अपडेटेड 28 July 2024 at 23:13 IST
शिष्या मनु की ओलंपिक सफलता के पीछे गुरु जसपाल का निशानेबाजी के प्रति जुनून
गुरु जसपाल राणा ने हर सत्र, हर ट्रायल में शिष्या मनु भाकर पर कड़ी नजर रखी, किसी भी विशेषज्ञ, कोच को उनके करीब नहीं आने दिया।
- खेल समाचार
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Paris Olympics: भारत के पूर्व पिस्टल निशानेबाज जसपाल राणा ने असाधारण प्रतिभा के तौर पर सुर्खियों में आने के बाद जूनियर रिकॉर्ड तोड़ा और कई अंतरराष्ट्रीय पदक जीते और उनकी इस यात्रा में उनका निशानेबाजी के प्रति जुनून और इसके प्रति समर्पण उनकी पहचान रही है।
ओलंपिक पदक उनकी कैबिनेट में शामिल नहीं हो सका और रविवार को मनु भाकर के पोडियम पर खड़े होने से इस पद्म श्री पुरस्कार विजेता का सपना साकार हो गया। जब पोडियम पर कांस्य पदक मनु के गर्दन में दमक रहा था तो जसपाल स्टैंड में तालियां बजा रहे थे।
किशोरावस्था से ही अलग-थलग रहने वाले जसपाल हमेशा किसी न किसी मामले में सुर्खियों में रहे हैं। चाहे इनमें कई बार वापसी करना हो, 30 की उम्र के बाद भी अपने करियर को बचाने की कोशिश करना हो, ‘सिस्टम’ से लड़ाई लड़ना हो या फिर राजनीति में उतरना हो। दोहा 2006 के एशियाई खेलों के दौरान उन्होंने 102 डिग्री बुखार होने के बावजूद तीन स्वर्ण पदक जीते थे जो ऐसा रिकॉर्ड है जिसे कोई भी भारतीय निशानेबाज महाद्वीपीय टूर्नामेंट में कभी नहीं तोड़ पाया।
उनके लंबे बिखरे बाल उनके चेहरे से चिपके हुए थे और पसीना टपक रहा था जैसे किसी ने उन पर पानी की बोतल भर कर डाल दी हो। दोहा से लगभग 12 साल पहले 1994 के हिरोशिमा एशियाई खेलों में वह 25 मीटर सेंटर-फायर पिस्टल में स्वर्ण जीतने वाले चार भारतीयों में से एक थे। इससे ही भारतीय निशानेबाजों में प्रतिभा होने का भरोसा हुआ कि सरकार की थोड़ी सी मदद से वे विश्व विजेता बन सकते हैं। उनकी इस यात्रा में दुनिया के बेहतरीन पिस्टल कोचों में से एक टिबोर गोन्जोल ने मदद की जो लंबे समय तक भारत के कोच रहे। जसपाल को शायद गोन्जोल का स्वभाव विरासत में मिला जो एक नोटबुक, पेंसिल और गले में एक सीटी लटकाए घूमते थे और हर किसी की ताकत और कमजोरियों को नोट करते थे।
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युवा जसपाल की टिबोर के साथ खड़ी छवि अब भी उनके फेसबुक पेज पर दिखाई देती है। जसपाल ने हमेशा ओलंपिक के लिए लक्ष्य बनाया लेकिन उन्हें इस बात का अफसोस रहा कि स्टैंडर्ड पिस्टल और सेंटर-फायर पिस्टल ओलंपिक कार्यक्रम का हिस्सा नहीं बने। जसपाल को प्रतिभा को आगे लाने का मौका तब मिला जब उन्हें जूनियर राष्ट्रीय कोच नियुक्त किया गया। इसी दौरान उन्होंने मनु और सौरभ चौधरी की प्रतिभा देखी, दोनों ने 2021 में तोक्यो ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया।
हालांकि मनु के साथ मनमुटाव के कारण तोक्यो से पहले दोनों अलग हो गए जिससे सभी को हैरानी हुई। वह काफी सख्त थे। यह तभी दिखा जब वह 2018 जकार्ता एशियाई खेलों में भारतीय टीम के साथ थे जहां दबाव के माहौल में 16 साल की मनु हार गईं और जसपाल बहुत गुस्से में थे। खुद एक असाधारण प्रतिभा होने के कारण उन्हें लगा कि मनु उनकी तरह होगी। लेकिन उन्हें यह अहसास नहीं था कि वह काफी शर्मीली थी और खेल की बेहद प्रतिस्पर्धी दुनिया में कदम रख रही थी। फिर तोक्यो में मनु 10 मीटर एयर पिस्टल के फाइनल में पहुंचने के करीब पहुंच गयी थीं लेकिन पिस्टल में खराबी के कारण उसकी उम्मीदें खत्म हो गईं।
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जिस तरह से ‘गुरु शिष्या’ अलग हुए थे, ठीक उसी तरह से ‘पैच-अप’ हुआ। जसपाल ने हर सत्र, हर ट्रायल में मनु पर कड़ी नजर रखी, किसी भी विशेषज्ञ, कोच को उनके करीब नहीं आने दिया। निजी कोचों के लिए राष्ट्रीय महासंघ के सख्त नियमों के कारण वह दर्शक दीर्घा तक ही सीमित थे।लेकिन उनके बीच जो सांकेतिक भाषा से तालमेल बना, वह काफी था।
Published By : Shubhamvada Pandey
पब्लिश्ड 28 July 2024 at 23:13 IST