अपडेटेड 2 October 2024 at 22:42 IST

कानपुर की पिच को लेकर चिंतित UPCA, काली मिट्टी से जुड़ी वजह; क्यूरेटर्स ने बताई पूरी कहानी

(UPCA कई सालों से कानपुर के ग्रीन पार्क स्टेडियम में पिच तैयार करने के लिए उन्नाव से काली मिट्टी प्राप्त करता रहा है, लेकिन अब उसकी चिंता बढ़ गई है।

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Green Park Stadium
कानपुर की पिच को लेकर चिंतित UPCA | Image: AP Photo/Ajit Solanki

Cricket News: उत्तर प्रदेश क्रिकेट संघ (UPCA) कई सालों से कानपुर के ग्रीन पार्क स्टेडियम में पिच तैयार करने के लिए उन्नाव से काली मिट्टी प्राप्त करता रहा है, लेकिन शहर में प्राकृतिक संसाधनों के तेजी से खत्म होने के कारण राज्य क्रिकेट संघ चिंतित है।

कानपुर से करीब 25 किलोमीटर दूर उन्नाव में न केवल उच्च गुणवत्ता वाले संसाधन कम हो रहे हैं बल्कि उपलब्ध मिट्टी की गुणवत्ता में भी काफी गिरावट आई है। क्रिकेट पिच के लिए 50 प्रतिशत से अधिक चिकनी मात्रा वाली मिट्टी माकूल होती है।

ग्रीन पार्क स्टेडियम में एक सत्र में 9 पिचों पर करीब 150 मैच आयोजित किए जाते हैं और जब मैच नहीं खेली जा रहे हैं तो इसका नवीनीकरण करना पड़ता है। UPCA के पिच क्यूरेटर शिव कुमार के मुताबिक, हर सत्र में 1200 घन फीट मिट्टी की जरूरत पड़ती है।

पिच क्यूरेटर ने दिया बयान

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पिच क्यूरेटर शिव कुमार ने 'पीटीआई' को बताया- 

अपने पूरे करियर में हमने सिर्फ उन्नाव की मिट्टी का इस्तेमाल किया है। अब मुझे चिंता इस बात की है कि उन्नाव में उस प्राकृतिक संसाधन की ज्यादा मात्रा नहीं बची है। हम उपलब्ध संसाधन से दो साल और काम चला सकते हैं और इसके खत्म होने से पहले हमें एक नया क्षेत्र तलाशना होगा। उस क्षेत्र में मिट्टी लगभग खत्म हो चुकी है और अब हमें जो मिट्टी मिल रही है वह भी उतनी अच्छी नहीं है।

UPCA उन्नाव के एक तालाब और 'काली मिट्टी' नामक गांव से काली मिट्टी लेता है। उस इलाके के खेत मिट्टी का सबसे बड़ा स्रोत हैं, लेकिन सालों से हो रही खुदाई के कारण ये संसाधन खत्म होता जा रहा है। UPCA के क्यूरेटर ने कहा कि मिट्टी का मुख्य तत्व चिकनी मिट्टी है। शिव कुमार ने कहा कि पहले मैदान के ऊपर से केवल एक फीट नीचे अच्छी गुणवत्ता वाली मिट्टी उपलब्ध थी लेकिन पिछले कुछ सालों में लगातार खुदाई के कारण अब ऐसा नहीं है।

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अब यहां से मिट्टी लाने पर विचार 

UPCA अब मिट्टी लाने के लिए ओडिशा और आंध्र प्रदेश जैसी जगहों पर जाने का विचार कर रहा है। शिव कुमार ने कहा,‘‘उनके पास अच्छी चिकनी मिट्टी मात्रा वाले क्षेत्र हैं। मध्य प्रदेश में भी अच्छी चिकनी मिट्टी है। हम वहां से कुछ देखेंगे। अगर हमें नजदीक कोई जगह नहीं मिलती है तो हमें नई पिचें बनानी पड़ेंगी और यह एक समस्या बन सकती है।’’

शुरू से लेकर अंत तक पिच तैयार करने में लगभग 45 दिन का समय लगता हैं। 3 बार इस्तेमाल किए जाने के बाद कुछ पिचों को नवीनीकरण की आवश्यकता होती है। विज्ञान स्नातक शिवकुमार ने कहा, ‘‘हमें पिचों पर कुछ काम करना होगा लेकिन इसके लिए हमें समान परिवार की मिट्टी की जरूरत होगी यानी ठीक उसी जगह की मिट्टी जिससे पिच शुरू में तैयार की गई थी।’’

उन्होंने कहा, ‘‘हम किसी दूसरे परिवार की मिट्टी का उपयोग नहीं कर सकते क्योंकि उसमें सामग्री अलग होगी।’

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Published By : DINESH BEDI

पब्लिश्ड 2 October 2024 at 22:42 IST