अपडेटेड 21 July 2025 at 14:21 IST

Sawan 2025: सावन में मांसाहारी भोजन क्यों नहीं करना चाहिए? शिवजी की पूजा के अलावा ये है वैज्ञानिक तर्क

सनातन परंपरा में सावन का महीना बेहद पवित्र माना गया है। हर तरफ भक्ति का माहौल नजर आता है। इस दौरान कांवड़ यात्रा भी निकलती हैं। मगर सावन के महीने मांसाहारी क्यों बंद रहता है, इसके पीछे अलग तर्क है।

Sawan 2025 | Image: Freepik

हिंदू धर्म में सावन का महीना बेहद ही पावन होता है। भगवान भोलेनाथ के यह प्रिय महीना होता है। इस महीने में हर सोमवार को श्रद्धालु व्रत रखते है और शिवलिंग पर जलाभिषेक, रुद्राभिषेक आदि पूजन करते हैं। पूजा के दौरान शुद्धता का विशेष ध्यान रखा जाता है। ऐसे में एक मान्यता है कि सावन महीने के दौरान मांसाहार का सेवन नहीं किया जाता है। जानते हैं इसके पीछे के आध्यात्मिकता और वैज्ञानिक कारणों के बारे में...


सावन का महीना वर्षा ऋतु में आता है। सनातन परंपरा में सावन का महीना व्रत और अनुष्ठान के लिए बेहद पवित्र माना जाता है।  इस महीने भगवान शिव का व्रत रखा जाता है और कांवड़ यात्रा निकाली जाती है, इसीलिए इस महीने में मांसाहार से परहेज किया जाता है।

धार्मिक मान्यताओं में क्या कहा गया?

धार्मिक मान्यताओं  के अनुसार, सावन के पावन महीना में मांसाहार का सेवन करना अशुभ माना गया है। यही वजह है कि पूरे महीने यह वर्जित रहता है। इस मास में किसी भी जीव की हत्या को पाप समझा जाता है,क्योंकि यह महीने ईश्वर भक्ति, तप, संयम और आत्मशुद्धि का समय होता है।

मांस-मछली क्यों है मना

मांस-मछली को तामसिक आहार माना गया है, इससे पीछे का तर्क है कि इस भोजन के सेवन से सुस्ती, आलस्य, अहंकार और क्रोध बढ़ जाता है। इन सब वजहों से लोगों की अध्यातम से दूरी हो जाती है। इंद्रियों पर काबू रखने के लिए आहार पर नियंत्रण जरूरी बताया है। ऐसे भोजन सात्विकता दूर करते हैं। पूजा के दौरान व्यक्ति की एकाग्रता भंग हो जाती है।

 वैज्ञानिक दृष्टि से क्यों ना करें मांसाहार का सेवन 

अब जानते हैं वैज्ञानिक दृष्टि से सावन के महीने मासांहार के सेवन नहीं करने की पीछे के वजहों के बारे में। इस महीने में वातावरण में नमी होती है। इस मौसम में मांस-मछली सड़ते जल्दी हैं। इमने जिनमें बैक्टीरिया और फंगस पनप सकते हैं। ऐसे में इसका सेवन करने से फूड पॉइजनिंग,पेट की बीमारियां और संक्रमण की संभावना जाती है।


आयुर्वेद की मानें तो बरसात में पाचन क्षमता कमजोर हो जाती है, जिससे भारी भोजन पचाना मुश्किल हो जाता है। वैदिक ग्रंथों में वर्षाकाल के खान-पान और आहार-विहार के लिए नियम बनाए गए हैं। पत्तेदार सब्जियों और शाक पर भी खाने में प्रतिबंध लगाया जाता है, क्योंकि इनमें कीड़े पाए जा सकते हैं।  

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Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सिर्फ अलग-अलग सूचना और मान्यताओं पर आधारित है। REPUBLIC BHARAT इस आर्टिकल में दी गई किसी भी जानकारी की सत्‍यता और प्रमाणिकता का दावा नहीं करता है।

Published By : Rupam Kumari

पब्लिश्ड 21 July 2025 at 14:21 IST