अपडेटेड 1 May 2025 at 11:28 IST
पिता ने कस्टडी में हर दिन होटल से खिलाया, 8 साल की बच्ची को नहीं मिला घर का खाना, मामला पहुंचा सुप्रीम कोर्ट; फिर...
सुप्रीम कोर्ट ने मामले में पाया कि जब बच्ची अपने पिता की कस्टडी में थी, तब एक दिन भी उसे घर का खाना नहीं मिला। पिता अक्सर उसे होटल का ही खाना खिलाता था।
Supreme Court Decision: 8 साल की एक बच्ची के माता-पिता अलग हो गए थे। तलाक के बाद 15-15 दिनों के लिए उसके माता-पिता को कस्टडी मिली। जब बच्ची कस्टडी के दौरान अपने पिता के साथ रहती तो उसे न तो घर का खाना मिलता था और न ही पारिवारिक माहौल। इसके चलते सुप्रीम कोर्ट ने पिता से बच्ची की कस्टडी छिन ली।
दरअसल, केरल हाईकोर्ट ने कपल के अलग होने के बाद 8 साल की बच्ची की कस्टडी 15-15 दिनों के उसके माता-पिता को दी थी। वहीं, जब ये मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो HC का फैसला पलट गया। सुप्रीम कोर्ट ने कई कारण गिनाते हुए बच्ची की कस्टडी मां को दे दी।
बेटी के साथ रहने के लिए सिंगापुर से आता था पिता
बच्ची का पिता सिंगापुर में नौकरी करता था। वह बेटी के साथ 15 दिन रहने के लिए वहां से आता-जाता था। उसने तिरुवनंतपुरम में एक घर भी किराए पर लिया था। सुप्रीम कोर्ट ने मामले में पाया कि जब बच्ची अपने पिता की कस्टडी में थी, तब एक दिन भी उसे घर का खाना नहीं मिला। पिता अक्सर उसे होटल का ही खाना खिलाता था, जबकि वो घर के खाने के लिए तरस जाती थी।
सुप्रीम कोर्ट ने क्यों रद्द किया HC का फैसला?
जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संजय करोल और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने बच्ची से बातचीत की और इसके बाद हाईकोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया। बेंच ने पाया कि पिता की कस्टडी में बच्ची को घर का बना तो मिला ही नहीं। साथ ही वो अपने छोटे भाई से भी अलग थी। इस दौरान घर में उसके साथ पिता के अलावा कोई और नहीं था। भले ही पिता उसे प्यार करते हों लेकिन घर का जो माहौल और परिस्थितियां थीं, वो बच्ची के अनुकूल नहीं पाई गई।
रिपोर्ट्स के मुताबिक सुनवाई के दौरान जस्टिस मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि हर दिन होटल या रेस्टोरेंट का खाना खाने से बड़े लोग भी बीमार हो जाते हैं, तो वो तो 8 साल की बच्ची है। इससे उसके खतरनाक साबित हो सकता है। बच्ची के स्वास्थ्य, विकास और ग्रोथ के लिए पौष्टिक घर का बना खाना चाहिए, जो दुर्भाग्यवश पिता ने उपलब्ध नहीं कराया।
इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पिता को ये निर्देश देने पर तो विचार किया जा सकता है कि वो घर का बना खाना मुहैया कराए। लेकिन बच्ची को कस्टडी के दौरान पिता के अलावा किसी और का साथ नहीं मिलता है। ये भी एक पहलू है। कोर्ट ने यह भी कहा कि बच्ची की मां वर्क फ्रॉम होम करती हैं। उनके माता-पिता (बच्ची के नाना-नानी) साथ रहते हैं और बच्ची को छोटे भाई का भी साथ मिलेगा। ऐसे में उसे भावनात्मक और नैतिक सहारा वहां कहीं अधिक मिलता है।
कोर्ट की ओर से इस दौरान 3 साल के बेटे की कस्टडी 15 दिन के लिए पिता को देने के फैसले पर भी नाराजगी जताई। बेंच ने इसे पूरी तरह से अनुचित बताया और कहा कि इतनी कम उम्र में मां से दूर रहने से बच्चे के भावनात्मक और शारीरिक स्वास्थ्य पर गंभीर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
SC ने दिया ये आदेश
इस दौरान कोर्ट ने अपने फैसले में हर महीने के वैकल्पिक शनिवार और रविवार को बेटी की अंतरिम कस्टडी पिता को दी। साथ ही हफ्ते में 2 दिन वीडियो कॉल से बच्चों से बात करने की भी इजाजत दी। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि इन दो दिनों में से किसी एक दिन पिता बच्ची से चार घंटे के लिए मिल सकता है और उसे अंतरिम कस्टडी लेने का अधिकार होगा। यह मुलाकात किसी बाल काउंसलर की निगरानी में होनी चाहिए।
Published By : Ruchi Mehra
पब्लिश्ड 1 May 2025 at 11:28 IST