अपडेटेड 7 March 2025 at 21:28 IST
कर्नाटक हाई कोर्ट ने एमयूडीए मामले में सिद्धरमैया की पत्नी और मंत्री को जारी समन को रद्द किया
मंत्री सुरेश के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता सी.वी. नागेश ने कहा कि उनके मुवक्किल इस मामले में आरोपी नहीं हैं, इसलिए उन्हें तलब नहीं किया जाना चाहिए था।
कर्नाटक उच्च न्यायालय ने मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (एमयूडीए) भूमि आवंटन मामले में मुख्यमंत्री सिद्धरमैया की पत्नी पार्वती बी. एम को जारी प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के समन को शुक्रवार को रद्द कर दिया। अदालत ने शहरी विकास मंत्री बी.एस. सुरेश को जारी समन भी रद्द कर दिया, जिनका नाम आरोपी के रूप में नहीं था, लेकिन उन्हें ईडी ने पूछताछ के लिए बुलाया था। न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना ने ईडी की कार्रवाई को चुनौती देने वाली पार्वती और सुरेश की याचिकाओं पर फैसला सुनाया।
इससे पहले अदालत ने 27 जनवरी को समन पर रोक लगा दी थी। पार्वती के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता संदेश चौटा ने दलील दी कि मामले की जांच लोकायुक्त पुलिस और विशेष जांच दल (एसआईटी) द्वारा पहले से ही की जा रही है, इसके बावजूद ईडी समानांतर जांच कर रही है। इस बीच, ईडी का प्रतिनिधित्व कर रहे भारत के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) अरविंद कामथ ने दलील दी कि पार्वती इस अपराध में दूसरी आरोपी थीं और उन्होंने अपराध से धन अर्जित किया था।
मंत्री सुरेश के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता सी.वी. नागेश ने कहा कि उनके मुवक्किल इस मामले में आरोपी नहीं हैं, इसलिए उन्हें तलब नहीं किया जाना चाहिए था। एएसजी कामथ ने हालांकि इसका विरोध करते हुए कहा कि धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) ईडी को दस्तावेज और रिकॉर्ड प्राप्त करने के लिए व्यक्तियों को बुलाने का अधिकार देता है, भले ही उनका नाम आरोपी के रूप में न हो। सिद्धरमैया भी एमयूडीए द्वारा उनकी पत्नी पार्वती को 14 स्थलों के आवंटन में अनियमितता के आरोपों का सामना कर रहे हैं।
सिद्धरमैया, उनकी पत्नी, रिश्तेदार बी एम मल्लिकार्जुन स्वामी, देवराजू - जिनसे स्वामी ने जमीन खरीद कर पार्वती को उपहार में दी थी और अन्य का नाम मैसूर स्थित लोकायुक्त पुलिस प्रतिष्ठान द्वारा 27 सितंबर, 2024 को दर्ज की गई प्राथमिकी में है। ईडी ने 30 सितंबर को लोकायुक्त की प्राथमिकी का संज्ञान लेते हुए मुख्यमंत्री और अन्य के खिलाफ मामला दर्ज करने के लिए प्रवर्तन मामला सूचना रिपोर्ट (ईसीआईआर) दायर की थी।
लोकायुक्त पुलिस ने हालांकि पिछले महीने सिद्धरमैया, पार्वती और दो अन्य आरोपियों को इस मामले में क्लीन चिट दे दी थी और कहा था कि सबूतों के अभाव में पहले चार आरोपियों के खिलाफ आरोप साबित नहीं हुए हैं। ईडी ने धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 के तहत जांच के बाद 17 जनवरी को जारी अपने कुर्की आदेश में आरोप लगाया था कि सिद्धरमैया और अन्य आरोपी एमयूडीए भूमि आवंटन मामले में धन शोधन के प्रयास में शामिल थे।
एमयूडीए मामले में आरोप है कि दूरदराज के एक गांव में एमयूडीए द्वारा जमीन अधिग्रहण के बदले में पार्वती को मैसुरु के महंगे इलाके में अपेक्षाकृत अधिक मूल्य के भूखंड आवंटित किए गए थे। एमयूडीए ने पार्वती को उनकी 3.16 एकड़ भूमि के बदले 50:50 अनुपात योजना के तहत भूखंड आवंटित किए थे। इस विवादास्पद योजना के तहत, एमयूडीए ने अधिगृहीत अविकसित भूमि के बदले में भूमालिकों को 50 प्रतिशत विकसित भूमि आवंटित की थी। आरोप है कि मैसुरु तालुक में कसाबा होबली के कसारे गांव में इस 3.16 एकड़ भूमि पर पार्वती का कोई कानूनी अधिकार नहीं था।
Published By : Ravindra Singh
पब्लिश्ड 7 March 2025 at 21:28 IST