अपडेटेड 5 May 2025 at 09:04 IST
Sita Navami 2025: सीता नवमी आज, पूजा के दौरान जरूर करें इस चालीसा का पाठ
Sri Sita Chalisa: आज सीता नवमी के दिन आपको मां सीता चालीसा का पाठ अवश्य करना चाहिए।
Sita Navami 2025: हिंदू धर्म में सीता नवमी का बेहद खास महत्व है। वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि के दिन ये पर्व मनाया जाता है। जो कि आज यानी 5 मई को मनाया जा रहा है। इस दिन मां सीता की पूजा अर्चना और व्रत किया जाता है। कहते हैं जो व्यक्ति सीता नवमी के दिन मां सीता की पूरे श्रद्धाभाव से पूजा करता है उसके घर में कभी पारिवारिक क्लेश नहीं होता है।
मान्यता है कि इस तिथि पर मां सीता अवतरित हुईं थीं। ऐसे में सीता नवमी के दिन मां सीता को प्रसन्न करने के लिए आप सीता चालीसा का पाठ कर सकते हैं। ऐसा करने से माता की कृपा सदैव आप और आपके परिवार पर बनी रहेगी। आइए जानते हैं मां सीता चालीसा के लिरिक्स के बारे में।
श्री सीता चालीसा (Sri Sita Chalisa)
दोहा
बंदौं चरण सरोज निज, जनक-लली सुखधाम।
रामप्रिया कृपा करें, सुमिरौं आठों धाम॥
कीरति गाथा जो पढ़ै, सुधरैं सकल काज।
मन मंदिर वास करें, दुःख भंजन सिया-राज॥
चौपाई
रामप्रिया रघुनंदन रघुराई,
बैदेही की कीरति गाई।
चरण कमल बंदौं सिर नाई,
सिया सुरसरि, सब पाप नसाई॥
जनक दुलारी, राघव प्यारी,
भरत लखन शत्रुघ्न हितकारी।
दिव्य धरा सौं उपजी सीता,
मिथिलेश को भयो अतीता॥
रूप सिया को भायो मन माहीं,
स्वयंवर रच्यो जनक तब ताहीं।
शिव धनु भारी खींचे जोई,
सिय जयमाल पहनै सोई॥
भूपति नरपति रावण संगा,
ना करि सका शिवधनु भंगा।
जनक निराश भए लखि कारण,
जनम्यो नाहिं अवनि को तारन॥
विश्वामित्र यह सुन मुसकाए,
राम लखन मुनि शीश नवाए।
आज्ञा पाई उठे रघुराई,
इष्टदेव गुरु हिय मनाई॥
जनकसुता गौरी सिर नाई,
रामरूप उर अधिक भायी।
धनु उठाय जब राम खंड्यौ,
पटकि भू पर खंड-खंड गंड्यौ॥
जय जयकार भयो सुखकारी,
नर नारी भए अति हर्षित सारी।
सिय चली जयमाल सम्हारी,
ग्रीवा में राम के डारि प्यारी॥
मंगल बाजे बाजन लागे,
सिया राम फेरों में लागे।
अवध बारात हर्ष ले आई,
मातें तीनों नैनन नोराई॥
कैकेई कनक भवन सिय दीन्हीं,
मात सुमित्रा गोद में लीन्हीं।
कौशल्या सुत भेट सिय दीन्ही,
हरख अपार मन महँ कीन्ही॥
राजतिलक की बात चलाई,
बांटी सब विधि शुभ बधाई।
मंथरा मंदबुद्धि बहकाई,
राम न भरत राज पद पाई॥
कैकेई कोप भवन सिधारी,
वचन पति सों मांग सुद भारी।
चौदह बरस बनवास दिलाया,
भरत राज पर जान न पाया॥
राम लखन जानकी संगहि,
वन को पथ लगाए अंगहि।
मृग मारीचि देखे मन मोहा,
राम चले मृग ले संकोचा॥
रावण साधु रूप बन आयो,
भिक्षा कहि सिय हरि ले जायो।
लंका गय सिया डरावन लागा,
रामवियोग सों दुःख अनागा॥
हनुमान प्रभु कीन्ह उपाय,
चूड़ामणि सिय लै अंगूठी लाय।
सिंधु बंधि प्रभु लंका लीन्ही,
रावण मारी सिया कर लीन्ही॥
विभीषण करि भक्त पगधोरी,
राज्य दियो प्रभु रघुनाथ भोली।
विमान चढ़े सिया संग राम,
अवध पहुँचे लखि जन सुखधाम॥
रजक बचन सुनी सिय भेजी,
लखनलाल सन्देश सहेजी।
बाल्मीकि मुनि आश्रय दीन्हा,
लव-कुश जन्म वहीं पर लीन्हा॥
शिक्षा गुण विविध दिए,
रामचरित सुन हरष भरिए।
लरिकाई बानी जब सुनाई,
राम सिया सुत जानि हर्षाई॥
सिया लाय राम हिय लगाए,
जनमन सुख समुझ न समाए।
सत्य प्रकट करि सती प्रमाण,
धरती लीन्ही सिया बलवान॥
अवनि सुतासम धरती समाई,
राम जानकी विधि यह बताई।
पतिव्रता मर्यादा माता,
सीता सती नवौं मैं भ्राता॥
दोहा
जनकसुता अवनिधिया, राम प्रिया लवमात।
चरण कमल जेहिं बसत, सीता सुमिरै प्रात॥
Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सिर्फ अलग-अलग सूचना और मान्यताओं पर आधारित है। REPUBLIC BHARAT इस आर्टिकल में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता और प्रमाणिकता का दावा नहीं करता है।
Published By : Kajal .
पब्लिश्ड 5 May 2025 at 09:04 IST