अपडेटेड 24 March 2025 at 14:59 IST
MP की मंडियों में बंपर आवक से औंधे मुंह गिरे टमाटर के भाव, किसान हुए परेशान
मध्यप्रदेश की थोक मंडियों में नयी फसल की बंपर आवक के कारण टमाटर के भाव औंधे मुंह गिर गए हैं। इससे किसानों के लिए इस सब्जी की खेती घाटे का सौदा साबित हो रही है।
मध्यप्रदेश की थोक मंडियों में नयी फसल की बंपर आवक के कारण टमाटर के भाव औंधे मुंह गिर गए हैं। इससे किसानों के लिए इस सब्जी की खेती घाटे का सौदा साबित हो रही है।
इन हालात में कृषक संगठनों ने मांग की है कि राज्य सरकार टमाटर उत्पादक किसानों के हितों की रक्षा के लिए तुरंत उचित कदम उठाए।
इंदौर की देवी अहिल्याबाई होलकर फल और सब्जी मंडी की गिनती सूबे की सबसे बड़ी थोक मंडियों में होती है। करीब 130 किलोमीटर दूर खंडवा जिले से इंदौर की इस मंडी में टमाटर बेचने आए किसान धीरज रायकवार ने सोमवार को ‘‘पीटीआई-भाषा’’ को बताया, ‘‘मंडी में टमाटर के थोक दाम गिरकर दो रुपये प्रति किलोग्राम तक आ गए हैं। इस कीमत में हम खेत से फसल को तुड़वाने का खर्च भी नहीं निकाल पा रहे हैं।’’
उन्होंने दावा किया कि नौबत यह आ गई है कि किसानों को टमाटर की बिना बिकी खेप को मंडी में फेंककर जाना पड़ रहा है।
रायकवार ने बताया, ‘‘पिछले साल टमाटर के ऊंचे दाम मिलने के कारण किसानों ने इस साल इसकी जमकर बुवाई की थी। इस बार बंपर पैदावार के कारण मंडी में टमाटर की भरपूर आवक हो रही है जिससे इसके भाव गिर गए हैं।’’
पड़ोस के धार जिले से इंदौर की मंडी में टमाटर बेचने आए किसान दिनेश मुवेल के मुताबिक उन्होंने दो लाख रुपये का कर्ज लेकर दो एकड़ में टमाटर की बुवाई की थी, लेकिन इस सब्जी के भाव गिरने से उन्हें खेती में भारी घाटा हुआ है।
पश्चिमी मध्यप्रदेश के मालवा-निमाड़ अंचल में संयुक्त किसान मोर्चा के संयोजक रामस्वरूप मंत्री ने मांग की कि मंडियों के मौजूदा रुझान के मद्देनजर राज्य सरकार को किसानों से उचित कीमत पर टमाटर खरीदना चाहिए ताकि उन्हें नुकसान से बचाया जा सके।
उन्होंने कहा, ‘‘संयुक्त किसान मोर्चा लंबे समय से मांग कर रहा है कि सरकार को टमाटर जैसी सब्जियों का भी न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करना चाहिए, लेकिन सरकार के कान पर जूं तक नहीं रेंग रही है।’’
भारतीय किसान-मजदूर सेना के अध्यक्ष बबलू जाधव ने कहा कि राज्य के दूरस्थ क्षेत्रों में टमाटर जैसी जल्द खराब हो जाने वाली फसलों के शीत भंडारण और प्रसंस्करण (प्रोसेसिंग) की सुविधाओं की कमी है, नतीजतन किसानों को औने-पौने दाम पर भी अपनी फसल बेचने पर मजबूर होना पड़ता है।
(Note: इस भाषा कॉपी में हेडलाइन के अलावा कोई बदलाव नहीं किया गया है)
Published By : Sakshi Bansal
पब्लिश्ड 24 March 2025 at 14:59 IST