अपडेटेड 25 November 2025 at 18:02 IST

11 साल के बच्चे को थी दुर्लभ बीमारी, मां ने दी किडनी, फिर सफदरजंग के डॉक्टरों ने कर दिया चमत्कार; पहली बार ऐसे मरीज को मिली नई जिंदगी

VMMC और सफदरजंग अस्पताल ने डायलिसिस पर चल रहे 11 साल के बच्चे का पहला और सफल किडनी ट्रांसप्लांट किया गया है। यह न केवल सफदरजंग अस्पताल के लिए पहली बार है, बल्कि किसी भी केंद्रीय सरकारी अस्पताल में किसी बच्चे का पहली बार किडनी ट्रांसप्लांट किया गया है।

Follow :  
×

Share


किडनी ट्रांसप्लांट करने वाली डॉक्टरों की टीम | Image: X/SJHDELHI

Kidney Transplant Milestone : स्वास्थ्य क्षेत्र में एक नई ऐतिहासिक उपलब्धि दर्ज हो गई है। दिल्ली के वर्धमान महावीर मेडिकल कॉलेज (VMMC) और सफदरजंग अस्पताल ने अपनी किडनी ट्रांसप्लांट सुविधा में बड़ा मील का पत्थर हासिल किया है। यहां 11 साल के बच्चे का पहली बार सफलतापूर्वक किडनी ट्रांसप्लांट किया गया। यह न केवल इस अस्पताल का पहला ऐसा ऑपरेशन है, बल्कि पूरे देश के किसी भी केंद्र सरकार के अस्पताल में अब तक का पहला किडनी ट्रांसप्लांट भी है।

गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाले इस बच्चे को मां की दान की गई किडनी ने नई जिंदगी का तोहफा दिया है, जो सरकारी सुविधाओं की मिसाल बन गया है। उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले के रहने वाले इस बच्चे को लगभग डेढ़ साल पहले दोनों गुर्दों में हाइपोडिस्प्लास्टिक बीमारी का पता चला था। यह एक दुर्लभ स्थिति है, जिसमें गुर्दे ठीक से विकसित नहीं होते।

मजदूरी करते हैं पिता

शुरुआती इलाज के दौरान बच्चे को कार्डियक अरेस्ट का सामना करना पड़ा, जिसके बाद उसकी स्थिति गंभीर हो गई। तब से वह नियमित डायलिसिस पर निर्भर था। बच्चे के पिता मजदूरी करके परिवार चलते हैं, परिवार आर्थिक तंगी से जूझ रहा था। निजी अस्पतालों में इस इलाज की लागत करीब 15 लाख रुपये तक पहुंच जाती, लेकिन सफदरजंग अस्पताल ने इसे मुफ्त में संभव बनाया।

डॉक्टरों की टीम का कमाल

ट्रांसप्लांट के लिए दानकर्ता बच्चे की 35 साल की मां बनीं। उन्होंने बिना किसी हिचकिचाहट के अपनी एक किडनी अपने बेटे को दान कर दी। मां-बेटे दोनों की सर्जरी 19 नवंबर, 2025 को की गई। बच्चे के छोटे शरीर में वयस्क किडनी को फिट करना और उसे बड़े रक्त वाहिकाओं से जोड़ना एक जटिल प्रक्रिया थी, लेकिन डॉक्टरों की टीम ने इसे बखूबी अंजाम दिया।

यह सफलता एक समर्पित डॉक्टरों की टीम की मेहनत का नतीजा है। सर्जिकल ट्रांसप्लांट टीम का नेतृत्व यूरोलॉजी और रीनल ट्रांसप्लांट विभाग के प्रमुख डॉ. पवन वासुदेव ने किया, जिसमें प्रोफेसर डॉ. नीरज कुमार भी शामिल थे। बाल रोग विशेषज्ञों की टीम का संचालन डॉ. शोभा शर्मा ने किया, जिसमें डॉ. श्रीनिवास वर्धन और HOD  डॉ. प्रदीप के. डेबाटा प्रमुख भूमिका में थे। एनेस्थीसिया टीम का नेतृत्व डॉ. सुशील ने किया, जिसमें डॉ. ममता और डॉ. सोनाली ने सहयोग दिया।

अस्पताल के निदेशक डॉ. संदीप बंसल, मेडिकल सुपरिंटेंडेंट डॉ. चारू और प्रिंसिपल डॉ. गीतिका के मार्गदर्शन में यह ऑपरेशन पूरा हुआ। ऑपरेशन थिएटर में मौजूद डॉक्टरों की एकजुट तस्वीरें इस टीमवर्क की गवाही देती हैं। इस ऐतिहासिक उपलब्धि के बाद डॉक्टरों के चेहरे पर आई मुस्कारन सफलता के जश्न की गवाही दे रही थी।

जल्द मिल सकती है अस्पताल से छुट्टी

ट्रांसप्लांट के बाद दान की गई किडनी पूरी तरह से काम कर रही है। बच्चे के गुर्दे के कार्य सामान्य हो चुके हैं और अब डायलिसिस की भी जरूरत नहीं है। उसकी रिकवरी बिना किसी मुश्किल से हो रही है और जल्द ही उसे अस्पताल से छुट्टी मिलने की उम्मीद है। अस्पताल ने बच्चे को महंगे इम्यूनोसप्रेसेंट दवाओं की आपूर्ति भी मुफ्त में सुनिश्चित की है, जो ट्रांसप्लांट के बाद संक्रमण से बचाव के लिए जरूरी हैं।

यह ट्रांसप्लांट गरीबी और बीमारी के बीच जूझते परिवारों के लिए आशा की किरण है। मां का त्याग और डॉक्टरों का कौशल मिलकर एक ऐसे मॉडल का निर्माण कर रहा है, जहां बेहतर इलाज सभी के लिए सुलभ हो। भविष्य में सफदरजंग अस्पताल जैसे संस्थान और अधिक ऐसे मामलों में मददगार साबित होंगे, ताकि हर बच्चा स्वस्थ और खुशहाल जीवन जी सके।

ये भी पढ़ें: 'जब तक मेरे बेटे का ब्राह्मण की बेटी से संबंध नहीं बने तबतक आरक्षण...', IAS संतोष वर्मा के बयान पर मचा बवाल, तो मारी पलटी, पूरा मामला

Published By : Sagar Singh

पब्लिश्ड 25 November 2025 at 18:02 IST