अपडेटेड 27 July 2025 at 12:01 IST
Mann Ki Baat: कौन थे खुदीराम बोस? जिनका पीएम मोदी ने मन की बात में किया जिक्र,सबसे कम उम्र में भगवद गीता साथ लेकर हुए शहीद
पीएम मोदी ने स्वतंत्रता संग्राम के वीर सूपत और भारत के सबसे कम उम्र के शहीद क्रांतिकारी खुदीराम बोस को याद किया।
Mann Ki Baat: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज, 27 जुलाई 2025 को रेडियो शो 'मन की बात' के 124वें एपिसोड के तहत देश को संबोधित किया। एपिसोड में उन्होंने 11 अगस्त 1908 का जिक्र किया। ये वही तारीख है जिस दिन खुदीराम बोस को फांसी दी गई थी।
पीएम मोदी ने भारत के सबसे कम उम्र के शहीद क्रांतिकारी खुदीराम बोस को बहादुर और साहसी बताया। उन्होंने कहा कि महज 18 साल की उम्र में उनके साहस ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था।
PM ने बिहार के बलिदानी सपूत को किया याद
देश को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने कहा, 'मेरे प्यारे देशवासियों, कल्पना कीजिए, सुबह-सुबह, बिहार का मुजफ्फरपुर शहर, तारीख 11 अगस्त 1908... हर गली, हर चौराहा, हर हलचल उस समय ठहर सी गई थी। लोगों की आंखों में आंसू थे, लेकिन दिलों में आग थी। लोग जेल के चारों ओर जमा हो गए थे, जहां एक 18 साल का युवा ब्रिटिशों के खिलाफ अपनी देशभक्ति व्यक्त करने की कीमत चुका रहा था।'
उसके चेहरे पर डर नहीं, बल्कि गर्व था- PM
उन्होंने आगे कहा, 'जेल के अंदर ब्रिटिश अधिकारी एक युवा को फांसी देने की तैयारी कर रहे थे। उस वक्त भी उस युवा के चेहरे पर कोई डर नहीं, बल्कि गर्व था। वही गर्व, जो अपने देश के लिए मरने वालों को होता है। वह बहादुर, साहसी युवा खुदीराम बोस था। महज 18 साल की उम्र में उन्होंने ऐसा साहस दिखाया जिसने पूरे देश को हिला दिया।'
'कट्टर देशभक्तों ने स्वतंत्रता आंदोलन को पोषित किया'
PM मोदी ने आगे कहा, 'उस समय अखबारों ने भी लिखा था- 'जब खुदीराम बोस फांसी की ओर बढ़े, उनके चेहरे पर मुस्कान थी'। ऐसी अनगिनत कुर्बानियों और सदियों की तपस्या के बाद हमें आजादी मिली। देश के कट्टर देशभक्तों ने अपने खून से स्वतंत्रता आंदोलन को पोषित किया है।
कौन थे खुदीराम बोस?
खुदीराम बोस को आजादी की लड़ाई में फांसी पर चढ़ने वाला सबसे कम उम्र का क्रांतिकारी माना जाता है। उन्हें 11 अगस्त 1908 को फांसी पर चढ़ाया गया था। उस समय उनकी उम्र महज 18 साल कुछ महीने थी।
भगवद गीता साथ लेकर हुए शहीद
अंग्रेज सरकार खुदीराम की निडरता और वीरता से इस कदर परेशान थी कि उनकी कम उम्र के बावजूद उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई। साहसी खुदीराम हाथ में भगवद गीता लिए खुशी-खुशी फांसी चढ़ गया। खुदीराम की लोकप्रियता का ऐसा आलम था कि उन्हें फांसी दिए जाने के बाद बंगाल के जुलाहे एक खास किस्म की धोती बुनने लगे, जिसकी किनारी पर खुदीराम लिखा होता था। बंगाल के नौजवान बड़े गर्व से उस धोती को पहनकर आजादी की लड़ाई में कूद पड़े थे।
Published By : Priyanka Yadav
पब्लिश्ड 27 July 2025 at 12:01 IST