Published 08:53 IST, October 5th 2024
Navratri 2024 Day 3: मां चंद्रघंटा की पूजा के दौरान करें इस चालीसा का पाठ, बनी रहेगी माता की कृपा
Maa Chandraghanta Chalisa: शारदीय नवरात्रि के तीसरे दिन मां दुर्गा के स्वरूप देवी चंद्रघंटा की पूजा की जाती है।
Shardiya Navratri Day 3 Maa Chandraghanta Chalisa: शारदीय नवरात्रि (Shardiya Navratri 2024) का उत्सव देशभर में पूरे नौ दिनों तक धूमधाम से मनाया जाता है। मान्यता है कि अगर कोई व्यक्ति नवरात्रि के दिनों में उपवास कर नौ दिनों तक श्रद्धाभाव के साथ मां की पूजा करता है तो मां दुर्गा (Maa Durga) उससे प्रसन्न होकर उस पर अपनी कृपा बनाए रखती हैं।
वहीं, 3 अक्टूबर से शुरू हुए शारदीय नवरात्रि का आज तीसरा दिन है। ऐसे में आज यानी नवरात्रि के तीसरे दिन मां दु्र्गा के स्वरूप देवी चंद्रघंटा की पूजा की जाती है। सिंह (शेर) की सवारी करने वाली मां चंद्रघंटा की दस भुजाएं होती हैं। मां के एक तरफ जहां कमल और कमंडल होता है वहीं उनकी दूसरी ओर शत्रुओं के नाश के लिए त्रिशूल, गदा और खड्ग जैसे अस्त्र होते हैं। माता के माथे पर अर्ध चंद्र बना होता है। अगर आप मां चंद्रघंटा का आशीर्वाद पाना चाहते हैं तो आज उनकी पूजा करते समय आपको इस चालीसा का पाठ अवश्य करना चाहिए।
मां चंद्रघंटा चालीसा (Maa Chandraghanta Chalisa)
दोहा
या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नमः।।
चौपाई
नमो नमो दुर्गे सुख करनी।
नमो नमो अंबे दुःख हरनी।।
निराकार है ज्योति तुम्हारी।
तिहूं लोक फैली उजियारी।।
शशि ललाट मुख महा विशाला।
नेत्र लाल भृकुटी विकराला।।
रूप मातुको अधिक सुहावे।
दरश करत जन अति सुख पावे।।
तुम संसार शक्ति मय कीना।
पालन हेतु अन्न धन दीना।।
अन्नपूरना हुई जग पाला।
तुम ही आदि सुंदरी बाला।।
प्रलयकाल सब नासन हारी।
तुम गौरी शिव शंकर प्यारी।।
शिव योगी तुम्हरे गुण गावैं।
ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावै।।
रूप सरस्वती को तुम धारा।
दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा।।
धरा रूप नरसिंह को अम्बा।
परगट भई फाड़कर खम्बा।।
रक्षा करि प्रहलाद बचायो।
हिरणाकुश को स्वर्ग पठायो।।
लक्ष्मी रूप धरो जग माही।
श्री नारायण अंग समाहीं।।
क्षीरसिंधु मे करत विलासा।
दयासिंधु दीजै मन आसा।।
हिंगलाज मे तुम्हीं भवानी।
महिमा अमित न जात बखानी।।
मातंगी धूमावति माता।
भुवनेश्वरी बगला सुख दाता।।
श्री भैरव तारा जग तारिणी।
क्षिन्न भाल भव दुःख निवारिणी।।
केहरि वाहन सोहे भवानी।
लांगुर वीर चलत अगवानी।।
कर मे खप्पर खड्ग विराजै।
जाको देख काल डर भाजै।।
सोहे अस्त्र और त्रिशूला।
जाते उठत शत्रु हिय शूला।।
नगर कोटि मे तुमही विराजत।
तिहुं लोक में डंका बाजत।।
शुंभ निशुंभ दानव तुम मारे।
रक्तबीज शंखन संहारे।।
महिषासुर नृप अति अभिमानी।
जेहि अधिभार मही अकुलानी।।
रूप कराल काली को धारा।
सेन सहित तुम तिहि संहारा।।
परी गाढ़ संतन पर जब-जब।
भई सहाय मात तुम तब-तब।।
अमरपुरी औरों सब लोका।
जब महिमा सब रहे अशोका।।
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी।
तुम्हे सदा पूजें नर नारी।।
प्रेम भक्त से जो जस गावैं।
दुःख दारिद्र निकट नहिं आवै।।
ध्यावें जो नर मन लाई।
जन्म मरण ताको छुटि जाई।।
जोगी सुर मुनि कहत पुकारी।
योग नहीं बिन शक्ति तुम्हारी।।
शंकर आचारज तप कीन्हों।
काम क्रोध जीति सब लीनों।।
निसदिन ध्यान धरो शंकर को।
काहु काल नहिं सुमिरो तुमको।।
शक्ति रूप को मरम न पायो।
शक्ति गई तब मन पछितायो।।
शरणागत हुई कीर्ति बखानी।
जय जय जय जगदम्ब भवानी।।
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा।
दई शक्ति नहि कीन्ह विलंबा।।
मोको मातु कष्ट अति घेरों।
तुम बिन कौन हरे दुःख मेरो।।
आशा तृष्णा निपट सतावै।
रिपु मूरख मोहि अति डरपावै।।
शत्रु नाश कीजै महारानी।
सुमिरौं एकचित तुम्हें भवानी।।
करो कृपा हे मातु दयाला।
ऋद्धि-सिद्धि दे करहु निहाला।।
जब लगि जियौं दया फल पाऊं।
तुम्हरौ जस मै सदा सुनाऊं।।
दुर्गा चालीसा जो गावै।
सब सुख भोग परम पद पावै।।
देवीदास शरण निज जानी।
करहु कृपा जगदम्ब भवानी।।
दोहा
शरणागत रक्षा कर, भक्त रहे निःशंक।
मैं आया तेरी शरण में, मातु लीजिए अंक।।
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Updated 08:53 IST, October 5th 2024