अपडेटेड 26 August 2024 at 23:30 IST

Paralympics: पैरा निशानेबाज रुद्रांश की निगाहें पैरालंपिक पदार्पण में स्वर्ण पदक जीतने पर

Paris Paralympics: पैरा निशानेबाज रुद्रांश खंडेलवाल पेरिस पैरालंपिक में पदार्पण के दौरान स्वर्ण पदक जीतने का लक्ष्य बनाये हैं।

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Rudransh Khandelwal
Rudransh Khandelwal | Image: X

Paris Paralympics: पैरा निशानेबाज रुद्रांश खंडेलवाल पेरिस पैरालंपिक में पदार्पण के दौरान स्वर्ण पदक जीतने का लक्ष्य बनाये हैं और उनके जीवन का मंत्र है - किसी भी परिस्थिति के लिए तैयार रहना और अपनी क्षमता पर भरोसा बनाये रखना।

रुद्रांश जब महज आठ साल के थे तब एक दुर्घटना में अपना बायां पैर गंवा बैठे थे। भरतपुर के इस किशोर ने विकलांगता को कभी अपने आड़े नहीं आने दिया और निशानेबाजी में शानदार प्रदर्शन करते हुए 50 मीटर पिस्टल (एसएच1) में नंबर एक स्थान पर पहुंच गये।

अब उनका लक्ष्य अपने पहले पैरालंपिक में स्वर्ण पदक जीतना है। अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए वह कोई भी कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं जिसमें एक अतिरिक्त पिस्टल के साथ अपने कृत्रिम पैर के लिए एक ‘टूल-किट’ भी शामिल है ताकि अगर यह टूट जाए तो इससे मदद मिल सके। तोक्यो ओलंपिक के दौरान निशानेबाज मनु भाकर को पिस्टल की खराबी से जूझते देखना रुद्रांश के लिए ‘सबक’ था जिससे वह अब घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों प्रतियोगिताओं के लिए हमेशा एक अतिरिक्त पिस्टल साथ रखते हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘प्रतियोगिता के दौरान पिस्टल की खराबी के बाद आप कितनी जल्दी दूसरी अतिरिक्त पिस्टल का इस्तेमाल करके निशाना लगा सको। मैं प्रतियोगिता में हर स्थिति के लिए खुद को तैयार रखता हूं। ’’ उन्होंने कहा, ‘‘अगर कोई प्रतिकूल स्थिति आती है तो मैं उससे निपटने के लिए तैयार रहूं। ’’ बुधवार से शुरू हो रहे पैरालंपिक में उनसे पदक की उम्मीद है। रुद्रांश का पैर 2015 में भरतपुर में चचेरी बहन की शादी के दौरान आतिशबाजी देखते समय हुई घटना के कारण कट गया था।

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उन्होंने बताया, ‘‘आतिशबाजी को नियंत्रित करने वाले इलेक्ट्रॉनिक गैजेट में शॉर्ट-सर्किट हुआ और एक उड़ती हुई धातु की प्लेट ने घुटने के ठीक नीचे मेरे बाएं पैर को काट दिया। ’’ रुद्रांश ने कहा, ‘‘मुझे भरतपुर के एक अस्पताल में ले जाया गया, जहां से मुझे जयपुर और फिर गुरुग्राम के एक अस्पताल में रेफर कर दिया गया। लेकिन मेरा पैर नहीं बचाया जा सका। इसलिए बस कृत्रिम पैर ही लगाया जा सकता था। ’’

छह महीने बाद जीवन सामान्य हो गया, लेकिन उनकी मां की सबसे बड़ी चिंता यह थी कि रुद्रांश अवसाद का शिकार नहीं हो जाए। उनकी मां भरतपुर विश्वविद्यालय में ‘लेक्चरर’ हैं, उन्होंने उसे व्यस्त रखने के लिए विकल्प तलाशने शुरू कर दिए। रुद्रांश ने कहा, ‘‘उन्हें लगा कि खेल मुझे अवसाद में जाने से बचाने का एक अच्छा तरीका होगा। उन्होंने मुझे निशानेबाजी में शामिल करने के विकल्प को देखा। ’’ रुद्रांश ने अपने कोच सुमित राठी की मदद से शुरूआत की और यहां तक पहुंचे।

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Published By : Shubhamvada Pandey

पब्लिश्ड 26 August 2024 at 23:30 IST