अपडेटेड 15 November 2025 at 12:55 IST

EXPLAINER/ Bihar: 'कट्टे पर CM फेस', जबरन मुकेश सहनी को डिप्टी CM, कांग्रेस-RJD में तालमेल की कमी... वो कारण जिससे महागठबंधन को मिली करारी हार

बिहार विधानसभा चुनाव के परिणाम आए नहीं कि चौक-चौराहों पर खूब चर्चा शुरू हो गई। कुछ लोग ताज्जुब में भी थे, तो कुछ मायूस भी। एनडीए 202 सीट पर जीत गया, और महागठबंधन मुश्किल से 35 तक पहुंच सका।

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Rahul-Tejashwi | Image: ANI

बिहार चुनाव को लेकर महागठबंधन की गिरावट की कहानी शुरुआत से ही उसकी आंतरिक खींचतान में छिपी थी। सहयोगी दलों के बीच भरोसे की कमी और नेतृत्व को लेकर असहमति शुरू से ही स्पष्ट थी। तेजस्वी यादव खुद को गठबंधन का चेहरा बनाना चाहते थे, जबकि कांग्रेस बैकफुट पर रहने को तैयार नहीं थी। वोटर अधिकार यात्रा के बाद राहुल गांधी बिहार की राजनीति से दूर दिखे और अंदरूनी मतभेदों पर चुप्पी साधे रहे। इसी बीच छोटे सहयोगी जैसे मुकेश सहनी और सीपीएमएल भी अपनी हिस्सेदारी को लेकर मुखर होते गए।

बिहार विधानसभा चुनाव के परिणाम आए नहीं कि चौक-चौराहों पर खूब चर्चा शुरू हो गई। कुछ लोग ताज्जुब में भी थे, तो कुछ मायूस भी। एनडीए 202 सीट पर जीत गया, और महागठबंधन मुश्किल से 35 तक पहुंच सका।

यह नतीजा न सिर्फ विपक्ष के लिए झटका है बल्कि 2010 के बाद आरजेडी-कांग्रेस गठबंधन का सबसे खराब प्रदर्शन भी साबित हुआ है। राजनीतिक गलियारों में अब यही सवाल गूंज रहा है कि आखिर वो क्या कारण थे, जिन्होंने महागठबंधन की हार सुनिश्चित कर दी?

RJD-कांग्रेस के बीच तालमेल की कमी

दिल्ली में ‘लैंड-फॉर-जॉब्स’ केस की सुनवाई के दौरान यह उम्मीद थी कि तेजस्वी यादव और राहुल गांधी मुलाकात कर हालात संभालेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। कहा जा रहा है कि तेजस्वी नाराज होकर लौट आए। सीट बंटवारे को लेकर शुरू हुआ विवाद इतना गहरा गया कि हर दल ने अलग-अलग चुनाव अभियान चला लिया। इसके कारण कार्यकर्ताओं में तालमेल बिगड़ गया और वोट ट्रांसफर पूरी तरह असफल रहा।

तेजस्वी को महागठबंधन का मुख्यमंत्री चेहरा घोषित करना भी उलटा साबित हुआ। कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि यह रणनीतिक भूल थी, क्योंकि पार्टी की एक बड़ी धारा इस फैसले के खिलाफ थी। तेजस्वी पर पुराने ‘जंगलराज’ और भ्रष्टाचार की छवि का बोझ अब भी बना हुआ था। कांग्रेस ने हालात सुधारने के लिए अशोक गहलोत को भेजा, लेकिन तब तक मंचों और पोस्टरों पर सिर्फ तेजस्वी यादव की तस्वीरें छा चुकी थीं। यह संदेश गया कि आरजेडी ने कांग्रेस पर फैसला थोप दिया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने एक संबोधन के दौरान आरोप लगाया कि RJD ने कांग्रेस की कनपटी पर कट्टा रखकर मुख्यमंत्री पद छीना है। उन्होंने यह भी कहा कि चुनाव से पहले ही दोनों पार्टियों में इतनी दुश्मनी है कि चुनाव के बाद वे एक-दूसरे का सिर फोड़ेंगे।

मुकेश सहनी भी रहे हार का कारण?

महादलित टोला में चर्चा रही कि मुकेश सहनी को डिप्टी सीएम बताने से मुसलमानों और महादलितों दोनों में नाराजगी बढ़ गई, वही वर्ग जिसे एनडीए ने पहले मनाया था। राहुल गांधी यात्रा पर निकले, पर बिहार की जनता ने कहा कि चुनाव के माहौल में कोई असर नहीं दिखा।

एक अजीब बात आई कि SIR, वोट चोरी जैसे मुद्दे शुरुआत में तो उछले, लेकिन गांव की गलियों में उसकी चर्चा ही नहीं टिक पाई। जानकारों का कहना है कि कांग्रेस वाले पूरी ताकत इसी में लगाते रहे, उस बीच एनडीए ने सीधे-सीधे योजनाओं का प्रचार किया।लखपति दीदी और कैश ट्रांसफर जैसी योजनाओं ने न्यूजपेपर के फ्रंट पेज पर जगह पाई, जिससे महिलाओं और गरीबों पर खूब असर पड़ा।

सबसे महत्वपूर्ण टकराव सीट शेयरिंग को लेकर था। पहले जहां लालू यादव और सोनिया गांधी की साझेदारी ऐसे संकटों को सुलझा देती थी, इस बार वरिष्ठ नेताओं की चुप्पी ने तनाव बढ़ा दिया। जब कांग्रेस के स्थानीय नेताओं ने सख्त रुख अपनाया, तो बातचीत पूरी तरह ठप हो गई। कई सीटों पर दोनों दलों ने एक-दूसरे के खिलाफ उम्मीदवार उतार दिए, जिससे कार्यकर्ताओं का मनोबल टूट गया और महागठबंधन की एकजुटता समाप्त हो गई।

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Published By : Kunal Verma

पब्लिश्ड 15 November 2025 at 12:55 IST