अपडेटेड 24 July 2024 at 22:59 IST

क्यों प्रसिद्ध है Garh Mukteshwar मंदिर? महर्षि दुर्वासा के श्राप और शिव गणों से है गहरा नाता

भारत में कई प्राचीन शिव मंदिर है, जिनके बारे में कम लोग ही जानते हैं। ऐसा ही एक 'गढ़ मुक्तेश्वर मंदिर' भी है आइए जानते हैं यह क्यों प्रसिद्ध है?

Garh Mukteshwar
गढ़ मुक्तेश्वर मंदिर की खासियत | Image: pixabay

Garh Mukteshwar Shiv Mandir: भगवान शिव का प्रिय माह सावन (Sawan 2024) चल रहा है। पूरे महीने सभी शिव भक्त भक्ति में डूबे रहते हैं। पूजा पाठ के साथ जगह-जगह के शिवालयों में दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं। ज्यादातर लोग बारह ज्योतिर्लिंगों (Jyotirling) के बारे में ही जानते हैं और यहीं दर्शन के लिए जाते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं इसके अलावा भी भारत में बहुत से ऐसे शिव मंदिर (Shiv Mandir) है जो हजारों सालों से मौजूद हैं और अपनी विशेषता के लिए जाने जाते हैं। ऐसा ही एक मंदिर 'गढ़ मुक्तेश्वर मंदिर' (Garh Mukteshwar Mandir) हैं।

गढ़ मुक्तेश्वर (Garh Mukteshwar) मंदिर राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली (Delhi) से करीब 100 किलोमीटर दूर राष्ट्रीय राजमार्ग 9 पर है। ये मेरठ (Meerut) से 42 किलोमीटर दूर स्थित है और हापुड़ जिले के गंगा नदी के किनारे पर बसा है। इस मंदिर का जिक्र प्राचीन ग्रंथों में भी मिलता है। ये उत्तर भारत के सबसे बड़े पर्व कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर लगने वाले गंगा स्नान मेले के लिए जाना जाता है। शिव पुराण के अनुसार इस शिव मंदिर की स्थापना और बल्लभ सम्प्रदाय का प्रमुख केंद्र होने के कारण इस स्थान का नाम शिवबल्लभपुर पड़ा। ऐसे में आइए जानते हैं कि इस मंदिर की खासियत क्या है और यह किस लिए प्रसिद्ध है।

क्यों प्रसिद्ध है गढ़ मुक्तेश्वर मंदिर?

पुराणों में बताए गए काशी, प्रयाग, अयोध्या जैसे पवित्र तीर्थों में से एक गढ़ मुक्तेश्वर धाम भी है। शिवपुराण के मुताबिक इस स्थान का प्राचीन नाम शिव वल्लभ यानि शिव का प्रिय भी है। हालांकि बाद में इसका नाम बदलकर भगवान मुक्तीश्वर रख दिया गया जो शिव का ही एक रूप है। मान्यता है कि इनके दर्शन करने से अभिशप्त शिवगणों की पिशाच योनि से मुक्ति हुई थी। इसलिए यह गढ़ मुक्तेश्वर के नाम से विख्यात हो गया। इस मंदिर का जिक्र पुराणों में भी किया गया है।

गढ़ मुक्तेश्वर मंदिर से जुड़ी पौराणिक मान्यता

शिवपुराण के अनुसार एक बार महर्षि दुर्वासा मंदराचल पर्वत पर तपस्या करने में लीन थे। तभी भगवान शिव के गण घूमते हुए वहां पहुंचे और महर्षि दुर्वासा का उपहास उड़ाने लगे। तब क्रोधित होकर दुर्वासा ने गणों को पिशाच बनने का श्राप दे दिया। श्राप की बात सुनकर शिव के गण महर्षि दुर्वासा के चरणों में गिरकर इससे मुक्त होने की प्रार्थना करने लगे।

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तब महर्षि ने बताया कि श्राप से मुक्त होने के लिए शिवबल्लभ जाकर भगवान शिव की तपस्या करनी होगी। इसके बाद शिव गण शिवबल्लभ आकर कार्तिक पूर्णिमा तक भगवान शिव की तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगावन शिव ने पिशाच बने गणों को मुक्ति दे दी। तब से इस स्थान का नाम गणमुक्तेश्वर और बाद में गढ़मुक्तेश्वर हो गया।  

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Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सिर्फ अलग-अलग सूचना और मान्यताओं पर आधारित है। REPUBLIC BHARAT इस आर्टिकल में दी गई किसी भी जानकारी की सत्‍यता और प्रमाणिकता का दावा नहीं करता है।

Published By : Sadhna Mishra

पब्लिश्ड 24 July 2024 at 22:59 IST