अपडेटेड 5 August 2024 at 16:00 IST

राजधानी में मौत का 'शेल्टर होम', लचर व्यवस्था; उठते सवाल और खामोश सरकार

सिस्टम की लापरवाही और सरकार की अनदेखी से अगर किसी की भी मौत होती है तो इससे ज्यादा दुर्भाग्य कुछ भी नहीं हो सकता है।

Asha Kiran Shelter Home & IAS Coaching Center | Image: PTI

मृत्यु एक शाश्वत सत्य है। जो इस दुनिया में आया है उसे एक ना एक दिन जाना ही है, लेकिन सिस्टम की लापरवाही और सरकार की अनदेखी से अगर किसी की भी मौत होती है तो इससे ज्यादा दुर्भाग्य कुछ भी नहीं हो सकता है। अगर ऐसी घटना देश के किसी सुदूर इलाके हो। जहां बुनियादी ढांचा ना हो अस्पताल ना हो तो बात समझ में आती भी है। लेकिन ऐसी घटना देश की राजधानी में हो। जहां सारा तंत्र मौजूद है। तेज तर्रार अफसर हैं। केंद्र सरकार का मार्गदर्शन हो दिल्ली सरकार का दखल हो वहां पानी में डूब कर बच्चों की मौत हो जाती है। नाले में डूबकर महिला को जान गंवानी पड़ती है और तो और शेल्टर होम में रहस्यमयी ढ़ग से बच्चों की मौत हो रही है। सही मायने में इससे ज्यादा शर्मनाक बात हो नहीं सकती।

ओल्ड राजेंद्र नगर के कोचिंग सेंटर में बच्चों की मौत हुई तो एमसीडी पर ठीकरा फोड़ दिया गया। खोड़ा में महिला और 3 साल के मासूम की मौत हुई तो भी इल्जाम एमसीडी लगा दिया गया। अब शेल्टर होम में 14 बच्चों की मौत हुई तो दिल्ली सरकार ने मजिस्ट्रेट जांच का शिगुफा छोड़ा है। वैसे शेल्टर होम में पहली बार बच्चों की मौत नहीं हुई है। पिछले 7 महीनों में 27 बच्चों की मौत चुकी है। लेकिन सरकार के कान में जूं तक नहीं रेंगा। अब जब एक साथ 14 बच्चों की मौत हो गई। तो दिल्ली के मंत्री लगे खैरख्वाह बनने। 
 

मौत का शेल्टर होम! 

साल 2024 की बात करें तो जनवरी महीने में शेल्टर होम में 3 बच्चों की मौत हुई। फरवरी में 2 बच्चों की, मार्च में फिर 3 बच्चों की मौत हुई। अप्रैल में 2, मई में 1 , जून में 3 बच्चों को जान गंवानी पड़ी और अब जुलाई महीने में 14 बच्चों को जान से हाथ धोना पड़ा है। मतलब दिल्ली सरकार को जगाने के लिए 27 बच्चों को बलि देनी पड़ी है तब जाकर सरकार जागी है और खुद को ऐसा बता रही है जैस वो निर्दोष है। बेगुनाह है। 

बड़े-बड़े दावे के साथ केजरीवाल दिल्ली की तख्त पर दस्तक दी थी पिछले 10 सालों से दिल्ली पर आम आदमी पार्टी का शासन है। लेकिन दिल्ली सरकार ना तो बुनियादी ढांचे पर ध्यान दी और ना ही आने वाले दिक्कतों को समझ पाई उसका नतीजा अब दिखने लगा है। गलती पिछली सरकारों की भी है लेकिन सवाल ये है कि कब तक अपनी जिम्मेवारी से भागेंगे? कब तक 'टोपी ट्रांसफर' की नीति पर चलेंगे? मान लीजिए पिछली सरकारें विफल साबित रहीं लेकिन आप तो 10 साल से सरकार में हैं। आपने क्यों नहीं कदम उठाए? क्या एक-दूसरे पर आरोप लगाकर बच्चे वापस आ जाएंगे? चलिए जब जाम की समस्या के लिए एमसीडी दोषी है लेकिन जो संस्था सरकार के जरिए संचालित हो रही हो उस संस्था में पिछले 7 महीने में 27 बच्चों की मौत हो जाती है और सरकार निरंकुश हो कर देखती रही। 

शेल्टर होम की क्षमता लगभग 500 है, लेकिन अंदर लगभग 950 लोग रहते हैं। क्या सरकार को मालूम नहीं? बताया जा रहा कि शेल्टर होम के अंदर के हालात बेहद खराब हैं। बच्चों को जो सुविधा पहले मिलती थी वो अब नहीं मिल रही है। शेल्टर होम में ना बच्चों को प्रॉपर डाइट मिल रही है और ना ही दूसरी सुविधाएं। बताया जा रहा है शेल्टर होम के अंदर अभी भी कम से कम 20 से 25 बच्चों को टीबी की बीमारी है। ऐसे सवाल ये है कि जो शेल्टर होम सरकार की देखरेख में चल रहा है उसकी हालत ये है, तो बाकियों की हालत क्या होगी? क्या इसी दिन के लिए राजनेता वोट मांगते हैं ? क्या इसी दिन के लिए पब्लिक उन्हें चुनकर विधानसभा और संसद भेजती है? सरकारें कोई भी हो उन्हें दलगत सोच से आगे निकलना पड़ेगा पब्लिक के समस्याओं को समझना होगा...चाहे वो बीजेपी हो, कांग्रेस हो या फिर आम आदमी पार्टी। 

अगर ऐसा ही चलता रहा तो एक दिन कोई भी किसी को वोट नहीं देगा और नोटा के ऑपशन को बेहतर समझेगा। वैसे भी 2024 के आम चुनाव में ‘नोटा’ ने नया रिकॉर्ड बनाया है लोकसभा चुनाव में कुल मतदाताओं में से करीब 1 फीसदी मतदाताओं ने नोटा के प्रति अपना विश्वास जताया है। ऐसे में सियासी पार्टियों को समझना होगा कि उनकी राजनीतिक पटरी की दिशा गलत चल रही है। क्योंकि अब मतदाता जागरुक हो चुके हैं और उन्हें मालूम है कि कौन लोगों के लिए काम कर रहा है कौन जुमले का पाठ पढ़ा रहा है? ऐसे में अब वादों  और दावों से नहीं, मूलभूत सुविधाएं जमीन पर भी नजर आनी चाहिए, नहीं तो जो आज सत्ता की मलाई खा रहे हैं उन्हें जनता सबक सीखा सकती है और इतिहास गवाह है कि पब्लिक को सत्ता परिवर्तन करने में देर नहीं लगती है।

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Published By : Sujeet Kumar

पब्लिश्ड 5 August 2024 at 16:00 IST