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अपडेटेड 7 June 2025 at 11:44 IST

इस देश में जारी हुआ 50 हाथियों को काटने का फरमान, घर-घर बांटा जाएगा मांस; क्या है इसके पीछे चौंकाने वाली वजह?

Elephant Killing: एक देश में 50 हाथियों को मारने का फरमान जारी किया गया है। इस हाथियों को मारने के साथ मांस को स्थानीय लोगों में वितरित भी किया जाएगा। इस चौंकाने वाले फैसले के पीछे वजह क्या है? जान लीजिए

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Elephant
Elephant | Image: Freepik (AI)

Elephants killing: जंगली जानवरों के संरक्षण के लिए जहां कई देशों ने मुहिम छेड़ी हुई है। तो वहीं एक देश ऐसा भी है, जहां एक साथ 50 हाथियों को काटने का फरमान जारी हो गया। न सिर्फ इन हाथियों को काटा जाएगा, बल्कि इसके साथ ही घर-घर मांस भी बटेगा। इसके बीच वजह क्या है? आइए आपको बताते हैं...

इस देश का नाम है अफ्रीकी देश जिम्बाब्वे, जहां हाथियों को काटने और इनका मांस स्थानीय समुदाय में वितरित करने का फैसला लिया गया है। इसके अलावा हाथियों के दांत को सरकार को सौंपा जाएगा।

जिम्बाब्वे ने क्यों लिया हाथियों के कत्लेआम का फैसला? 

जिम्बाब्वे हाथियों की तेजी से बढ़ रही संख्या की वजह से परेशान है। बोत्सवाना के बाद यह दुनिया में हाथियों की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाला देश है। हालात ये हैं कि एक जंगल में केवल 800 हाथियों के रहने की जगह है, लेकिन वहां 2,550 हाथी रह रहे हैं यानी जंगल पूरी तरह से ओवरलोड हो चुका है। इस असंतुलन को देखते हुए जिम्बाब्वे की वाइल्डलाइफ अथॉरिटी (ZimParks) ने बड़ा फैसला लिया है। अधिकारियों ने पिछले पांच सालों में 200 हाथियों को दूसरी जगह भेजा है, लेकिन दबाव कम करने का यह प्रयास पर्याप्त नहीं था।

फैसले के अनुसार दक्षिण-पूर्वी इलाके के एक प्राइवेट रिजर्व में 50 हाथियों को मारा जाएगा। यही नहीं इनका मांस स्थानीय लोगों में भी बांटा जाएगा, जिससे न सिर्फ आबादी पर नियंत्रण हो, बल्कि भूखे लोगों को भोजन भी मिल सके।

पिछले साल 200 हाथियों को मारा गया था

वैसे ये पहली बार नहीं है जब जिम्बाब्वे में यूं हाथियों को काटने का फरमान जारी हुआ हो। इससे पहले पिछले साल ही जब जिम्बाब्वे कई दशकों से भारी सूखे का सामना कर रहा था, तब लोगों की भूख मिटाने के लिए यहां 200 हाथियों को मारा गया था। ऐसा साल 1988 के बाद पहली बार था, जब इतनी बड़ी संख्या में हाथियों को शिकार बनाया गया।

जिम्बाब्वे में 50 हाथियों के कत्लेआम के अलावा उनके दांत सरकार को सौंप जाएंगे। दरअसल, दुनियाभर में हाथी दांत के व्यापार पर बैन लगा हुआ है, जिसके चलते जिंबाब्वे को इसे बेचने की इजाजत नहीं है।

PETA की चुप्पी पर भी उठ रहे सवाल

सोशल मीडिया पर जिम्बाब्वे के इस फैसले को लेकर तीखी बहस छिड़ गई है। बड़ी संख्या में लोग इसकी आलोचना करते नजर आ रहे हैं। वाइल्डलाइफ एक्टिविस्ट्स का कहना है कि हाथी महज एक वन्यजीव नहीं, बल्कि पर्यटन की भी पहचान हैं। टूरिज्म से जुड़ी अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा इन्हीं पर निर्भर है। अगर ऐसे ही कत्लेआम होता रहा तो जंगल वीरान हो जाएंगे। साथ ही साथ इस फैसले को लेकर पीपुल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (PETA) की चुप्पी पर भी सवाल उठ रहे हैं।

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पब्लिश्ड 7 June 2025 at 11:44 IST