अपडेटेड 31 August 2024 at 21:02 IST

Hartalika Teej: बाकी तीज व्रत से क्यों कठोर है हरतालिका तीज, क्या है इसकी पूजा विधि?

Hartalika Teej 2024: हरतालिका तीज व्रत बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह बाकी तीजों से कठिन क्यों होता है और पूजा विधि क्या है?

Hartalika Teej puja vidhi
हरतालिका तीज व्रत विधि | Image: Freepik

Hartalika Teej Ki Puja Vidhi: हर साल भादो माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को रखा जाने वाला हरतालिका तीज का व्रत हिंदू धर्म में बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन सभी सुहागिन महिलाएं अखंड सौभाग्य और वैवाहिक जीवन को खुशहाल बनाने की कमाना लेकर इस व्रत को रखती हैं और माता पार्वती के साथ महादेव की विधिवत पूजा-अर्चना करती हैं। ऐसे में अगर आप मां पार्वती को नाराज नहीं करना चाहती हैं, तो हरतालिका तीज व्रत की सही पूजा विधि के बारे में जान लें।

धार्मिक शास्त्रों के मुताबिक हर साल 3 तीज का त्योहार आता है, जिसमें हरियाली, कजरी और हरतालिका तीज शामिल हैं। शास्त्रों में इन सभी का महत्व एक समान बताया गया है और तीनों की व्रत पति की लंबी आयु और दांपत्य जीवन में खुशहाली के लिए रखा जाता है, लेकिन इन सब में हरतालिका तीज व्रत की विधि बहुत ही कठिन होती है। ऐसे में अगर आप पहली बार इस व्रत को रखने जा रही है, तो हरतालिका तीज पूजा की सही विधि जान लें।

बाकी तीज व्रत से कठोर क्यों है हरतालिका तीज?

हरतालिका तीज व्रत की विधि के बारे में जानने से पहले यह जान लेते हैं, कि आखिर बाकी तीजों के मुकाबले हरतालिका तीज का व्रत कठिन क्यों होता है। वैसे तो तीनों ही तीजों को निराहार और बिना पानी पिए रखा जाता है। हालांकि बाकी के दो व्रतों में थोड़ी छूट होती है, लेकिन हरतालिका तीज में कोई छूट नहीं होती है इसे बिना अन्न और जल के 24 घंटे रखा जाता है और अगले ही दिन इस व्रत में पारण किया जाता है। यही वजह है कि इस व्रत को बाकी तीजों से कठोर माना जाता है।

क्या है हरतालिका तीज व्रत की विधि?

  • हरतालिका तीज के दिन व्रती महिलाएं सुबह उठकर नहा धोकर घर के मंदिर में जाकर पूजा पाठ करें और तीज व्रत का संकल्प लें।
  • हरतालिका तीज की पूजा प्रदोष काल में किया जाता हैं। क्योंकि मान्यता है कि प्रदोष काल अर्थात दिन और रात के मिलने का समय होता है।
  • इसके बाद पूजन के लिए शिव-पार्वती और गणेश जी की प्रतिमा बालू रेत अथवा काली मिट्टी से हाथों से बनाएं।
  • फिर उसे फुलेरा बनाकर सजाएं और उसके भीतर रंगोली डालकर उस पर पटा अथवा चौकी रखें।
  • फिर चौकी पर एक सातिया बनाकर उस पर थाल रखते हैं। उस थाल में केले के पत्ते को रखते हैं। इसके बाद तीनो प्रतिमा शंकर, पार्वती और गणेश जी को केले के पत्ते पर स्थापित करें।
  • सबसे पहले एक कलश तैयार करें जिसके लिए एक लोटा या मिट्टी का घड़ा लें। फिर उसके ऊपर श्रीफल या दीपक जलाकर रखें।
  • फिर कलश की पूजा करें इसके बाद गणेश जी और फिर माता गौरी की पूजा की जाती हैं। उन्हें सम्पूर्ण श्रृंगार चढ़ाया जाता हैं।
  • इसके बाद हरतालिका की कथा पढ़ी जाती हैं। फिर सभी मिलकर आरती की जाती हैं जिसमे सर्प्रथम गणेश जी कि आरती फिर शिव जी की आरती फिर माता गौरी की आरती की जाती हैं।
  • पूजा के बाद भगवान की परिक्रमा की जाती हैं। रात भर जागकर पांच पूजा एवं आरती की जाती हैं।
  • सुबह आखरी पूजा के बाद माता गौरा को जो सिंदूर चढ़ाया जाता हैं। उस सिंदूर से सुहागन स्त्री सुहाग लेती हैं।
  • ककड़ी एवं हलवे का भोग लगाया जाता हैं। उसी ककड़ी को खाकर उपवास तोडा जाता हैं।

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Published By : Sadhna Mishra

पब्लिश्ड 31 August 2024 at 21:02 IST