अपडेटेड May 4th 2025, 19:17 IST
विदेश मंत्री एस. जयशंकर वैश्विक मंच पर आए दिन अपनी बेबाक बयानों के लिए सुर्खियों में छाए रहते हैं एक बार फिर अपने स्पष्ट और बेबाक अंदाज के लिए मीडिया की सुर्खियों में छा गए हैं। रविवार (4 मई) को विदेश मंत्री एस जयशंकर ने पहलगाम हमलों के बाद यूरोपीय देशों को कड़ी नसीहत देते हुए कहा कि भारत साझेदारी चाहता है, न कि उपदेश। उन्होंने कहा कि अगर यूरोप भारत के साथ मजबूत और गहरे संबंध विकसित करना चाहता है, तो उसे अधिक संवेदनशीलता दिखानी होगी और पारस्परिक हितों को प्राथमिकता देनी होगी। जयशंकर ने यह भी स्पष्ट किया कि भारत अब ऐसे संबंधों की तलाश में है जो बराबरी और सम्मान पर आधारित हों, न कि एकतरफा अपेक्षाओं पर।
जयशंकर का यह बयान वैश्विक मंच पर भारत के आत्मविश्वासपूर्ण और संतुलित विदेश नीति रुख को दर्शाता है, जिसमें वह अपनी संप्रभुता और हितों से समझौता किए बिना वैश्विक साझेदारी की दिशा में अग्रसर है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने 'आर्कटिक सर्कल इंडिया फोरम' के एक संवादात्मक सत्र में रूस और पश्चिम के संबंधों पर अपनी स्पष्ट राय रखते हुए भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए संतुलित विदेश नीति का संदेश दिया। उन्होंने कहा कि भारत हमेशा से 'रूसी यथार्थवाद' का समर्थक रहा है और रूस के साथ उसके संबंध संसाधनों के आदान-प्रदान और रणनीतिक सहयोग पर आधारित हैं। भारत और रूस के बीच एक ऐसा महत्वपूर्ण सामंजस्य है जो उन्हें एक-दूसरे का पूरक बनाता है।
जयशंकर ने पश्चिमी देशों की उस सोच की आलोचना की जिसमें रूस-यूक्रेन संघर्ष का समाधान रूस को शामिल किए बिना खोजने की कोशिश की गई। उन्होंने कहा कि यह रवैया यथार्थवादी कूटनीति के मूल सिद्धांतों को ही चुनौती देता है। इसी क्रम में उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि वे सिर्फ रूस ही नहीं, बल्कि अमेरिका के यथार्थवाद के भी समर्थक हैं। यह दिखाता है कि भारत किसी एक गुट की ओर झुकने की बजाय अपने राष्ट्रीय हितों के अनुसार संतुलन साधने की नीति पर चल रहा है।
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय मंच से भारत की स्पष्ट और संतुलित विदेश नीति की झलक पेश की। 'आर्कटिक सर्कल इंडिया फोरम' में वैश्विक घटनाक्रम और बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य पर चर्चा करते हुए उन्होंने अमेरिका और यूरोप के साथ संबंधों पर अपनी बेबाक राय रखी। जयशंकर ने अमेरिका के संदर्भ में कहा कि आज के दौर में उससे जुड़ने का सबसे प्रभावी तरीका वैचारिक मतभेदों को दरकिनार कर पारस्परिक हितों की खोज करना है। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि सहयोग की संभावनाओं को विचारधारात्मक असहमति के नाम पर कमज़ोर नहीं किया जाना चाहिए।
यूरोप के संदर्भ में उन्होंने एक तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि भारत साझेदारों की तलाश करता है, उपदेशकों की नहीं खासकर उन उपदेशकों की जो अपने उपदेशों का पालन खुद अपने देश में भी नहीं करते। उन्होंने यूरोपीय देशों से अपील की कि वे भारत के साथ पारस्परिकता और समानता के सिद्धांतों पर काम करें, न कि एकतरफा नैतिकता का पाठ पढ़ाएं। जयशंकर की इन टिप्पणियों को भारत की वैश्विक राजनीति में बढ़ती आत्मनिर्भरता और आत्मविश्वास का प्रतीक माना जा रहा है, जहां वह अब सहयोग की शर्तें खुद तय करने की स्थिति में है।
पब्लिश्ड May 4th 2025, 18:13 IST