अपडेटेड 20 February 2025 at 08:25 IST
Shabari Jayanti 2025: शबरी जयंती आज, ऐसे करें भगवान राम की पूजा; जरूर पढ़ें ये आरती, मिटेंगे सारे दुख
Shabari Jayanti 2025: शबरी जयंती के दिन इस तरह से भगवान राम की पूजा करने के बाद उनकी आरती का पाठ करना चाहिए।
- धर्म और अध्यात्म
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Shabari Jayanti 2025: हिंदू धर्म में शबरी जयंती का बेहद खास महत्व है। शबरी भगवान श्रीराम की भक्त थी जिन्होंने जीवनभर राम जी को देखने की राह देखी थी। शबरी जयंती (Shabari Jayanti 2025) फाल्गुन माह में कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि के दिन मनाई जाती है। ऐसे में इस साल शबरी जयंती आज यानी गुरुवार, 20 फरवरी को मनाई जा रही है। इस दिन पर भगवान राम की पूजा-अर्चना और व्रत करने का विधान है।
माना जाता है कि शबरी की तरह ही भगवान राम की पूजा करने से साधक को भगवान राम मिल जाते हैं। इतना ही नहीं आज के दिन व्रत करने से साधक के सभी दुखों का नाश होता है और भगवान राम का आशीर्वाद हमेशा बना रहता है। ऐसे में आइए जानते हैं कि शबरी जयंती के दिन आप किस तरह से भगवान राम की पूजा कर सकते हैं।
इस तरह करें भगवान राम की पूजा (Ramji ki puja vidhi)
- शबरी जयंती के दिन सुबह जल्दी उठकर गंगाजल मिलाकर स्नान करें। यह दिन पवित्र है, इसलिए शुद्धता के लिए स्नान करना बहुत जरूरी है।
- स्नान के बाद पीले रंग के कपड़े पहनें, क्योंकि पीला रंग शुभ माना जाता है और भगवान राम का प्रिय रंग भी है।
- पूजा स्थल या मंदिर में गंगाजल छिड़ककर उसे शुद्ध करें। यह पूजा की शुद्धता और पवित्रता को बढ़ाता है।
- अब भगवान राम की तस्वीर या मूर्ति को पूजा स्थल पर रखें। आप चित्र का चुनाव अपनी पसंद के अनुसार कर सकते हैं।
- भगवान राम की पूजा विधिपूर्वक करें। इस दौरान "ॐ श्री रामाय नमः" मंत्र का जाप करें और उनकी भक्ति में अपना मन लगाएं।
- शबरी माता ने भगवान राम को बेर चखा कर अर्पित किए थे, इसलिए इस दिन आप भी भगवान राम को ताजे बैर का भोग अर्पित करें।
- पूजा के बाद भगवान राम की आरती करें। इससे आपके घर में सुख-समृद्धि आती है और भगवान राम का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
- पूजा के अंत में, जो भी फल, मिठाई या भोग अर्पित किया गया है, उसका प्रसाद सभी घरवालों में बांटें और एकता और प्रेम को बढ़ावा दें।
भगवान राम की आरती (Ram ji ki aarti)
श्री राम चंद्र कृपालु भजमन हरण भव भय दारुणम्।
नवकंज लोचन कंज मुखकर, कंज पद कन्जारुणम्।।
कंदर्प अगणित अमित छवी नव नील नीरज सुन्दरम्।
पट्पीत मानहु तडित रूचि शुचि नौमी जनक सुतावरम्।।
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भजु दीन बंधु दिनेश दानव दैत्य वंश निकंदनम्।
रघुनंद आनंद कंद कौशल चंद दशरथ नन्दनम्।।
सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु उदारू अंग विभूषणं।
आजानु भुज शर चाप धर संग्राम जित खर-धूषणं।।
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इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनम्।
मम ह्रदय कुंज निवास कुरु कामादी खल दल गंजनम्।।
मनु जाहिं राचेऊ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर सावरों।
करुना निधान सुजान सिलू सनेहू जानत रावरो।।
एही भांती गौरी असीस सुनी सिय सहित हिय हरषी अली।
तुलसी भवानी पूजि पूनी पूनी मुदित मन मंदिर चली।।
जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि।
मंजुल मंगल मूल वाम अंग फरकन लगे।।
Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सिर्फ अलग-अलग सूचना और मान्यताओं पर आधारित है। REPUBLIC BHARAT इस आर्टिकल में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता और प्रमाणिकता का दावा नहीं करता है।
Published By : Kajal .
पब्लिश्ड 20 February 2025 at 08:25 IST