अपडेटेड 26 August 2025 at 19:28 IST

संघ की सार्थकता भारत के विश्व गुरु बनने में है, इसलिए योगदान करने लायक उसको बनना है- मोहन भागवत

Mohan Bhagwat: आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा,"संघ के निर्मिति (बनाना) का प्रयोजन भारत है, संघ के चलने का प्रयोजन भारत है और संघ की सार्थकता भारत के विश्वगुरु बनने में है। " उन्होंने आगे कहा कि हमारे राष्ट्र को पुनः महान बनाने का एकमात्र उपाय है हमारे समाज का गुणात्मक विकास और राष्ट्र की प्रगति में सम्पूर्ण समाज की भागीदारी।

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Mohan Bhagwat | Image: RSS/X

Mohan Bhagwat: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में दिल्ली के विज्ञान भवन में व्याख्यानमाला (100 वर्ष की संघ यात्रा - नए क्षितिज) का आयोजन किया गया है। इस तीन दिवसीय आयोजन (26 से 28 अगस्त) का आज पहला दिन है। इस खास मौके पर उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा, "संघ के बारे में बहुत सारी चर्चाएं चलती हैं। ध्यान में आया कि जानकारी कम है। जो जानकारी है, वह ऑथेंटिक कम है। इसलिए अपनी तरफ से संघ की सत्य और सही जानकारी देना चाहिए। संघ पर जो भी चर्चा हो, वह परसेप्शन पर नहीं बल्कि फैक्ट्स पर हो।"

उन्होंने आगे कहा कि संघ की सार्थकता भारत के विश्व गुरु बनने में है, इसलिए योगदान करने लायक उसको बनना है।


संघ की सार्थकता भारत के विश्वगुरु बनने में है -  मोहन भागवत

आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा,"संघ के निर्मिति (बनाना) का प्रयोजन भारत है, संघ के चलने का प्रयोजन भारत है और संघ की सार्थकता भारत के विश्वगुरु बनने में है। " उन्होंने आगे कहा कि हमारे राष्ट्र को पुनः महान बनाने का एकमात्र उपाय है हमारे समाज का गुणात्मक विकास और राष्ट्र की प्रगति में सम्पूर्ण समाज की भागीदारी। 


मोहन भागवत ने कहा, "एक बात तो स्वतः सिद्ध है कि देश को बड़ा करना है, देश को स्वतंत्र रहना है, कुछ भी करना है तो नेताओं के भरोसे, संगठनों के भरोसे नहीं होता। वो सहायक जरूर होते हैं लेकिन सबको लगना पड़ता है। सब में एक गुणवत्ता आनी पड़ती है। पूरे समाज के प्रयास से कोई भी परिवर्तन आता है।" उन्होंने आगे कहा, “आज हम अपने देश को बड़ा करना चाह रहे हैं, वो किसी के भरोसे छोड़कर नहीं होता, सब सहायक होंगे। ”

ये परंपरा जिनकी है, ये संस्कृति जिनकी है, वो हिन्दू हैं - मोहन भागवत

मोहन भागवत ने हिन्दू और मुसलमान धर्म का जिक्र करते हुए कहा कि हम मनुष्यों में अंतर नहीं करते हैं। हमारा विचार, व्यक्ति, मानवता और दृष्टि परमात्मा के कारण एक दूसरे से जुड़ी है। इन तीनों के विकास में मनुष्य का विकास है। मुसलमान, अल्लाह, पैगंबर, कुरान को मानता है, उसे ही मुसलमान कहते हैं, लेकिन हिन्दू एक ईश्वर को मानने वाला नहीं है, एक ग्रंथ नहीं है, ना कोई एक गुरु है, ये सबको स्वीकार करते हैं। विश्व में जितने पूजा के तरीके हैं, वो एक ही जगह पहुंचेंगे। उन्होंने आगे कहा कि पृथ्वी पर वर्षा होती है तो वो सागर में जाती है, ये श्रद्धा में विश्वास रखने वालों को हिन्दू नाम दिया गया। जो रास्ता मिला है, उसको बदलो मत, दूसरों को भी मत बदलो। रास्तों को लेकर झगड़ा मत करो, आपस में मिलकर चलो, ये परंपरा जिनकी है, ये संस्कृति जिनकी है, वो हिन्दू हैं।

मोहन भागवत ने कहा कि इस परंपरा, संस्कृति के बनने का कारण भारत है। हमारे प्राचीन समय में भारत में संघर्ष की स्थिति नहीं थी, जो परंपरा थी, उसमें संयम था। झगड़ा क्यों करना, मिल जुलकर जी सकते हैं, झगड़ा कौन करे, इसलिए हमें सुरक्षा और समृद्धि मिली। हमने अपने अंतर सत्य को खोजा, उसने हमें बताया कि दिखता अलग-अलग है, सब एक है। हमारा स्वाभाविक धर्म समन्वय है, संघर्ष नहीं। इसलिए इस मातृभूमि के प्रति भक्ति है। भारत माता हमारी मां है, भारत माता ने हमें संस्कार दिए।

 

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Published By : Amit Dubey

पब्लिश्ड 26 August 2025 at 19:27 IST