अपडेटेड 4 April 2025 at 09:23 IST
Maa Kalratri Chalisa: मां कालरात्रि की पूजा करते समय पढ़ें ये चालीसा, मिलेगी हर दोष से मुक्ति
Chaitra Navratri 2025 Maa Kalratri Chalisa: चैत्र नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा करते समय इस चालीसा का पाठ जरूर करना चाहिए।
Maa Kalratri Chalisa: नवरात्रि (Chaitra Navratri 2025) में मां दुर्गा के नौ अलग-अलग स्वरूपों की पूजा-अर्चना की जाती है। आज यानी शुक्रवार, 4 अप्रैल को नवरात्रि का सातवां दिन है। इस दिन मां पार्वती के कालरात्रि स्वरूप की पूजा-अर्चना का विधान है। माना जाता है कि नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि की उपासना करने से साधक को सभी प्रकार के भय और दुखों से मुक्ति मिल जाती है।
मां कालरात्रि के स्वरूप की बात करें तो उनके बाल खुले रहते हैं। के एक हाथ अभय मुद्रा में है और दूसरा हाथ वरद मुद्रा में है, जो अपने भक्तों के कष्टों को दूर करने के लिए हर समय तत्पर रहते हैं। इसके साथ ही गधे पर सवार होकर देवी अपने भक्तों की रक्षा करती हैं। ऐसे में अगर आप मां कालरात्रि को प्रसन्न करना चाहते हैं तो आपको उनकी इस चालीसा का पाठ जरूर करना चाहिए।
मां कालरात्रि चालीसा (Maa Kalratri Chalisa)
दोहा
जय काली, कलिमलहरण, महिमा अगम अपार।
महिष मर्दिनी कालिका, देहु अभय अपार॥
चौपाई
अरि मद मान मिटावन हारी, मुण्डमाल गल सोहत प्यारी॥
अष्टभुजी सुखदायक माता, दुष्टदलन जग में विख्याता॥ 1॥
भाल विशाल मुकुट छवि छाजै, कर में शीश शत्रु का साजै॥
दूजे हाथ लिए मधु प्याला, हाथ तीसरे सोहत भाला॥ 2॥
चौथे खप्पर खड्ग कर पांचे, छठे त्रिशूल शत्रु बल जांचे॥
सप्तम करदमकत असि प्यारी, शोभा अद्भुत मात तुम्हारी॥ 3॥
अष्टम कर भक्तन वर दाता, जग मनहरण रूप ये माता॥
भक्तन में अनुरक्त भवानी, निशदिन रटें ऋषि-मुनि ज्ञानी॥ 4॥
महाशक्ति अति प्रबल पुनीता, तू ही काली तू ही सीता॥
पतित तारिणी हे जग पालक, कल्याणी पापी कुल घालक॥ 5॥
शेष सुरेश न पावत पारा, गौरी रूप धर्यो इक बारा॥
तुम समान दाता नहिं दूजा, विधिवत करें भक्तजन पूजा॥ 6॥
रूप भयंकर जब तुम धारा, दुष्टदलन कीन्हेहु संहारा॥
नाम अनेकन मात तुम्हारे, भक्तजनों के संकट टारे॥ 7॥
कलि के कष्ट कलेशन हरनी, भव भय मोचन मंगल करनी॥
महिमा अगम वेद यश गावैं, नारद शारद पार न पावैं॥ 8॥
भू पर भार बढ़्यो जब भारी, तब तब तुम प्रकटीं महतारी॥
आदि अनादि अभय वरदाता, विश्वविदित भव संकट त्राता॥ 9॥
कुसमय नाम तुम्हारौ लीन्हा, उसको सदा अभय वर दीन्हा॥
ध्यान धरें श्रुति शेष सुरेशा, काल रूप लखि तुमरो भेषा॥ 10॥
कलुआ भैंरों संग तुम्हारे, अरि हित रूप भयानक धारे॥
सेवक लांगुर रहत अगारी, चौसठ जोगन आज्ञाकारी॥ 11॥
त्रेता में रघुवर हित आई, दशकंधर की सैन नसाई॥
खेला रण का खेल निराला, भरा मांस-मज्जा से प्याला॥ 12॥
रौद्र रूप लखि दानव भागे, कियौ गवन भवन निज त्यागे॥
तब ऐसौ तामस चढ़ आयो, स्वजन विजन को भेद भुलायो॥ 13॥
ये बालक लखि शंकर आए, राह रोक चरनन में धाए॥
तब मुख जीभ निकर जो आई, यही रूप प्रचलित है माई॥ 14॥
बाढ़्यो महिषासुर मद भारी, पीड़ित किए सकल नर-नारी॥
करूण पुकार सुनी भक्तन की, पीर मिटावन हित जन-जन की॥ 15॥
तब प्रगटी निज सैन समेता, नाम पड़ा मां महिष विजेता॥
शुंभ निशुंभ हने छन माहीं, तुम सम जग दूसर कोउ नाहीं॥ 16॥
मान मथनहारी खल दल के, सदा सहायक भक्त विकल के॥
दीन विहीन करैं नित सेवा, पावैं मनवांछित फल मेवा॥ 17॥
संकट में जो सुमिरन करहीं, उनके कष्ट मातु तुम हरहीं॥
प्रेम सहित जो कीरति गावैं, भव बंधन सों मुक्ती पावैं॥ 18॥
काली चालीसा जो पढ़हीं, स्वर्गलोक बिनु बंधन चढ़हीं॥
दया दृष्टि हेरौ जगदम्बा, केहि कारण मां कियौ विलम्बा॥ 19॥
करहु मातु भक्तन रखवाली, जयति जयति काली कंकाली॥
सेवक दीन अनाथ अनारी, भक्तिभाव युति शरण तुम्हारी॥ 20॥
दोहा
प्रेम सहित जो करे, काली चालीसा पाठ।
तिनकी पूरन कामना, होय सकल जग ठाठ॥
Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सिर्फ अलग-अलग सूचना और मान्यताओं पर आधारित है। REPUBLIC BHARAT इस आर्टिकल में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता और प्रमाणिकता का दावा नहीं करता है।
Published By : Kajal .
पब्लिश्ड 4 April 2025 at 09:23 IST