अपडेटेड 28 August 2024 at 12:31 IST
उस्ताद विलायत खान: जिन्होंने दो बार ठुकराया पद्म विभूषण, "आफताब-ए-सितार" के नाम से जानती है दुनिया
शास्त्रीय संगीत की बात हो और उस्ताद विलायत खान का जिक्र न हो, ऐसा भला हो सकता है क्या? संगीत की समझ या फिर सितार पर पकड़, उनकी इस कला का हर कोई कायल था।
शास्त्रीय संगीत की बात हो और उस्ताद विलायत खान का जिक्र न हो, ऐसा भला हो सकता है क्या? संगीत की समझ या फिर सितार पर पकड़, उनकी इस कला का हर कोई कायल था। जितना वह अपने संगीत कौशल के लिए जाने जाते थे। उतना ही अपने स्वभाव के लिए मशहूर थे। शायद ही ऐसा कोई भारतीय शास्त्रीय संगीत प्रेमी होगा, जो सितार के महानायक उस्ताद विलायत खान के बारे में नहीं जानता होगा।
उस्ताद विलायत खान। इस नाम की बादशाहत शास्त्रीय संगीत की दुनिया में आज भी है। 28 अगस्त 1928 को ब्रिटिश भारत (बांग्लादेश) में जन्में उस्ताद विलायत खान को शास्त्रीय संगीत विरासत में मिला। उनके परिवार की कई पीढ़ियां सितार वादन से जुड़ी हुई थीं। उनके पिता इनायत खान और दादा इमदाद खान जाने माने सितार वादक थे। परिवार की यह परंपरा उनसे पहले पांच पीढ़ियों तक चली और उनके बेटों शुजात खान और हिदायत खान के साथ-साथ उनके भाई और भतीजों के साथ भी जारी भी रही।
लेखिका नमिता देवीदयाल की किताब ‘द सिक्स्थ स्ट्रिंग ऑफ विलायत खान' उनसे जुड़े अनसुने पहलुओं को बयां करती है। इस किताब में उनके शुरुआती दिनों से लेकर शास्त्रीय संगीत के रॉक स्टार बनने तक के सफर को बताया गया है।
उस्ताद विलायत खान पिछले 60 वर्षों में भारतीय शास्त्रीय संगीत की सबसे महान हस्तियों में से एक थे। अपने सितार वादन में गायन शैली को अपनाने ने उन्हें काफी शोहरत दिलाई। उनकी कला के कायल पूर्व राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद भी थे। उन्होंने ही विलायत खान को "आफताब-ए-सितार" का सम्मान दिया था। वह ये सम्मान पाने वाले एकमात्र सितार वादक थे। इसके अलावा उन्हें 'भारत सितार सम्राट' की उपाधि भी मिली।
वह शास्त्रीय संगीत की कला में निपुणता के अलावा अपनी बेबाकी के लिए भी जाने जाते थे। उस्ताद विलायत खान ने 1964 में पद्मश्री और 1968 में पद्म विभूषण सम्मान ठुकरा दिया था। उन्होंने कहा था कि भारत सरकार ने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में उनके योगदान को सही सम्मान नहीं दिया। जनवरी 2000 में उन्हें फिर से देश के दूसरे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था। लेकिन, इस बार भी उन्होंने इसे लेने से इनकार कर दिया था। उन्होंने कहा था कि वह कोई भी ऐसा पुरस्कार स्वीकार नहीं करेंगे जो अन्य सितार वादकों को उनसे पहले मिला है।
विलायत खान के बारे में बताया जाता है कि वह भारत के पहले ऐसे संगीतकार थे, जिन्होंने भारत की आजादी के बाद 1951 में इंग्लैंड जाकर संगीत से जुड़ा एक कार्यक्रम किया था। विलायत खान एक साल में आठ महीने विदेश में बिताया करते थे और न्यू जर्सी उनका दूसरा घर बन चुका था।
सितार वादक उस्ताद विलायत खान का अधिकतर जीवन कोलकाता में बीता। उन्होंने 13 मार्च 2004 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया। उन्हें फेफड़े का कैंसर था। उस्ताद विलायत खान को उनके पिता के बगल में ही दफनाया गया।
(IANS)
Published By : Sakshi Bansal
पब्लिश्ड 28 August 2024 at 12:31 IST