अपडेटेड 11 July 2025 at 07:39 IST

Sawan 2025: सावन के मौके पर करें भगवान शिव को प्रसन्न, उनके सामने जरूर पढ़ें ये 'शिव स्तोत्र'

Sawan 2025: सावन की शुरुआत आप श्री शिवरामाष्टकस्तोत्रम् के साथ करें। ऐसे में यहां दिए गए लिरिक्स आपके बेहद काम आ सकते हैं।

Sawan 2025: सावन के मौके पर करें भगवान शिव को प्रसन्न, उनके सामने जरूर पढ़ें ये 'शिव स्तोत्र' | Image: social media

Sawan 2025: भगवान शिव का पावन महीना आज से शुरू हो रहा है। ऐसे में भक्तजन भोलेनाथ को खुश करने व उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए न केवल उपाय करते हैं बल्कि पूजा अर्चना भी करते हैं। आज हम श्री शिवरामाष्टकस्तोत्रम् के बारे में बात कर रहे हैं। ऐसे में लिरिक्स के बारे में पता होना जरूरी है।

आज का हमारा लेख इसी विषय पर है। आज हम आपको अपने इस लेख के माध्यम से बताएंगे कि श्री शिवरामाष्टकस्तोत्रम् के लिरिक्स क्या है। पढ़ते हैं आगे…

श्री शिवरामाष्टकस्तोत्रम् ॥

शिवहरे शिवराम सखे प्रभो,त्रिविधताप-निवारण हे विभो।

अज जनेश्वर यादव पाहि मां,शिव हरे विजयं कुरू मे वरम्॥

कमल लोचन राम दयानिधे,हर गुरो गजरक्षक गोपते।

शिवतनो भव शङ्कर पाहिमां,शिव हरे विजयं कुरू मे वरम्॥

स्वजनरञ्जन मङ्गलमन्दिर,भजति तं पुरुषं परं पदम्।

भवति तस्य सुखं परमाद्भुतं,शिवहरे विजयं कुरू मे वरम्॥

जय युधिष्ठिर-वल्लभ भूपते,जय जयार्जित-पुण्यपयोनिधे।

जय कृपामय कृष्ण नमोऽस्तुते,शिव हरे विजयं कुरू मे वरम्॥

भवविमोचन माधव मापते,सुकवि-मानस हंस शिवारते।

जनक जारत माधव रक्षमां,शिव हरे विजयं कुरू मे वरम्॥

अवनि-मण्डल-मङ्गल मापते,जलद सुन्दर राम रमापते।

निगम-कीर्ति-गुणार्णव गोपते,शिव हरे विजयं कुरू मे वरम्॥

पतित-पावन-नाममयी लता,तव यशो विमलं परिगीयते।

तदपि माधव मां किमुपेक्षसे,शिव हरे विजयं कुरू मे वरम्॥

अमर तापर देव रमापते,विनयतस्तव नाम धनोपमम्।

मयि कथं करुणार्णव जायते,शिव हरे विजयं कुरू मे वरम्॥

हनुमतः प्रिय चाप कर प्रभो,सुरसरिद्-धृतशेखर हे गुरो।

मम विभो किमु विस्मरणं कृतं,शिव हरे विजयं कुरू मे वरम्॥

नर हरेति परम् जन सुन्दरं,पठति यः शिवरामकृतस्तवम्।

विशति राम-रमा चरणाम्बुजे,शिव हरे विजयं कुरू मे वरम्॥

प्रातरूथाय यो भक्त्या पठदेकाग्रमानसः।

विजयो जायते तस्य विष्णु सान्निध्यमाप्नुयात्॥

नाग स्तोत्र

ब्रह्म लोके च ये सर्पाः शेषनागाः पुरोगमाः ।

नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः सन्तु मे सदा ॥

विष्णु लोके च ये सर्पाः वासुकि प्रमुखाश्चये ।

नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः सन्तु मे सदा ॥

रुद्र लोके च ये सर्पाः तक्षकः प्रमुखास्तथा ।

नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः सन्तु मे सदा ॥

खाण्डवस्य तथा दाहे स्वर्गन्च ये च समाश्रिताः ।

नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः सन्तु मे सदा ॥

सर्प सत्रे च ये सर्पाः अस्थिकेनाभि रक्षिताः ।

नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः सन्तु मे सदा ॥

प्रलये चैव ये सर्पाः कार्कोट प्रमुखाश्चये ।

नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः सन्तु मे सदा ॥

धर्म लोके च ये सर्पाः वैतरण्यां समाश्रिताः ।

नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः सन्तु मे सदा ॥

ये सर्पाः पर्वत येषु धारि सन्धिषु संस्थिताः ।

नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः सन्तु मे सदा ॥

ग्रामे वा यदि वारण्ये ये सर्पाः प्रचरन्ति च ।

नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः सन्तु मे सदा ॥

पृथिव्याम् चैव ये सर्पाः ये सर्पाः बिल संस्थिताः ।

नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः सन्तु मे सदा ॥

रसातले च ये सर्पाः अनन्तादि महाबलाः ।

नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः सन्तु मे सदा ॥

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Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सिर्फ अलग-अलग सूचना और मान्यताओं पर आधारित है। REPUBLIC BHARAT इस आर्टिकल में दी गई किसी भी जानकारी की सत्‍यता और प्रमाणिकता का दावा नहीं करता है।

Published By : Garima Garg

पब्लिश्ड 11 July 2025 at 07:39 IST