Published 22:47 IST, August 24th 2024
क्रिकेट के मैदान पर गिरने से बदली इस भारतीय एथलीट की जिंदगी, Paris Paralympics में लेगा हिस्सा
2024 पेरिस पैरालंपिक खेल शुरू होने वाले हैं, जिसमें भारत का एक ऐसा पैरा एथलीट हिस्सा लेगा, जो क्रिकेट के मैदान पर गिरने से दिव्यांग बन गया था।
Paris Paralympics 2024: पैरा बैडमिंटन खिलाड़ी सुकांत कदम 10 साल की उम्र में क्रिकेट के मैदान पर गिर गए थे, जिससे उन्हें घुटने की गंभीर चोट लगी और कई सर्जरी के बावजूद इस चोट ने उन्हें दिव्यांग बना दिया।
इस कारण वो लगभग एक दशक तक खेलों से दूर रहे लेकिन इससे उनके जीवन की दिशा बदल गई। दो दशक से भी ज्यादा समय बाद मैकेनिकल इंजीनियर से पैरा शटलर बने सुकांत कदम पेरिस पैरालंपिक में अपना पदार्पण करने के लिए तैयार हैं और भारत के लिए पदक जीतने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं।
खड़े होने में दिक्कत और कम गतिशीलता संबंधी विकलांगता वाले खिलाड़ी एसएल4 श्रेणी में प्रतिस्पर्धा करते हैं।
कदम ने पीटीआई को दिए एक साक्षात्कार में कहा-
मुझे उस समय स्थिति की गंभीरता का अंदाजा नहीं था। मैंने अपनी पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित किया और मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की। कॉलेज के दौरान ही मैं कई खेलों से परिचित हुआ और तभी बैडमिंटन ने मेरा ध्यान खींचा।
इस खेल ने उन्हें जीवन में एक नयी दिशा दी और अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद 31 वर्षीय इस खिलाड़ी ने पैरा बैडमिंटन में अपना करियर बनाने के लिए खुद को पूरी तरह से समर्पित कर दिया।
उन्होंने कहा-
मेरा सपना बस इतना था कि मेरी टी-शर्ट पर भारत लिखा हो। मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं इतनी दूर तक पहुंच पाऊंगा। अब मेरा ध्यान खेलों से पदक लेकर लौटने पर है।
अपने शुरुआती सालो को याद करते हुए कदम ने बताया-
मैं 10 साल का था, इसलिए रोजमर्रा की जिंदगी में इसे स्वीकार करना और अपनाना आसान था। मुझे नहीं पता था कि ये एक बड़ा झटका था। मैं इसके बारे में इतना नहीं सोच रहा था।
कदम की यात्रा चुनौतियों से भरी रही, जिसमें उन्हें भेदभाव का सामना भी करना पड़ा। उन्होंने स्वीकार किया-
इससे इनकार करना मुश्किल है, लेकिन एक छोटे से शहर में पले-बढ़े होने के कारण मैंने इसे व्यक्तिगत रूप से नहीं लिया। आज मैं भावनाओं को समझ सकता हूं, लेकिन तब मैंने इसे खुद पर हावी नहीं होने दिया। अगर मैं ऐसा करता तो इससे मुझे खुद पर संदेह होता और जीवन की तैयारी में बाधा आती।
कदम के करियर में महत्वपूर्ण मोड़ 2012 में आया जब उन्होंने साइना नेहवाल को लंदन ओलंपिक में कांस्य पदक जीतते और गिरिशा नागराजेगौड़ा को पैरालंपिक में ऊंची कूद (एफ42) में रजत पदक जीतते देखा। इन उपलब्धियों ने उनके दिमाग को नयी संभावनाओं के लिए खोल दिया।
(Note: इस भाषा कॉपी में हेडलाइन के अलावा कोई बदलाव नहीं किया गया है)
Updated 22:47 IST, August 24th 2024