अपडेटेड 23 December 2025 at 20:04 IST

VIRAL VIDEO: माइक्रोसॉफ्ट में AI पर किया काम, अब रूस की सड़कों पर क्यों लगा रहा झाड़ू? सॉफ्टवेयर डेवलपर ने खुद बताई कहानी

VIRAL VIDEO: रूस की सड़कों के बीच भारतीय प्रवासी मजदूर सेंट पीटर्सबर्ग की सड़कों पर सफाई कर रहे हैं। नमें एक युवक खुद को सॉफ्टवेयर डेवलपर बताता है। आखिर ऐसी भी क्या मजबूरी थी कि पढ़ा लिखा इंसान रूस में झाड़ू लगाने को मजबूर है। आइए इस लेख में विस्तार से जानते हैं।

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Software Engineer
Software Engineer | Image: X \Freepik

VIRAL VIDEO: आज के दौर में जब हम सॉफ्टवेयर इंजीनियर शब्द सुनते हैं तो हमारे दिमाग में लाखों का पैकेज और सुख-सुविधाओं से भरी जिंदगी दिखाई देती है। लेकिन रूस की सड़कों से इस खबर ने सबको शॉक कर दिया है। एक शख्स जिसके पास कंप्यूटर कोडिंग और सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट की डिग्री है। वह आज रूस की सड़कों पर कड़कड़ाती ठंड में झाड़ू लगाने को मजबूर है। आइए इस लेख में विस्तार से जानते हैं कि आखिर ऐसी भी क्या मजबूरी रहे होगी कि यह शख्स इतना ठंड में यह काम कर रहा है?  

रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच रूसी श्रम बाजार में आए बड़े बदलावों ने भारतीय मजदूरों के लिए नए अवसर पैदा किए हैं। वर्तमान में रूस अपने इतिहास की सबसे गंभीर श्रमिक कमी का सामना कर रहा है, जिसके पीछे युद्ध के लिए युवाओं की मोबाइलेजेशन यानी कि लामबंदी और बड़ी संख्या में लोगों का देश छोड़ना मुख्य कारण है। 

इसी कमी को दूर करने के लिए, सेंट पीटर्सबर्ग की एक प्रमुख सड़क रखरखाव कंपनी, 'कोलोमियाजस्कोय' ने हाल ही में भारत से 17 कुशल मजदूरों को नियुक्त किया है। ये मजदूर पिछले कई हफ्तों से सेंट पीटर्सबर्ग की सड़कों की सफाई और रखरखाव का काम कर रहे हैं।

ये प्रवासी मजदूर कौन हैं? 

इनमें सभी प्रवासी मजदूरों की उम्र 19 से लेकर 43 के बीच है। भारत में ये अलग-अलग काम करते थे। कोई किसान, तो कोई ड्राइवर, आर्किटेक्ट, टैनर, वेडिंग प्लानर और यहां तक कि सॉफ्टवेयर डेवलपर जैसे काम कर रहे थे। इन्हीं में से एक मुकेश मंडल 26 साल का एक युवक है। जो खुद को डेवलपर है।  उन्होंने रूसी मीडिया को बताया कि मैंने ज्यादातर कंपनियों में काम किया है जहां Microsoft जैसे टूल्स और AI, चैटबॉट्स, GPT का इस्तेमाल होता था। 

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अब मैं यहां सड़कें साफ कर रहा हूं. हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि वह Microsoft में काम करता था या किसी ऐसी कंपनी में जो Microsoft के प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करती थी।  कंपनी न सिर्फ उन्हें काम देती है, बल्कि रहने की जगह, खाना और सुरक्षा उपकरण भी उपलब्ध कराती है. इन मजदूरों को हर महीने करीब 100,000 रूबल (लगभग ₹1.1 लाख) वेतन मिलता है।

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मुकेश ने कहा 'कर्म ही भगवान है' 

वह एक साल रूस में रहकर कड़ी मेहनत करना चाहता है ताकि कुछ पैसे कमा सके और फिर सम्मान के साथ अपने वतन, भारत लौट सके। जब उसके काम के चुनाव पर सवाल उठाया गया, तो उसका दृष्टिकोण न केवल व्यावहारिक था, बल्कि गहरा आध्यात्मिक भी था। मुकेश का मानना है कि काम ही पूजा है। उसके लिए कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता। वह कहता है कि एक भारतीय के लिए काम की प्रकृति मायने नहीं रखती, बल्कि उसे करने की निष्ठा मायने रखती है। 

वह बड़ी बेबाकी से कहता है कि चाहे सड़क हो या टॉयलेट, काम कहीं भी किया जा सकता है। उसके लिए स्थान केवल एक कार्यक्षेत्र है, जबकि उसका ध्यान अपनी जिम्मेदारी निभाने पर केंद्रित है। रूस से सामने आई यह कहानी बताती है कि आर्थिक जरूरतें और अवसर लोगों को उनकी पुरानी पहचान से बिल्कुल अलग काम करने पर मजबूर कर देती है। 

Published By : Sujeet Kumar

पब्लिश्ड 23 December 2025 at 20:04 IST