अपडेटेड 12 April 2025 at 12:21 IST
'बहुत दर्द हुआ, सिसकियां ले याद किया, वो मां कैसे सोयी होगी...' जज ने कविता लिख बच्ची के दुष्कर्मी को सुनाई फांसी की सजा
जज तबस्सुम खान ने फांसी की सजा सुनाते हुए लिखा- 'वो छोटी सी बच्ची थी, ढंग से बोल ना पाती थी. जिसने जीवन के केवल, पांच बसंत ही देखे थे, उसपे ये अन्याय हुआ।
मध्यप्रदेश के नर्मदापुरम जिले के सिवनी मालवा में 6 साल की मासूम बच्ची के साथ हुए दुष्कर्म और हत्या के मामले में न्याय की गूंज अब कविता में भी सुनाई दी। एक ऐसी कविता तो आप पढ़ लेंगे तो अपने आंसू नहीं रोक पाएंगे। नयायधीश तबस्सुम ने कविता कि शुरुआत- ‘वो छोटी सी बच्ची थी, ढंग से बोल ना पाती थी…’ से की। दरअसल हमने पूरी कविता यहां लिखा है आप उसे पढ़ सकते हैं। प्रथम जिला एवं अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश तबस्सुम खान ने शुक्रवार (11 अप्रैल) की शाम आरोपी अजय वाडीवा को फांसी की सजा सुनाते हुए एक मार्मिक कविता के माध्यम से पीड़िता की वेदना को न्याय के शब्द दिए।
तीन कानूनों के तहत मिली मृत्युदंड की सजा
कोर्ट ने आरोपी को भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 137(2), 64, 65(2), 103(1), 66 और पॉक्सो एक्ट की धारा 5(एम) और 6 के तहत दोषी मानते हुए मृत्युदंड और 3000 रुपए का जुर्माना लगाया है। साथ ही पीड़िता के माता-पिता को 4 लाख रुपए मुआवजा देने का भी आदेश दिया गया है।
कोर्ट ने 3 महीने के भीतर सुनाया फैसला
एडीपीओ मनोज जाट ने बताया कि यह मामला नए कानूनों के तहत मध्य प्रदेश का पहला ऐसा फैसला है, जो 90 दिन के भीतर आया है। घटना 2 जनवरी 2025 की रात की है, जब आरोपी अजय मासूम को घर से उठाकर नहर किनारे झाड़ियों में ले गया, जहां उसने दुष्कर्म कर मासूम की हत्या कर दी। सिवनी मालवा पुलिस ने 24 घंटे में आरोपी को गिरफ्तार कर पेश किया और कोर्ट ने 3 महीने के भीतर फैसला सुना दिया।
कविता बनी न्याय की आवाज
फैसले के दौरान कोर्ट में मार्मिक कविता पेश की गई, जिसे न्यायाधीश तबस्सुम खान ने अपने निर्णय में शामिल किया। यह कविता पीड़िता की नजर से उसकी पीड़ा को व्यक्त करती है। यकीनन ये कविता पढ़ कर किसी के भी रोंगटे खड़े हो जाएंगे।
तबस्सुम खान ने अपने निर्णय में पीड़िता के संबंध में यह पंक्तियां लिखा :
'वो छोटी सी बच्ची थी, ढंग से बोल ना पाती थी. देख के जिसकी मासूमियत, उदासी मुस्कान बन जाती थी. जिसने जीवन के केवल, पांच बसंत ही देखे थे, उसपे ये अन्याय हुआ, ये कैसे विधि के लेखे थे. एक छः साल की बच्ची पे, ये कैसा अत्याचार हुआ. एक बच्ची को बचा सके ना, कैसा मुल्क लाचार हुआ. उस बच्ची पे जुल्म हुआ, वो कितनी रोई होगी, मेरा कलेजा फट जाता है, तो मां कैसे सोयी होगी. जिस मासूम को देखके मन में, प्यार उमड़ के आता है. देख उसी को मन में कुछ के, हैवान उत्तर क्यों आता है. कपड़ों के कारण होते रेप, जो कहे उन्हें बतलाऊ मैं. आखिर छः साल की बच्ची को, साड़ी कैसे पहनाऊं मैं. अगर अब भी हम ना सुधरे तो, एक दिन ऐसा आएगा. इस देश को बेटी देने में, भगवान भी जब घबराएगा.'
एक और कविता की पंक्तियां जो फैसले का हिस्सा बनीं…
2 से 3 जनवरी 2025 की थी वो दरमियानी रात,
जब कोई नहीं था मेरे साथ.
इठलाती, नाचती 6 साल की परी थी,
मैं अपने मम्मी-पापा की लाड़ली थी.
सुला दिया था उस रात बड़े प्यार से मां ने मुझे घर पर,
पता नहीं था नींद में मुझे ले जाएगा.
"वो" मौत का साया बनकर.
जब नींद से जागी, तो बहुत अकेली और डरी थी मैं,
सिसकियों ले लेकर मम्मी-पापा को याद बहुत करी थी मैं.
न जाने क्या-क्या किया मेरे साथ,
मैं चीखती थी, चिल्लाती थी, लेकिन किसी ने न सुनी मेरी आवाज.
थी गुडियों से खेलने की उम्र मेरी, पर उसने मुझे खिलोनी बना दिया.
"वो" भी तो था तीन बच्चों का पिता,
फिर मुझे क्यों किया अपनो से जुदा.
खेल खेलकर मुझे तोड़ दिया, फिर मेरा मुंह दबाकर, मरता हुआ झाडियों में छोड़ दिया.
हां मैं हू निर्भया, हां फिर एक निर्भया, एक छोटा सा प्रश्न उठा रही हूं-
जो नारी का अपमान करे, क्या वो मर्द हो सकता हैं ? क्या जो इंसाफ निर्भया को मिला, वह मुझे मिल सकता है.
पुलिस और समाज की भूमिका
थाना प्रभारी अनूप उईके ने बताया कि घटना के बाद स्थानीय लोगों में भारी आक्रोश था। उन्होंने तत्काल कार्रवाई कर आरोपी को गिरफ्तार किया और न्याय की प्रक्रिया को तेजी से आगे बढ़ाया। इस फैसले ने सिर्फ एक मासूम को न्याय नहीं दिया, बल्कि पूरे समाज को झकझोर दिया है। जब न्याय की गवाही कविता बन जाए, तो वह संवेदना के सबसे करीब पहुंचता है और यही इस फैसले की ताकत है। यह सिर्फ न्याय नहीं, एक चेतावनी भी है। जिसमें बताया गया कि दरिंदगी के लिए अब कोई कोना नहीं बचेगा।
Published By : Nidhi Mudgill
पब्लिश्ड 12 April 2025 at 12:21 IST