अपडेटेड 27 June 2024 at 13:17 IST
18वीं लोकसभा के पहले दिन से इमरजेंसी को लेकर फ्रंटफुट पर क्यों खेल रही मोदी सरकार, ये है पूरा प्लान
स्पीकर ने सदन में इमरजेंसी की बरसी पर अपनी राय रखी। उस दौर को लोकतंत्र का काला अध्याय बताया। आपातकाल की याद दिला आखिर मोदी सरकार किसे आईना दिखाना चाहती है?
BJP Raises Emergency Issues: "संविधान को बदलने" के कथित प्रयासों को लेकर विपक्ष लगातार मुखर रहा। लोकसभा चुनाव के दौरान मुद्दे को जोर शोर से उठाया गया। संविधान की किताब हाथ में ले खूब शोर मचा और इस सबके बीच ही आपातकाल का जिक्र कर भाजपा ने कांग्रेस को वो दाग दिखाए जिसे वो छुपाने की कोशिश में लगी थी।
24 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आपातकाल का जिक्र छेड़ लोकसभा के 18वें सत्र का आगाज किया। पिच तैयार कर दी। संकेत दे दिया कि संविधान को बदल देने के नैरेटिव का मुकाबला बीजेपी फ्रंटफुट पर आकर करने को तैयार है। मोदी के बाद स्पीकर ने पदभार संभालते ही अपने भाषण में इमरजेंसी के दौरान हुई ज्यादतियों का जिक्र किया तो अगले दिन राष्ट्रपति ने अपने अभिभाषण में आपातकाल को संविधान पर सीधा हमला बताया।
‘संविधान में बदलाव’ बनाम ‘आपातकाल’
पीएम की स्पीच के अगले दिन यानि 25 जून को आपातकाल की बरसी थी फिर इसके अगले दिन लोकसभा स्पीकर का चुनाव। यानि लगातार इस मसले को अलग अलग मंच से बीजेपी उठाती रहेगी- संदेश ऐसा ही कुछ दिया जा रहा है। 25 जून को ही भाजपा ने पूरे देश में कार्यक्रम आयोजित किए और कांग्रेस नेताओं ने कांग्रेस पर जमकर निशाना साधा। लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस बार बार लोगों से बोलती रही कि एनडीए सरकार आई तो उनके अधिकारों को छीन लिया जाएगा और बाबा अंबेडकर के बनाए संविधान पर सीधा हमला होगा।

दरअसल, भाजपा के ही कुछ नेताओं के बयान को आधार बना कर कांग्रेस हमलावर हुई। इसमें नागौर की ज्योति मिर्धा, फैजाबाद के लल्लू सिंह, कर्नाटक के अनंत हेगड़े का नाम शामिल है। जिन्होंने देश हित में संवैधानिक बदलाव की बात कही थी।
बीजेपी ने उम्मीद के मुताबिक रिजल्ट न हासिल करने के बाद समीक्षा की। कहा गया कि संविधान को बदलने वाले नैरेटिव ने नुकसान पहुंचाया। ऐसे में आपातकाल के जरिए क्या बीजेपी ने सच से सामना करा दिया है?
आपातकाल इतना बड़ा मुद्दा क्यों?
बीजेपी देश को बताना चाहती है कि जो संविधान को बचाने का दम भरते हैं दरअसल उन्होंने लोकतंत्र की धज्जियां 50 साल पहले उड़ा दी थीं। राष्ट्रपति जब कहती हैं कि आपातकाल संविधान पर सीधा हमला था तो स्पष्ट हो जाता है कि भाजपा आक्रामक तरीके से इस सब्जेक्ट को डील करना चाहती है। वहीं, बीजेपी के पक्ष में एक और बात जाती है।
वो ये कि बात आपातकाल विरोधी आंदोलन में सबसे आगे रहने वाले कई नेता अब इंडी ब्लॉक का हिस्सा हैं यानि अपनी आइडियोलॉजी से भटक गए हैं और बीजेपी अब तक लोकतंत्र संग हुए खिलवाड़ को लेकर गंभीर है। इसका मतलब यह भी है कि भाजपा खुद को एकमात्र ऐसी पार्टी मानती है जो इंदिरा गांधी के खिलाफ 1974-75 के जेपी आंदोलन से लेकर संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत आपातकाल लागू करने तक लगातार कांग्रेस के विरोध में आवाज बुलंद करती रही है।
आपातकाल का मुद्दा भाजपा को सूट करता है क्यों?
रणनीतिक और राजनीतिक तौर पर बीजेपी के लिए मुद्दा परफेक्ट है। कांग्रेस बार-बार आरएसएस के बहाने बीजेपी पर हिंदुत्व के मुद्दे उठाने का आरोप लगाती रही है। उसका अकसर कहना होता है कि बीजेपी कभी भी सामूहिक रूप से नागरिकों से जुड़े मुद्दों को नहीं उठाती। बार-बार संघ परिवार पर आजादी के दौरान अहम भूमिका न निभाने का आरोप मढ़ती आई है। ऐसे में आपातकाल का मुद्दा विपक्ष के हिंदुत्व वाले नैरेटिव की धार को कुंद करता है।
आपातकाल एक जवाब के रूप में आता है क्योंकि आरएसएस और उसके सहयोगी, चाहे वह जनसंघ हो या एबीवीपी, सभी ने उस दौर में लाठियां खाईं और जेल भेजे गए। जिनमें लालकृष्ण आडवाणी, अटल बिहारी वाजपेयी और अरुण जेटली शामिल हैं। जनसंघ के नानाजी देशमुख जेपी आंदोलन के दौरान नागरिक स्वतंत्रता के लिए सबसे साहसी सेनानियों में से एक थे, और उन्होंने 1974 के अंत में पटना में एक विरोध प्रदर्शन के दौरान जयप्रकाश नारायण को बचाने के लिए लाठियां तक खाई थीं।
संकेत और संदेश साफ है कि संविधान को बदलने के नैरेटिव को और फैलने नहीं दिया जाएगा। आरोपों का जवाब आपातकाल के मसले को उठा कर दिया जाएगा। असर संसद से लेकर सड़क तक दिखने भी लगा है।
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Published By : Kiran Rai
पब्लिश्ड 27 June 2024 at 13:17 IST