति मंत्र-
विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय, 
लम्बोदराय सकलाय जगद्धिताय।
नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय, 
गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते।।
भक्तार्तिनाशनपराय गनेशाश्वराय, 
सर्वेश्वराय शुभदाय सुरेश्वराय।
विद्याधराय विकटाय च वामनाय , 
भक्त प्रसन्नवरदाय नमो नमस्ते।।
नमस्ते ब्रह्मरूपाय विष्णुरूपाय ते नम:।
नमस्ते रुद्राय्रुपाय करिरुपाय ते नम:।।
विश्वरूपस्वरूपाय नमस्ते ब्रह्मचारणे।
भक्तप्रियाय देवाय नमस्तुभ्यं विनायक।।
लम्बोदर नमस्तुभ्यं सततं मोदकप्रिय।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा।।
त्वां विघ्नशत्रुदलनेति च सुन्दरेति ,
भक्तप्रियेति सुखदेति फलप्रदेति।
विद्याप्रत्यघहरेति च ये स्तुवन्ति,
तेभ्यो गणेश वरदो भव नित्यमेव।।
गणेशपूजने कर्म यन्न्यूनमधिकं कृतम।
तेन सर्वेण सर्वात्मा प्रसन्नोSस्तु सदा मम।।

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ऋणहर्ता गणेश स्तोत्र का पाठ 

ॐ सिन्दूर-वर्णं द्वि-भुजं गणेशं लम्बोदरं पद्म-दले निविष्टम्।
ब्रह्मादि-देवैः परि-सेव्यमानं सिद्धैर्युतं तं प्रणामि देवम्॥
सृष्ट्यादौ ब्रह्मणा सम्यक् पूजित: फल-सिद्धए।
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे॥
त्रिपुरस्य वधात् पूर्वं शम्भुना सम्यगर्चित:।
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे॥
हिरण्य-कश्यप्वादीनां वधार्थे विष्णुनार्चित:।
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे॥
महिषस्य वधे देव्या गण-नाथ: प्रपुजित:।
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे॥
तारकस्य वधात् पूर्वं कुमारेण प्रपूजित:।
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे॥
भास्करेण गणेशो हि पूजितश्छवि-सिद्धए।
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे॥
शशिना कान्ति-वृद्धयर्थं पूजितो गण-नायक:।
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे॥
पालनाय च तपसां विश्वामित्रेण पूजित:।
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे॥
इदं त्वृण-हर-स्तोत्रं तीव्र-दारिद्र्य-नाशनं,
एक-वारं पठेन्नित्यं वर्षमेकं सामहित:।
दारिद्र्यं दारुणं त्यक्त्वा कुबेर-समतां व्रजेत्॥
ऋण मोचन मंगल स्तोत्र
मङ्गलो भूमिपुत्रश्च ऋणहर्ता धनप्रदः।
स्थिरासनो महाकयः सर्वकर्मविरोधकः॥
लोहितो लोहिताक्षश्च सामगानां कृपाकरः।
धरात्मजः कुजो भौमो भूतिदो भूमिनन्दनः॥
अङ्गारको यमश्चैव सर्वरोगापहारकः।
व्रुष्टेः कर्ताऽपहर्ता च सर्वकामफलप्रदः॥
एतानि कुजनामनि नित्यं यः श्रद्धया पठेत्।
ऋणं न जायते तस्य धनं शीघ्रमवाप्नुयात्॥
धरणीगर्भसम्भूतं विद्युत्कान्तिसमप्रभम्।
कुमारं शक्तिहस्तं च मङ्गलं प्रणमाम्यहम्॥
स्तोत्रमङ्गारकस्यैतत्पठनीयं सदा नृभिः।
न तेषां भौमजा पीडा स्वल्पाऽपि भवति क्वचित्॥
अङ्गारक महाभाग भगवन्भक्तवत्सल।
त्वां नमामि ममाशेषमृणमाशु विनाशय॥
ऋणरोगादिदारिद्रयं ये चान्ये ह्यपमृत्यवः।
भयक्लेशमनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा॥
अतिवक्त्र दुरारार्ध्य भोगमुक्त जितात्मनः।
तुष्टो ददासि साम्राज्यं रुश्टो हरसि तत्ख्शणात्॥
विरिंचिशक्रविष्णूनां मनुष्याणां तु का कथा।
तेन त्वं सर्वसत्त्वेन ग्रहराजो महाबलः॥
पुत्रान्देहि धनं देहि त्वामस्मि शरणं गतः।
ऋणदारिद्रयदुःखेन शत्रूणां च भयात्ततः॥
एभिर्द्वादशभिः श्लोकैर्यः स्तौति च धरासुतम्।
महतिं श्रियमाप्नोति ह्यपरो धनदो युवा॥

Published By : Ankur Shrivastava

पब्लिश्ड 12 November 2025 at 07:54 IST