अपडेटेड 24 November 2024 at 16:51 IST

'जाति भेद मिटाने और हिंदू एकता की पहल...' स्वामी दिपांकर की भिक्षा यात्रा का ये है उद्देश्य

भारत में जाति भेद और सामाजिक बिखराव को समाप्त करने के लिए चल रही एक ऐतिहासिक यात्रा ने दो साल पूरे कर लिए। यह यात्रा सहारनपुर के देवबंद से शुरू हुई।

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स्वामी दिपांकर की भिक्षा यात्रा | Image: republic bharat

Swami Dipankar Alms Journey: भारत में जाति भेद और सामाजिक बिखराव को समाप्त करने के लिए चल रही एक ऐतिहासिक यात्रा ने दो साल पूरे कर लिए। सहारनपुर के देवबंद से शुरू हुई स्वामी दिपांकर की भिक्षा यात्रा ने छह राज्यों उत्तर प्रदेश, दिल्ली, उत्तराखंड, बिहार, तेलंगाना और हिमाचल प्रदेश में 16,000 किलोमीटर की दूरी तय की। इस यात्रा ने 80 लाख से अधिक लोगों को जातीय भेदभाव से ऊपर उठकर हिंदू एकता का संकल्प दिलाया।

स्वामी दिपांकर का उद्देश्य साधारण नहीं, बल्कि एक गहरा सामाजिक संदेश है। वह कहते हैं, “मुझे ना आटा चाहिए, ना चीनी, ना चावल, ना पैसा। मेरी भिक्षा जातियों में बंटे हिंदू समाज को एक करने की है।”

स्वामी दिपांकर की यात्रा की प्रेरणा और उद्देश्य क्या है?

आध्यात्मिक प्रेरणा
यह यात्रा आदि शंकराचार्य के उन प्रयासों से प्रेरित है, जिन्होंने भारत की सांस्कृतिक एकता को बचाने के लिए जनजागरण किया था। स्वामी दिपांकर का उद्देश्य भी हिंदू समाज को जातिवाद और भेदभाव से मुक्त करना है।

सामाजिक सुधार
यात्रा का मुख्य लक्ष्य जाति प्रथा, छुआछूत और सांप्रदायिक बिखराव को समाप्त कर समरसता और एकता का वातावरण बनाना है।

भिक्षा यात्रा की चुनौतियां और उपलब्धियां

मौसम की कठिनाई
इस यात्रा में -2°C की कड़ाके की ठंड, 46°C की भीषण गर्मी, तेज बारिश और तूफान जैसी कठिनाइयों का सामना किया गया।

सादगी और तपस्या
स्वामी दिपांकर केवल भगवा वस्त्र और खड़ाऊ पहनते हैं। बिना किसी आर्थिक मदद के उन्होंने यात्रा जारी रखी।

लोगों से जुड़ाव
यात्रा के दौरान 80 लाख से अधिक लोगों ने जातीय भेदभाव को छोड़ने और हिंदू एकता को अपनाने का संकल्प लिया। हर गांव और कस्बे में उनके संदेश ने सामाजिक सुधार का अलख जगाया।

स्वामी दिपांकर की यात्रा के प्रमुख बिंदु

  • सहारनपुर के देवबंद से शुरू होकर यह यात्रा उत्तर प्रदेश, दिल्ली, उत्तराखंड, तेलंगाना, बिहार और हिमाचल प्रदेश तक फैली।
  • कुल 16,000 किलोमीटर की यात्रा ने दो साल (730 दिन) में समाज के हर वर्ग को जागरूक किया। यह भारतीय संत परंपरा में सबसे लंबी और प्रभावशाली भिक्षा यात्रा बन चुकी है।
  • “जात-पात की खाई मिटाकर एक मजबूत और समरस हिंदू समाज का निर्माण करना है। न कोई दूरी, न कोई भेदभाव, हर हिंदू भाई-भाई।”
  • स्वामी दिपांकर की भिक्षा यात्रा जातीय और धार्मिक बंधनों को तोड़ने की दिशा में एक ऐतिहासिक प्रयास है। उनकी अपील आधुनिक भारत के लिए अत्यधिक प्रासंगिक है, जहां सामाजिक बिखराव और राजनीति ने कई खाईयां बना दी हैं।
  • यह यात्रा भारत के सनातन मूल्यों को पुनर्जीवित करने और सामाजिक समरसता का संदेश फैलाने का एक प्रेरणादायक उदाहरण है।

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Published By : Sadhna Mishra

पब्लिश्ड 24 November 2024 at 16:51 IST