अपडेटेड 9 July 2025 at 15:34 IST
आम-लीची छोड़िए, यहां होती है सांपों की खेती, पेड़ों से लटकते हैं सांप ही सांप; एक लीटर विष की कितनी होती है कीमत? जानिए सबकुछ
इन देशों में सांपों को वैज्ञानिक तरीकों से पाला जाता है, उनके विष का संग्रह सुरक्षित प्रयोगशालाओं में होता है, और फिर यह विष अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में बेचा जाता है। वहीं दूसरी ओर, भारत जैसे देशों में पारंपरिक सपेरे अब गुमनामी और गरीबी की जिंदगी जी रहे हैं, क्योंकि न तो उनके हुनर को आधुनिक विज्ञान से जोड़ा गया, न ही उन्हें इसके लिए कोई संस्थागत समर्थन मिला। यह विरोधाभास बताता है कि जहां एक ओर सांपों से अरबों कमाए जा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर सांप भारत की गलियों में अब भी सिर्फ भीख का जरिया बने हैं।
- अंतरराष्ट्रीय न्यूज
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Snake Farming: हमने अभी तक दुनिया में फसलों की खेती के बारे में सुना है। लेकिन आपने कभी सांपों की खेती के बारे में सुना है क्या? अगर नहीं सुना तो आज हम आपको बताते हैं सांपों की खेती के बारे में। सांप एक ऐसा जीव है जिसके जहर की थोड़ी सी मात्रा भी इंसान को मौत की नींद सुलाने के लिए काफी होती है। ऐसे में सांपों की खेती के बारे में अगर कोई बात करे तो हर कोई चौंक ही जाएगा। हालांकि सांपों की खेती भारत में तो नहीं होती लेकिन इसके पड़ोसी देशों चीन और वियतनाम में सांपों की खेती जमकर की जाती है। चीन और वियतनाम में कोबरा की खेती की जाती है और उसे सब्जी की तरह तराजुओं पर तौला भी जाता है। इन सांपों की खेती से ये देश हजारों लाखों में नहीं बल्कि करोड़ों की कमाई कर रहे हैं। आइए आपको बताते हैं सांपों की खेती के पीछे की वजह और इसकी सच्चाई।
भारत में आपने सड़क किनारे पिटारे में नाग बंद कर खेल दिखाने वाले सपेरे आपने जरूर देखे होंगे बीन की धुन पर फन उठाते जहरीले सांप, और सामने खड़े कुछ दर्शक, जो जेब से कभी 5 या 10 रुपये तो कभी-कभी 100-200 रुपये निकालकर दे देते हैं। इन सपेरों की जिंदगी रोज के संघर्ष और अनिश्चित कमाई से भरी होती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि दुनिया के एक हिस्से में यही सांप, जिनसे भारत में केवल कुछ सिक्के मिलते हैं, वहीं अरबों की कमाई का जरिया बन चुके हैं? जी हां, दुनिया के कुछ देशों में सांपों का इतना व्यावसायिक और संगठित इस्तेमाल हो रहा है कि वहां से 44 अरब 13 करोड़ 64 लाख रुपये से भी ज्यादा की कमाई हो रही है और यह संख्या हर साल तेजी से बढ़ रही है। इन जगहों पर सांपों का उपयोग सिर्फ खेल-तमाशे या चर्मजाल के लिए नहीं, बल्कि दवाइयों, कॉस्मेटिक्स, रिसर्च, और विष-उद्योग तक में हो रहा है। उनके जहर को सोने से भी महंगा कहा जाता है क्योंकि इसका इस्तेमाल कैंसर से लेकर दिल की बीमारियों तक की दवा और वैक्सीन में किया जाता है। एक ग्राम सांप का विष कई हजार डॉलर में बिकता है, और यही बना है एक मल्टी-बिलियन डॉलर इंडस्ट्री की रीढ़।
इन सांपों को मिलता है वीआईपी ट्रीटमेंट, खिलाते हैं चिकन
भारत में सांपों को अक्सर दूध पिलाकर उनके हाजमे का मजाक बनाया जाता है अंधविश्वास से भरी यह परंपरा अब भी कई जगहों पर जारी है। वहीं दूसरी ओर, दुनिया में एक ऐसी भी जगह है, जहां सांपों को दूध नहीं, बल्कि प्रोटीन-युक्त चिकन परोसा जाता है। वहां सांपों के लिए न पिटारे होते हैं, न जंजीरें बल्कि होते हैं स्पेशल बैरक, जिनमें उनके लिए एसी जैसी व्यवस्था, सही तापमान, नमी और देखभाल का पूरा इंतजाम होता है। यह कोई फिल्मी सीन नहीं, बल्कि वास्तविक वैज्ञानिक प्रयोगशालाएं हैं जो कुछ देशों में सांपों को वीआईपी ट्रीटमेंट देकर दुनिया को सबसे खतरनाक बीमारियों के इलाज की दिशा में आगे बढ़ा रही हैं। इन बैरकों में खास तौर पर कोबरा जैसे विषैले सांप रखे जाते हैं। वे जब ज़हर उगलते हैं, तो वही जहर कुछ समय बाद सोने से भी कीमती हो जाता है। वैज्ञानिक विशेष उपकरणों और सावधानी के साथ उनका विष निकालते हैं, और उसी से बनती हैं एंटीवेनम, कैंसर की दवाएं, न्यूरो डिसऑर्डर ट्रीटमेंट, और यहां तक कि दिल की बीमारियों की जीवनरक्षक दवाएं।
कौन से देशों में हो रही है सांप की खेती?
अब सवाल उठता है आखिर दुनिया में कौन सी है यह जगह जहा लोग अपनी जान को जोखिम में डालकर इन सांपों की सेवा कर रहे हैं? इसका उत्तर है थाईलैंड, वियतनाम, अमेरिका, चीन और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में जमकर स्नेक फॉर्मिंग का कारोबार चल रहा है, जहां पर सांप पालन और उनके विष निकालकर बेचना का काम एक वैज्ञानिक उद्योग बन चुका है। यहां सांपों की देखभाल के लिए संस्थागत लैब्स, प्रशिक्षित स्टाफ, और खास सुविधाएं मौजूद हैं। इन लैब्स में काम करने वाले वैज्ञानिक और तकनीशियन जानते हैं कि यह खतरनाक है, लेकिन मानवता के लिए यह जरूरी भी है। इन देशों ने समझा कि सांप सिर्फ डर और अंधविश्वास नहीं हैं, बल्कि एक चलती-फिरती फार्मेसी हैं, जिनका विष भी दवा बन सकता है अगर उसे सही दिशा में प्रयोग किया जाए।
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कितनी खतरनाक है सांपों की फॉर्मिंग?
दुनिया का सबसे जहरीले जीवों में से एक होते हैं सांप। आमतौर पर इसे देखकर लोग डर के मारे सहम जाते हैं, लेकिन वियतनाम में यही सांप रोजगार और अरबों की कमाई का जरिया बन चुके हैं। यहां लोग सांपों को पालते हैं, ठीक उसी तरह जैसे भारत में किसान खेतों में सब्जियां उगाते हैं। सांपों की इस खेती को कहते हैं 'स्नेक फार्मिंग', और यह कोई मामूली काम नहीं। दुनिया के सबसे खतरनाक जीवों को पालना जानलेवा जोखिम से भरा है। वियतनाम में जो लोग यह काम करते हैं, वे प्रशिक्षित एक्सपर्ट्स होते हैं, जिन्हें पता है कि एक छोटी सी चूक भी जिंदगी और मौत के बीच का फासला तय कर सकती है। कई बार तो ये विशेषज्ञ भी सांपों को संभालते वक्त घायल हो जाते हैं, लेकिन फिर भी वे इस पेशे को नहीं छोड़ते क्योंकि इसमें जोखिम के साथ-साथ जबरदस्त मुनाफा भी जुड़ा है। वियतनाम में यह एक संगठित उद्योग बन चुका है। वहां सांपों को बड़े-बड़े बाड़ों में पाला जाता है, उन्हें उचित आहार, स्वास्थ्य जांच, और विष निकालने की साइंटिफिक प्रक्रिया के तहत रखा जाता है। इन सांपों का जहर दवाओं, एंटी-वेनम, कॉस्मेटिक्स और रिसर्च में इस्तेमाल होता है, जिससे कई करोड़ों की कमाई होती है।
कैसे होती है स्नेक फॉर्मिंग?
कोबरा दुनिया के सबसे खतरनाक और जहरीले सांपों में से एक होता है। इसे पकड़ना जानलेवा जोखिम से भरा काम है, क्योंकि एक बार डसने पर जिंदगी कुछ ही मिनटों की मेहमान रह जाती है। लेकिन अब यही कोबरा, कुछ देशों में अरबों की कमाई का जरिया बन चुका है और इसकी खेती एक व्यवस्थित और योजनाबद्ध उद्योग का रूप ले चुकी है। इस कारोबार का सबसे अहम हिस्सा है। कोबरा के अंडों की सुरक्षित कटाई। चूंकि बड़े कोबरा को पकड़ना मुश्किल और खतरनाक है, इसलिए सांपों को मंडी भेजने से पहले ही उनके अंडे इकट्ठे कर लिए जाते हैं। ये अंडे ही आगे चलकर नए कोबरा बनते हैं और इस ‘कोबरा फार्मिंग बिज़नेस’ की नींव को मजबूत करते हैं। एक-एक करके सांपों के चैंबर खोले जाते हैं, जहां विशेषज्ञ बेहद सावधानी से गुस्साए कोबरा के बीच से अंडे निकालते हैं। यह काम ऐसा है, जिसमें सिर्फ एक पल की चूक भारी पड़ सकती है। कोबरा की फुफकार और फुर्ती के बीच ये अंडे एक-एक करके सुरक्षित डिब्बों में रखे जाते हैं। इसके बाद शुरू होता है इन्क्यूबेशन प्रॉसेस इन अंडों को खास तापमान पर मिट्टी या रेत में दबाकर रखा जाता है। यह प्रक्रिया बिल्कुल वैसी होती है जैसे कोई बीज बोकर फसल का इंतजार करता है। कुछ सप्ताह के बाद, इन अंडों से नन्हे-नन्हे कोबरा बाहर आते हैं, जो आगे चलकर दुनियाभर में जहर सप्लाई, दवाओं, एंटीवेनम, और रिसर्च इंडस्ट्री के लिए कीमती संपत्ति बनते हैं।
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सांप के जहर की इंटरनेशनल मार्केट में कितनी है कीमत?
बात करें सांप के ज़हर की, तो इसकी कीमत सुनकर आप चौंक जाएंगे। सिर्फ एक लीटर सांप का जहर अंतरराष्ट्रीय बाजार में 3 से 5 करोड़ रुपये तक बिकता है, और कई बार इससे भी ज़्यादा। इसका उपयोग केवल एंटी वेनम या दवा बनाने तक सीमित नहीं है इसका इस्तेमाल कुछ मामलों में अत्यधिक महंगे नशे के रूप में भी हो रहा है, जिसे अवैध लेकिन हाई-प्रोफाइल दुनिया में गुपचुप खरीदा जाता है। सांप से होने वाली कमाई यहीं खत्म नहीं होती। स्नेक लेदर यानी सांप की खाल से बने उत्पादों की दुनिया में भी भारी मांग है। स्नेक स्किन हजारों रुपये में बिकती है, और इससे बने जैकेट्स, बैग्स और बेल्ट्स की कीमत लाखों में होती है। एक अच्छी क्वालिटी की स्नेक लेदर जैकेट की कीमत 2 से 3 लाख रुपये तक पहुंच सकती है और ये प्रोडक्ट्स लग्जरी ब्रांड्स और डिजाइनर स्टोर्स में बेचे जाते हैं। इसीलिए, सांप अब सिर्फ एक जीव नहीं रहा वह एक चलता-फिरता खजाना बन चुका है। इसका हर हिस्सा जहर से लेकर खाल तक मुनाफे में तब्दील हो रहा है, बशर्ते उसे वैज्ञानिक, संरक्षित और संगठित तरीके से संभाला जाए।
कितने सांपों से निकल जाता है एक लीटर जहर?
एक्सपर्ट्स के मुताबिक, एक लीटर सांप का जहर इकट्ठा करने के लिए करीब 200 जहरीले सांपों की जरूरत होती है। फॉर्मिंग करने वाले इसे 10 से 20 लाख रुपये में बेचते हैं, जबकि यही जहर इंटरनेशनल मार्केट में जाकर 3 से 5 करोड़ रुपये तक की कीमत तक पहुंच जाता है। लेकिन अब स्नेक फार्मिंग सिर्फ जहर तक सीमित नहीं रही। सांपों के मीट और स्किन का भी बड़े पैमाने पर व्यवसाय हो रहा है। चीन और वियतनाम में सांप का मीट उत्सवों और पारंपरिक व्यंजनों में उपयोग किया जाता है। यहां इसे न सिर्फ स्वादिष्ट, बल्कि औषधीय गुणों से भरपूर माना जाता है। कोबरा का मांस तो इन देशों में डिमांड लिस्ट में सबसे ऊपर है। हॉन्गकॉन्ग की बात करें तो यहां एक बाउल स्नेक सूप की कीमत करीब 1,000 रुपये होती है और इसे स्वास्थ्यवर्धक टॉनिक के रूप में देखा जाता है, खासकर सर्दियों में।
Published By : Ravindra Singh
पब्लिश्ड 9 July 2025 at 15:34 IST