अपडेटेड 1 August 2025 at 19:18 IST
यूपी के इस जिले में दो साल से ट्राई साइकिल से घूम रही 'लाश', रोज काटता है सरकारी ऑफिस का चक्कर; अधिकारियों से कर रहा ये डिमांड
40 वर्षीय नवनीत मिश्रा की कहानी हैरान कर देने वाली है। सरकारी रिकॉर्ड में उन्हें दो साल पहले मृत घोषित कर दिया गया, लेकिन हकीकत ये है कि वे आज भी जीवित हैं और खुद को जिंदा साबित करने के लिए दर-दर भटक रहे हैं।
UP News: यूपी के कुशीनगर के जड़हा गांव के रहने वाले 40 वर्षीय नवनीत मिश्रा की कहानी हैरान कर देने वाली है। सरकारी रिकॉर्ड में उन्हें दो साल पहले मृत घोषित कर दिया गया, लेकिन हकीकत ये है कि वे आज भी जीवित हैं और खुद को जिंदा साबित करने के लिए दर-दर भटक रहे हैं। यह मामला फिल्मी नहीं, असल जिंदगी की भयावह सच्चाई है।
ग्राम पंचायत सहायक मृत्युंजय कुमार गौतम द्वारा नवनीत को बिना किसी पुख्ता जांच के कागजों पर मृत घोषित कर दिया गया। इस लापरवाही के बाद ना सिर्फ उनकी पहचान मिटा दी गई, बल्कि उनकी पेंशन और सारी सरकारी योजनाओं के लाभ भी रोक दिए गए। बिना किसी अपराध के, उन्हें ऐसी सजा मिल रही है जैसे उन्होंने कोई बड़ा जुर्म किया हो।
दिव्यांगता के साथ दोहरी मार
नवनीत मिश्रा 90 प्रतिशत दिव्यांग हैं। शरीर की मजबूरी पहले ही उनकी जिंदगी को कठिन बना रही थी, ऊपर से यह सरकारी अन्याय उनका जीवन और भी दुखद बना चुका है। जिन योजनाओं का लाभ उन्हें मिलना चाहिए था, उनसे वे वंचित हो चुके हैं, और हर दिन जीने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। नवनीत मिश्रा डीएम, बीडीओ और तहसील के दफ्तरों के चक्कर लगा-लगाकर थक चुके हैं। बार-बार नए दस्तावेज मांगे जाते हैं, गवाह बुलाने को कहा जाता है, लेकिन कहीं सुनवाई नहीं होती। वे आज एक ऐसे नागरिक बन चुके हैं जिसे अपनी सांसों का भी प्रमाण देना पड़ रहा है।
लोकतंत्र पर तमाचा
यह केवल नवनीत की नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की विफलता की कहानी है। यह मामला हमारे प्रशासनिक तंत्र की संवेदनहीनता और जवाबदेही की पोल खोलता है। अगर एक जिंदा व्यक्ति को खुद को जिंदा साबित करने में सालों लग जाएं, तो यह सिर्फ त्रासदी नहीं बल्कि लोकतंत्र पर सीधा तमाचा है।
Published By : Ankur Shrivastava
पब्लिश्ड 1 August 2025 at 19:18 IST