अपडेटेड 1 November 2025 at 18:26 IST
Tulsi Vivah 2025 Vrat Katha: शालिग्राम-वृंदा की इस पौराणिक कथा के बिना अधूरा माना जाता है तुलसी विवाह, यहां पढ़ें
Shaligram Vrinda Vivah Katha: तुलसी विवाह का पर्व नारी की पवित्रता और भगवान विष्णु के आशीर्वाद का प्रतीक है। इस दिन तुलसी और शालिग्राम का विवाह करके आप अपने जीवन में सकारात्मकता, प्रेम और समृद्धि का स्वागत कर सकते हैं।
- धर्म और अध्यात्म
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Tulsi Vivah 2025: तुलसी विवाह हिंदू धर्म में एक बहुत ही शुभ और पवित्र पर्व माना जाता है। इस दिन मां तुलसी और भगवान शालिग्राम का विवाह संपन्न किया जाता है। यह पर्व हर साल देव उठनी एकादशी के बाद मनाया जाता है और इसके बिना हिंदू विवाह सत्र की शुरुआत नहीं मानी जाती है। तुलसी विवाह से जुड़ी एक पौराणिक कथा बहुत प्रसिद्ध है, जो इस व्रत का महत्व और कारण बताती है। आइए जानते हैं पूरी कथा -
तुलसी विवाह की पौराणिक कथा
बहुत समय पहले एक असुर राजकुमारी वृंदा थीं, जो भगवान विष्णु की परम भक्त थीं। वृंदा का विवाह असुरराज जालंधर से हुआ था। जालंधर बहुत शक्तिशाली था और उसकी शक्ति का रहस्य था वृंदा की पतिव्रता नारी होने की शक्ति।
जालंधर अपनी शक्ति के कारण देवताओं को पराजित करने लगा। देवता परेशान होकर भगवान विष्णु के पास पहुंचे और उनसे मदद मांगी। भगवान विष्णु ने एक उपाय निकाला। उन्होंने जालंधर का रूप धारण किया और वृंदा के सामने पहुंचे। वृंदा अपने पति को पहचान नहीं पाईं और उनका पतिव्रत धर्म टूट गया।
जब उन्हें सच्चाई का पता चला कि उनके सामने भगवान विष्णु थे, तो उन्हें बहुत दुख हुआ। उन्होंने क्रोधित होकर भगवान विष्णु को श्राप दिया कि वे “पत्थर के रूप” में बदल जाएं। यही श्राप बाद में शालिग्राम शिला के रूप में प्रसिद्ध हुआ।
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वृंदा ने अपने प्राण त्याग दिए। उनके शरीर से तुलसी का पौधा उत्पन्न हुआ। भगवान विष्णु ने कहा कि वे सदैव तुलसी के बिना पूजन स्वीकार नहीं करेंगे और हर साल कार्तिक मास में उनका विवाह तुलसी से किया जाएगा।
तुलसी विवाह का महत्व
- इस दिन तुलसी और शालिग्राम का विवाह करने से घर में सुख, समृद्धि और शांति आती है।
- माना जाता है कि जो व्यक्ति सच्चे मन से तुलसी विवाह कराता है, उसे कन्यादान के बराबर पुण्य प्राप्त होता है।
- इस दिन से ही शुभ विवाह का मौसम शुरू होता है।
तुलसी विवाह कैसे किया जाता है?
- तुलसी के पौधे को साफ-सुथरे स्थान पर रखें और लाल चुनरी ओढ़ाएं।
- शालिग्राम जी या विष्णु की मूर्ति को तुलसी के सामने स्थापित करें।
- दोनों का विवाह परंपरागत विधि से करें। हल्दी, चावल, फूल, और माला से पूजन करें।
- आरती करें और प्रसाद बांटें।
तुलसी विवाह सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह भक्ति, प्रेम और विश्वास का प्रतीक है। यह हमें सिखाता है कि सच्ची निष्ठा और भक्ति से ईश्वर सदैव प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों की रक्षा करते हैं।
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Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सिर्फ अलग-अलग सूचना और मान्यताओं पर आधारित है। REPUBLIC BHARAT इस आर्टिकल में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता और प्रमाणिकता का दावा नहीं करता है।
Published By : Samridhi Breja
पब्लिश्ड 1 November 2025 at 18:26 IST