अपडेटेड 17 April 2024 at 23:32 IST

पॉक्सो मामले में युवक बरी, अदालत ने कहा- बाल शोषण का कलंक जेल से भी ज्यादा दर्दनाक

अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि गलत सजा किसी मामले में गलत तरीके से बरी किये जाने से भी बदतर है।

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पॉक्सो केस में युवक बरी | Image: Unsplash

Delhi High Court: दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक नाबालिग लड़की के यौन उत्पीड़न के आरोपी व्यक्ति की दोषसिद्धि और पांच साल की सजा रद्द करते हुए कहा है कि ‘‘बाल यौन शोषण के झूठे आरोपों का सामाजिक कलंक झेलना जेल की सजा’’ से भी अधिक दर्दनाक होता है।

न्यायमूर्ति अनूप कुमार मेंदीरत्ता ने जनवरी 2023 के निचली अदालत के फैसले के खिलाफ दोषी की अपील पर सुनवाई करते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष की ओर से पेश दलीलों और रिकॉर्ड में महत्वपूर्ण खामियां हैं तथा पीड़िता की गवाही में विश्वसनीयता का अभाव है।

अदालत ने सोमवार को पारित आदेश में कहा, ‘‘यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम की धारा 29 और 30 के तहत निचली अदालत की ओर से अपराध का अनुमान लगाया जाना अपीलकर्ता को दोषी ठहराने का आधार नहीं हो सकता, क्योंकि पीड़िता की गवाही भरोसे के लायक नहीं है, साथ ही अभियोजन के मामले में गंभीर खामियां हैं।’’

अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि गलत सजा किसी मामले में गलत तरीके से बरी किये जाने से भी बदतर है।

अदालत के आदेश में कहा गया है, ‘‘जैसे गलत तरीके से बरी किया जाना लोगों के भरोसे को हिलाकर रख देता है, वैसे ही एक गलत दोषसिद्धि बहुत अधिक खराब होती है। एक बच्चे के साथ कथित यौन दुर्व्यवहार के झूठे आरोपों का सामना करने वाले आरोपी को जिस सामाजिक कलंक का दाग झेलना पड़ता है, वह मुकदमे और कारावास की कठोरता से कहीं अधिक दर्दनाक होता है।’’

यह मामला 2016 का है, जब पीड़िता (12) ने आरोप लगाया था कि चाची के भाई (चचेरे मामा) ने उसके घर में उसका यौन शोषण किया था।

उच्च न्यायालय ने पाया कि मामले में प्राथमिकी दर्ज करने में देरी हुई थी, जो पीड़िता के ‘चाचा’ और ‘चाची’ (अपीलकर्ता की बहन) के बीच वैवाहिक विवाद के कारण महत्वपूर्ण हो गयी।

आदेश में कहा गया है, ‘‘पांच दिनों की अवधि के लिए घटना पर पूरी तरह से चुप्पी अभियोजन पक्ष के मामले पर संदेह की गहरी छाया पैदा करती है। यह भी देखा जा सकता है कि पीड़िता अपने विवेक से अपीलकर्ता द्वारा किए गए कृत्यों के बारे में बार-बार अपना बयान बदल रही है।’’

अदालत ने कहा है, ‘‘इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि मामला दुश्मनी और वैवाहिक विवादों के कारण सिखा-पढ़ाकर आरोप लगाने या मनगढ़ंत कहानी पर आधारित है। यह भी देखा जा सकता है कि पीड़िता ने बिना किसी ठोस कारण के आंतरिक चिकित्सा जांच से भी इनकार कर दिया था।’’

इसलिए, अदालत ने राय दी कि अभियोजन पक्ष आरोपी के खिलाफ आरोप साबित करने में विफल रहा है। इसके साथ ही अदालत ने आरोपी को बरी करते हुए उसकी रिहाई के आदेश दिये हैं।

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Published By : Sadhna Mishra

पब्लिश्ड 17 April 2024 at 23:32 IST