अपडेटेड 30 December 2025 at 20:29 IST
एक फैसले पर विरोध के बीच कहीं दब गई थी पहाड़ की आवाज, जरा अरावली की पुकार भी तो सुन लो हुक्मरान
पिछले पांच साल में अरावली की छाती इतनी खोदी गई है कि लगभग पहाड़ियां छिछली हो चुकी हैं और ऊपर से 100 मीटर के फॉर्मूले ने विनाश का रास्ता खोल दिया। फिर अब सुप्रीम कोर्ट ने अपने ही फैसले पर रोक लगा दी है।
ये आवाजें सुन रहे हैं ना… एकदम करकस …कानों को चुभती….कलेजे को चीरती… ये बदली हुईं आवाजें, जो पहले इन वादियों में सुनाई नहीं देती थी। ऐसी आवाजों का दूर-दूर तक कोई लेना देना नहीं था, लेकिन अब ये आवाजें इन वादियों के रूह को परेशान कर रही हैं।इन रूहानी दर्द को लेकर आंदोलन शुरू हुए और उसका असर भी दिखा। जिस सुप्रीम कोर्ट ने आंखें बंद करके केंद्र की सिफारिश को मान लिया था, उसने अब अपने ही फैसले पर रोक लगा दी है।
इससे उन आंदोलनकारियों का राहत मिली है जो पिछले कई दिनों से सड़कों पर उतरे हुए थे, लेकिन हकीकत ये है कि आज अरावली की पहाड़ियां उजड़ी हुई हैं, लेकिन पहले ये इलाका ऐसा ना था। खुशनुमा संसार था। वादियों में एक अलग चाहत थी। अजीब सुकून था। सरसराती हवाएं बेहद मोहक, उूदी हवा लोगों के शरीर में लगती तो अरावली की याद आती थी। फिर धुआं छोड़ते आसमान अपने सबसे अजीज की याद दिलाती थी, लेकिन अब उड़ती धूल में सबकुछ धूमिल हो रहा है।
कहीं क्रेशर मशीन की आवाजें दौड़ रही हैं, तो कहीं ड्रिल मशीनें शोर मचा रही हैं और ऊपर से आसमान में उड़ती धूल 1.44 लाख वर्ग किलोमीटर के दायरे को ओझल कर रहा है। 4 राज्यों का आन-बान और शान अब साजिश का शिकार हो रहा है। उसके फैलाव पर प्रकृति के दुश्मन की गहरी नजर है। अरावली की वादियों को सिकुड़ाने की साजिश हो रही है। हालत ये हो गई है कि कहीं आधा हिस्सा तो कहीं पूरी पहाड़ी ही गायब हो गई है।
कई जगहों पर कंगाल जैसी हालत हो गई है। ये सिर्फ चंद स्वार्थ के लिए, चंद पैसों के लिए, पहाड़ों के पत्थर को निकाला जा रहा है। पिछले पांच साल में अरावली की छाती इतनी खोदी गई है कि लगभग पहाड़ियां छिछली हो चुकी हैं और ऊपर से 100 मीटर के फॉर्मूले ने विनाश का रास्ता खोल दिया है। ऐसा तब है जब Forest Survey of India यानी FSI ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि अरावली की करीब 10 हजार पहाड़ियों में खनन होने से पर्वतमाला लगातार खत्म होती जा रही है।
इस रिपोर्ट का असर भी हुआ और Central Empowered Committee ने खनन पर रोक लगाने की सिफारिश सुप्रीम कोर्ट से की। इसके जवाब में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में रिपोर्ट दाखिल कर राजस्थान में लागू रिचर्ड बर्फी के लैंडफॉर्म सिद्धांत को देश भर में लागू करने की बात कही। इस सिद्धांत के तहत सिर्फ 100 मीटर या उससे ऊंची पहाड़ी को ही अरावली माना गया। इस सिफारिश के मानने के बाद प्रकृति से प्रेम करने वाले सड़कों पर उतर आए और अरावली की वादियों को बचाने के लिए कमर कस ली।
सोशल मीडिया पर अरावली की बातें ट्रेड करने लगी। अरावली में अवैध खनन को दिल्ली के प्रदूषण से जोड़ा गया। 4 राज्यों के मौसम से जोड़कर देखा जाने लगा। देश को एहसास होने लगा कि सुप्रीम कोर्ट ने जिस रिपोर्ट की सिफारिश पर मुहर लगा दी है वो प्रकृति के खिलाफ है। पर्यवारण के लिए आंदोलन की शुरूआत हो गई और ये आंदोलन सिर्फ अरावली के आस-पास नहीं, इसकी गूंज पूरे देश में होने लगी। अरावली की नई परिभाषा को लेकर आंदोलन होने लगे। वजह साफ है कि राजस्थान की 12,081 पहाड़ की ऊंचाई सिर्फ 20 मीटर है और 1,048 पहाड़ की ऊंचाई 100 मीटर या उससे ऊंची है। मतलब 8.7% पहाड़ ही 100 मीटर से ऊंचे हैं। ऐसे में नई परिभाषा के मुताबिक राजस्थान की 12,081 पहाड़ पर खतरा बढ़ गया था।
केंद्र की सिफारिश पर सुप्रीम कोर्ट की हामी भरने की वजह से अरावली के अस्तित्व पर बड़ा संकट गहराने लगा था। उस अरावली का जिसका इतिहास 2 अरब साल का है, उस अरावली का जो पश्चिमी भारत की एक ऐसी पर्वत श्रृंखला है जो 692 किलोमीटर उत्तर-पूर्व तक फैली हुई है। वो अरावली का जो विश्व की प्राचीनतम पर्वतमाला में एक है लेकिन अब लोगों की नजर नई परिभाषा पर है, जिसका पूरजोर विरोध हो रहा है। पर्यावरण प्रेमी की पहल कामयाब हो रही है और उम्मीद है कि अरावली की बची खुची हरियाली कायम रहेगी। फिर से वादियों में चिड़िया चहचहाएगी। बंजर पड़े पहाड़ों पर पेड़-पौधे फिर से लहलहाएंगे। फिर से सरसराती हवाएं और भी मनमोहक होंगी।
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Published By : Sujeet Kumar
पब्लिश्ड 30 December 2025 at 20:29 IST