अपडेटेड 21 December 2025 at 00:02 IST

बांग्लादेश पुलिस की हिरासत में था दीपू दास, फिर कैसे हुई मॉब लिंचिंग? तसलीमा नसरीन ने वीडियो जारी कर उठाए पुलिस पर सवाल

बांग्लादेश में गरीब हिंदू मजदूर दीपू चंद्र दास की भीड़ ने क्रूर लिंचिंग कर दी। मुस्लिम सहकर्मी से छोटे विवाद के बाद झूठा आरोप लगा कि दीपू ने पैगंबर के खिलाफ टिप्पणी की है। भीड़ ने उन्हें पीटा, फांसी दी और शव जला दिया। तसलीमा नसरीन ने पुलिस की भूमिका पर सवाल उठाए हैं।

Dipu Das was in Bangladesh police custody Taslima Nasreen released video
बांग्लादेश पुलिस की हिरासत में था दीपू दास | Image: X

बांग्लादेश में मयमनसिंह जिले के भालुका इलाके में हुई एक गरीब हिंदू मजदूर दीपू चंद्र दास की लिंचिंग ने सदमा पैदा कर दिया है। यह घटना धार्मिक कट्टरता और भीड़ की हिंसा का एक और उदाहरण है। अब इस मामले पर बांग्लादेश की निर्वासित लेखिका तसलीमा नसरीन ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो जारी कर दीपू दास की लिंचिंग में पुलिस की भूमिका पर सवाल उठाए हैं।

तसलीमा नसरीन ने इस घटना पर गहरा दुख जाते हुए पुलिस की भूमिका पर सवाल उठाए हैं और पीड़ित परिवार की मदद की अपील की है। दीपू चंद्र दास एक फैक्ट्री में मजदूर के रूप में काम करते थे और उनका जीवन साधारण था। तसलीमा ने दावा किया है कि दीपू का एक मुस्लिम सहकर्मी से किसी बात पर विवाद हो गया। इसका बदला लेने के लिए उसकी निर्मम हत्या की गई।

बदला लेने के लिए फैलाई अफवाह

दीपू दास के सहकर्मी ने बदला लेने के लिए भीड़ के बीच यह अफवाह फैला दी कि दीपू ने पैगंबर के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी की है। यह सुनते ही उन्मादी भीड़ ने दीपू पर हमला बोल दिया। वे लोग उसे नोचने लगे, पीटने लगे और अंत में उसके शव जला दिया।

पुलिस हिरासत में दीपू

एक बार पुलिस ने दीपू को बचा लिया था और हिरासत में लेकर थाने ले आई थी, यानी दीपू पुलिस सुरक्षा में आ गए थे। तसलीमा नसरीन ने एक वीडियो शेयर किया है, जिसमें दीपू पुलिस की हिरासत में खुद को निर्दोष बताते नजर आ रहे हैं। वीडियो में दिखाया गया है कि दीपू नीली शर्ट और पैंट पहने हुए हैं और वे पुलिस अधिकारियों से बात कर रहे हैं, जहां वे अपना पक्ष रखते हुए कहते हैं कि वे बेकसूर हैं और यह सब सहकर्मी की साजिश है।

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परिवार का अकेला सहारा

नसरीन ने सवाल किया कि क्या पुलिस में जिहादी सोच वाले लोग हैं, जिन्होंने दीपू को मौत के मुंह में धकेल दिया? उन्होंने दीपू के परिवार की दुर्दशा पर भी रोशनी डाली। दीपू अपने परिवार के एकमात्र कमाने वाले थे, जो विकलांग पिता, मां, पत्नी और बच्चे का पालन-पोषण करते थे। अब उनके परिवार का क्या होगा? क्या कोई उनकी मदद करेगा?

पुलिस पर सवाल

पुलिस ने शुरुआत में दीपू को भीड़ से बचाने के लिए हिरासत में लिया था। लेकिन उसके बाद क्या हुआ, यह एक बड़ा सवाल है। क्या पुलिस ने कट्टरपंथी सोच के चलते उसे वापस भीड़ के हवाले कर दिया? या फिर उन्मादी लोग पुलिस को धक्का देकर दीपू को बाहर निकाल ले गए? घटना के बाद भीड़ ने जश्न मनाया और हिंसा को 'जिहादी उत्सव' की तरह पेश किया।

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Published By : Sagar Singh

पब्लिश्ड 20 December 2025 at 23:59 IST